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________________ धारावाहिक उपन्यास ക്കാതെ d शनि की दशा अनुवादक, पण्डित ठाकुरदत्त, मिश्र सुप्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता स्वर्गीय श्री राखालदास बनर्जी की सहधर्मिणी तथा बँगला की सुप्रसिद्ध उपन्यास-लेखिका श्रीमती काञ्चनमाला देवी ने बँगला में 'शनिदशा' नाम का एक उपन्यास लिखा है । बँगला साहित्य में इस उपन्यास का बड़ा मान है । यह उपन्यास है भी ऐसा ही। इसी से हमने इस वर्ष इसका हिन्दी-भाषान्तर 'सरस्वती' छापने का निश्चय किया है । अाशा है, सरस्वती के पाठकों को अधिक रुचिकर प्रतीत होगा। Nोना रे बासन्ती, यह शीशे की पहला परिच्छेद में जगह दे दी है, इसको तो समझती नहीं, ऊपर से मेरे बच्चे को अपराध लगाती है। तू मर भी न गई बासन्ती कि सन्तोष हो जाता । आज तुझे घर से निकाल का रे बासन्ती, यह शीशे की कटोरी कर ही जल ग्रहण करूँगी। इतना तेरा मिजाज़ बढ़ किसने तोड़ डाली ?” घर के गया है। भीतर से एक ग्यारह वर्ष की अकारण ही डाट सहकर बासन्ती चुपचाप खड़ी रह क्यों बालिका ने बहुत ही मृदु स्वर गई। अपराधी जब बात का उत्तर नहीं देता तब किसी से कहा—मैं तो नहीं जानती किसी का पारा और अधिक चढ़ जाता है। बासन्ती को मामी। उत्तर न देती देखकर यही दशा उसकी मामी की भी । बालिका की यह बात हुई। आँखें लाल करके कमर की साड़ी सकेलती हुई वह सुनते ही प्रश्न करनेवाली भूखी बाघिन की तरह तड़प बासन्ती की ओर बढ़ी और कहने लगी-अब भी मैं सीधे उठी। कड़क कर उसने कहा-तू नहीं जानती तो और से पूछ रही हूँ। सचसच बता दे। नहीं तो देखती हूँ कि कौन जानता है रे चण्डालिन । जो लोग पल्ले सिरे के अाज तुझे घर में कौन रहने देता है ! बदमाश होते हैं वे ऐसे ही भोले बने बैठे रहते हैं, मानो मामी की भयङ्कर मूर्ति देखकर बासन्ती ने रुंधे हुए कुछ जानते ही नहीं। बर्तन मल कर ले आई तू और कण्ठ से कहा-मैं तो कहती हूँ कि मैं नहीं जानती। तोड़ने गई मैं ? परन्तु आप जब विश्वास ही नहीं करती हैं तब भला मैं क्या ___"सच कहती हूँ मामी, मैं नहीं जानती। नन्हे बच्ची करूँ ? कटोरी जब मैंने तोड़ी नहीं तब भला कैसे कह दूं कि को दूध देने के लिए कटोरी लेने गया था। शायद उसी के मैंने तोड़ी है ? हाथ से छूट पड़ी है।" अब तो जलती हुई अग्नि में घृत की आहुति पड़ बालिका के मुँह की बात समाप्त भी न हो पाई थी कि गई। तेज़ी से पैर बढ़ाकर मामी ने उसके मुंह पर एक मेघ की तरह गरजती हुई मामी कहने लगी-जितना बड़ा थप्पड़ मारा। अकस्मात् चोट खाकर बासन्ती पृथ्वी पर तो मुँह नहीं है, उतनी बड़ी तेरी बात है। दया करके घर गिर पड़ी। उसका मस्तक चौखट से टकरा गया। इससे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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