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________________ ५८६ सरस्वती [भाग ३८ बरन भारतवर्ष के अन्य भागों के तेल, साबुन एवं रंग- साधारण अनुसन्धान विभाग से बहुत थोड़े विद्याथीं रोगन के कारखानों को समुचित लाभ पहुंचा है। वास्तव तैयार हुए हैं । इनमें से अधिकांश काम में लगे हुए हैं। में युक्त-प्रान्त की तेल-मिलों को सुव्यवस्थित रूप से इन्हें सभी प्रकार के रासायनिक उद्योग-धन्धों में जगहें मिली अाधुनिक ढंग पर चलाने का अधिकांश श्रेय इस इंस्टिट्यूट हैं। कुछ ने अोषधि बनाने के कारखाने खाले हैं । एक को ही प्राप्त है। विद्यार्थी ने अपना काँच का कारखाना खोला है। कुछ ___ शकर-विभाग को अपने विद्यार्थियों को काम में को अोषधि-निर्माण करनेवाले कारखानों में जगहें मिल गई लगाने में पूर्ण सफलता मिली है। १९२६ के पहले जब हैं । इंस्टिट्यूट के पूर्व के छात्रों द्वारा अकेले कानपुर में इंस्टिट्यूट में शकर-विज्ञान की शिक्षा प्रारम्भ नहीं हुई कई कारखाने बहुत सफलता पूर्वक काम कर रहे हैं। इनमें थी, साधारण अनुसन्धान विभाग के विद्यार्थी शकर-मिलों मारबिल सोप वर्क्स, माथुर मंजूर लिमिटेड और पल्स में ले लिये जाया करते थे । शकर-विज्ञान के विशेषज्ञ तैयार प्राडक्ट्स लिमिटेड, के नाम विशेषतया उल्लेखनीय है । होने पर उनकी माँग और ज़्यादा बढ़ गई । इधर शकर- इन तीनों ने थोड़ी सी पूँजी से शुरू करके काफ़ी उन्नति व्यवसाय की उन्नति ने इन विद्यार्थियों को काम दिलाने की है। कानपुर के अलावा युक्त-प्रान्त के दूसरे शहरो में और भी अधिक सहायता पहुँचाई है । फलस्वरूप आज में भी इंस्टिटयूट के पूर्व के छात्रों ने अपने कई कारखाने भारत का बिरली ही कोई शकर-मिल ऐसी होगी, जहाँ खोले हैं । इस इंस्टिट्यूट से शिक्षा पाये हुए दो-एक केमिस्ट न हों। सिद्धान्त लेखक, पण्डित रामचरित उपाध्याय डरना किसी से नहीं, मरना स्वधर्म-हेतु, माँगिए किसी से नहीं किन्तु यदि माँगे बिना कहना उसे ही जिसे करके दिखाना हो, काम न चले तो फिर माँगिए रमेश से. टलना प्रणों से नहीं, मिलना खलों से नहीं, क्लेश जो उठाना हो तो कीजिए किसी से प्रेम, लिखना उसे ही जिसे सीखना-सिखाना हो। छोड़िए सभी को यदि छूटना हो क्लेश से चलना बड़ों की चाल, जलना किसी से नहीं, चिन्ता को हटाना हो तो कीजिए न रंच चाह, रहना उसी के साथ जिसका ठिकाना हो, धर्म चाह हो तो हट जाओ लोभ-लेश से पड़ना प्रलोभ में न, गुरु से अकड़ना क्यों ? वेश को बनाना हो तो बनिए उमेश दास, · अडना वहाँ ही जहाँ शत्रु को भगाना हो ॥ नाता जोड़ना ही हो तो जोडिए स्वदेश से । MORE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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