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________________ सामयिक साहित्य संख्या १ ] प्रमुख रूप से भाग लिया था, पार्लियामेंट में इस पर प्रकाश डालते हुए निम्नलिखित भाषण दिया था मैं इस सम्बन्ध में मुझे प्रशंसात्मक व निन्दात्मक आलो aracter-टिप्पणी नहीं करनी है । मेरे ख़याल से मेरे लिए साफ़ मार्ग यह है कि सम्राट् और मेरे बीच जो बातचीत हुई और वर्तमान स्थिति कैसे उत्पन्न हुई, उसको साफ़ साफ़ आपके सामने रख दूँ। प्रारम्भ में ही कह देना चाहता हूँ कि सम्राट् ने जब वे प्रिंस ग्राफ़ वेल्स थे, अपनी मैत्री से मुझे सम्मानित किया है और उसको मैं बहुत कीमती समझता हूँ। मैं जानता हूँ कि सम्राट् इस बात से सहमत होंगे कि यह मैत्री न केवल मनुष्य र मनुष्य के बीच थी, बल्कि मैत्री की सम्पूर्णता थी, और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मंगलवार की रात को फोर्ट बेल्वेडर से जब विदा हुआ तब हम दोनों ने अनुभव किया और परस्पर प्रकट किया कि विगत सप्ताह की गई बहस ने हमारी मैत्री को क्षति नहीं पहुँचाई है, बल्कि हम दोनों को और दृढ़ मैत्री के बन्धन में बाँध दिया है और यह जीवन पर्यन्त कायम रहेगी । सम्राट साथ सभा जानना चाहती होगी कि सम्राट् से मेरी पहली मुलाक़ात कब हुई । सम्राट् ने उदारतापूर्वक मुझे हम दोनों के बीच हुई बातचीत को आपसे कहने के लिए इज़ाजत दे दी है। जैसा आपको मालूम है, अगस्त और सितम्बर में मुझे पूर्ण विश्राम लेने की सलाह दी गई थी, जिसका मैंने अपने साथियों की मेहरबानी से पूर्ण उपभोग किया। अक्तूबर का मास प्रारम्भ होने पर यद्यपि मुझे विश्राम लेने के लिए कहा गया था, मगर मैंने अपने कार्य के महत्त्व को देखते हुए और अवकाश लेना उचित नहीं समझा। अक्तूबर श्राधा गुज़रने के बाद मैं श्राया । इस समय मेरे सामने दो काम थे, जिनसे मेरा मन अशान्त था। उस समय मेरे दफ़्तर में बहुत चिट्ठियाँ, मुख्यरूप से ब्रिटिश प्रजा और संयुक्तराष्ट्र अमरीका के ब्रिटिश वंशज अमरीकन नागरिकों की ओर से ग्रा रही थीं। मैंने देखा कि डोमीनियनों, इस देश और अमरीकन समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों से देश में बैचेनी फैल रही है। मैंने अनुभव किया कि तलाक देने से परिस्थिति और विकट हो जायगी । मैंने अनुभव किया कि सम्राट से मिलने और उनको सावधान करने का समय आ गया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५९ है । क्योंकि पत्रों में प्रकाशित समाचारों, आलोचनाओं और टीका-टिप्पणी के बाद स्थिति के और विकट हो जाने की सम्भावना थी । मैंने अनुभव किया कि इस समय एक आदमी का काम है और वह प्रधान मन्त्री ही है जो इस कार्य को कर सकता है । मैंने अनुभव किया कि देश के प्रति जो मेरा कर्तव्य है वह मुझे बाधित करता है कि मैं सम्राट् को चेतावनी दूँ । मैंने यह भी विचार किया कि मैं सम्राट् का केवल एक सलाहकार ही नहीं हूँ, बल्कि मित्र भी हूँ और उस नाते भी मुझे अपना कर्तव्य पालन करना [मिस्टर बाल्डविन । ] चाहिए | मेरे इस कार्य को मेरे साथियों ने जल्दबाज़ी बताया और मुझे इस जल्दबाज़ी के लिए माफ़ भी कर दिया । मैं फ़ोर्ट वेल्वेडर के समीप ही रहा था। मुझे जब मालूम हुआ कि सम्राट् १८ अक्तूबर शनिवार को एक शिकार पार्टी का श्रातिथ्य करने के लिए बरसिंहम जा रहे हैं। और रविवार को यहाँ वापस श्रा जायँगे तब मैंने उनसे मिलने का निश्चय किया । मैं २० अक्तूबर इस सम्बन्ध में पहली बार सम्राट् से मिला और अमरीकन पत्रों में प्रकाशित समाचारों की ओर सम्राट् का ध्यान खींचते हुए चिन्ता प्रकट की । उस www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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