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________________ सरस्वती [ भाग ३८ लाहौर की संगीत-प्रवीण छात्राय । बैठी हुई बाइ अोर से कुमारी कौमुदी, कुमारी प्रीतम धवन और कुमारी एस. सी० चटर्जी। खड़ी हुई कुमारी लीला भण्डारी, कुमारी यमुना, कुमारी लजावती धवन और कुमारी कमला मोहन । इसने अपने व्यक्तित्व को नये दृष्टि-विन्दु से देखने की स्थिति इससे भिन्न है । फिर भी अान्दोलन के प्रारम्भ होने प्ररणा की है। दोनों को सामाजिक बन्धन कठिन लगते के बाद से लेकर आज तक दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ हैं, दोनों को अपना साम्प्रत जीवन परिवतन माँगता हुया दिखाई दी हैं। यह चिह्न जागृति के लिए यावश्यक है। नज़र आता है । फलस्वरूप समाज के दो अङ्ग-स्त्री-पुरुष अब देखना इतना है कि इम जागृति के बाद भी फिर अन्तर्विग्रह की तैयारी कर रहे हों, ऐसा मालूम होता है। मोती हैं या नहीं ? जागृति के चमत्कार के बाद यह जुगुन स्त्री को पुरुष सत्ताशोल, स्वतन्त्र, सुखी मालूम होता है, पुनः पंख बन्द कर देनेवाले हैं या नहीं ? मदभरी आँखों और वह अपनी जाति को दलित कहती है। पुरुष की की निद्रा भङ्ग हो, और फिर घोर निद्रा अा जाय, ऐमा वेदना और ही है। दिन ब दिन जीवन-कलह भयङ्कर रूप तो नहीं होगा न ? धारण करता जाता है। इससे वह स्त्री के मार्दव की अधिक स्त्रियाँ किधर जा रही हैं ! अपेक्षा रखता है। किन्तु नई स्त्री इस मार्दव में गुलामी इस प्रश्न के उत्तर के लिए स्त्रियों की दोनों प्रकार की देखती है। प्रवृत्तियों पर दृष्टि डालनी पड़ेगी। इसके बाद ही उत्तर __ स्त्रियों में नई महत्त्वाकांक्षा जागृत हुई है। इससे व मिलेगा। 'व्यक्ति-स्वातन्त्र्य' के पाये पर इमारत बाँधने हर एक क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी करने में गौरव मानती की इच्छा रखनेवाला वर्ग कहेगा कि अभी स्त्री-समाज हैं। जिस ज़माने में यह बराबरी नहीं थी, उस ज़माने को ने चलना शुरू नहीं किया; अभी स्त्रियों को अपने व्यक्ति - वे पुरुष की जुल्मी सत्ता का ज़माना मानती हैं। वस्तु- का भान नहीं हुअा; समान अधिकार भोगने की इच्छा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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