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संख्या ६ ]
करने और तत्सम्बन्धी अनुसन्धान कार्य करने के लिए यह इंस्टिट्यूट एक प्रामाणिक संस्था है ।
प्रयोगशालाओं के ही समान इंस्टिट्यूट का पुस्तका लय और वाचनालय भी बिलकुल अप टु डेट है। पुस्तका लय में विज्ञान, कलाकौशल, उद्योग, व्यवसाय एवं टेकनोलाजी-सम्बन्धी सहस्रों श्रेष्ठ पुस्तकें मौजूद हैं । यहाँ इण्डियन पेटेन्ट स्पेसिफिकेशन की पूरी फ़ाइल भी रक्खी जाती है । प्रतिवर्ष टेकनिकल विषयों
पर प्रकाशित होनेवाला
नवीन सामयिक साहित्य
भी बराबर श्राता रहता है । अँगरेज़ी के अतिरिक्त
जर्मन और फ्रेंच भाषा को उत्तम वैज्ञानिक पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकायें भी मँगाई जाती हैं । यहाँ
कानपुर का टेकनोलाजिकल इंस्टिट्यूट
यह कहना असंगत न होगा कि जर्मन भाषा का वैज्ञानिक साहित्य अँगरेज़ी से कहीं अधिक बढ़ा-चढ़ा है और अधिकांश प्रामाकि वैज्ञानिक पुस्तकें जर्मन भाषा से अनुवादित की जाती है । इंस्टिट्यूट के पुस्तकालय से विद्यार्थियों के अतिरिक्त मिल मालिक और सर्वसाधारण भी लाभ उठा सकते हैं ।
इंस्टिट्यूट के विद्यार्थियों में वैज्ञानिक विषयों में अनुसन्धान की अभिरुचि उत्पन्न करने, वैज्ञानिक विषयों पर वाद-विवाद करने तथा उन्हें वैज्ञानिक लेख आदि लिखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 'साइंटिफिक सोसाइटी' नामक विद्यार्थियों की एक निजी संस्था । इस संस्था की ओर से ‘जरनल ग्राफ़ टेकनोलाजी' नामक एक त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशित की जाती है। इस पत्रिका ने भारत ही में नहीं, विदेशों में भी अच्छा सम्मान प्राप्त किया है। विद्यार्थियों-द्वारा होनेवाले अनुसन्धान कार्य का विवरण भी इसी पत्रिका में प्रकाशित होता है । इस पत्रिका के प्रति - रिक्त सरकारी तौर पर भी समय समय पर विभिन्न विषयों
फा. ९
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पर होनेवाले अनुसन्धान कार्य के विवरण बुलेटिनों के रूप में प्रकाशित होते रहते हैं । युक्त प्रान्त के उद्योग-धन्धों से सम्बन्ध रखनेवाले ऐसे ३०-३५ बुलेटिन अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से अधिकांश अँगरेजी में हैं ।
अन्त में इस इंस्टिट्यूट से पास होनेवाले विद्यार्थियों की कुछ बातें बतलाना भी यहाँ श्रावश्यक है । इंस्टिट्यूट के पूर्व विद्यार्थियों में ९० से ९५ प्रतिशत तक विद्यार्थी काम
[ पुस्तकालय - मुख्य भाग । ]
में लगे हुए हैं। तेल और शकर विभाग को अपने विद्याथियों को काम में लगाने में विशेष सफलता मिली है । भारतवर्ष में और युक्त प्रांत में ख़ास तौर पर तेल मिलों की अच्छी संख्या है । इन सबके संचालन के लिए विशेषज्ञों की सख्त जरूरत थी । इंस्टिट्यूट में शिक्षा पाये हुए विद्यार्थियों के सहयोग का मिल मालिकों ने पूरा लाभ उठाया और तेल - विज्ञान में विशेष योग्यता प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों की शीघ्र ही अच्छी माँग हो गई । तेल-मिलों के अतिरिक्त इनमें से कुछ को साबुन और रंग-रोगन के कारख़ानों में अच्छी जगहें मिलीं हैं। कुछ ने अपने निजी कारखाने खोल लिये हैं । १९३५ तक पास होनेवाले विद्यार्थियों में बहुत थोड़े विद्यार्थी ऐसे हैं जो अब तक किसी काम से नहीं लग सके हैं । इंस्टिट्यूट के अधिकारियों एवं विद्यार्थियों से युक्त प्रान्तीय तेल व्यवसाय को ही नहीं,
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