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________________ संख्या १] राजस्थान की रसधार डुबोया नहीं डूबता और ईडुरी पानी पर तैर-तैर कर निकल उल्लास में घड़े भर कर लौटने की तैयारी में हैं। उनको जाती है। आत्मायें संगीतमय हो रही हैं । परन्तु वियोगिन पनिहारी सातों सहेलियाँ पानी भर कर चल दीं। केवल पनिहारी अन्यमनस्क होकर घड़ा भर रही है, चित्त उसका और तालाब पर रह गई । एक ऊँट का सवार (अोठी) राह राह किसी ओर लगा है । उमड़ी हुई काली घटा 'झूलरे' का जा रहा था। पनिहारी ने उसे आवाज़ दी और घड़ा उठाने यह सुख-संगीत उसके हृदय में प्रियस्मृतिजन्य आत्मको कहा। [पनिहारी को क्या पता था कि यही उसका विस्मृति पैदा कर देता है। इसी लिए उसका घड़ा डुबाये चिर-प्रतीक्षित प्राणेश्वर होगा। नहीं डूबता-उसकी ईडुरी तैर-तैर कर जल में निकली जाती अोठी ने पूछा-ए पनिहारी, औरों ने कज्जल-बेंदी है। वह स्वयं प्रियचिंतन में डूबी है । घड़ा कैसे डूबे ? - लगा रक्खे हैं। तेरे नेत्र फीके-से क्यों हैं ? औरों के विरह की दीवानी को छोड़कर और पनिहारिने चल चुनरियाँ अोढ़ने को हैं । तेरे मैले वस्त्र कैसे ? दी । वह अकेली रह गई। घड़ा कौन उठावे ? कैसी पनिहारी ने उत्तर दिया- औरों के प्रियतम घर पर विषम परिस्थिति है ? हैं । चतुर अोठी, मेरा पति विदेश गया है। __ऊँट का सवार घड़ा उठाकर अपनी राह लेता तो इस पर अोठी ने ठीक ही तो कहा । परन्तु पनिहारी चित्र में वह रस-रंग पैदा न होता। अोठी के हृदयस्पर्शी इसका रहस्य समझती कैसे ? प्रश्न पनिहारी के कलेजे में उथल-पुथल मचा देते हैं। __ अोठी ने कहा-घड़े को ताल में पटक दे और मेरे उसका कलेजा मुँह को प्राता है । जिस समय उत्तर में पीछे हो जा । पनिहारी को ये वाग्बाण विषैले लगे और वह कहने को बाध्य होती है कि औरों के पति घर पर हैं, वह रिसा कर बोली-जला दूँ तेरी जीभ को, अोठी, तुझे मेरा विदेश में है, उस समय की उसकी मानसिक दशा काला सप डसे। कल्पना का विषय है-लज्जा, शील, संकोच, समवेदना ___इस प्रकार प्रश्नोत्तर करके पनिहारी वापस आई । घर आदि भावों की ख़ासी गुत्थी है । अोठी के प्रस्ताव मेंके द्वार पर पहुँचकर सास को पुकारकर घबराये स्वर में "घड़ो पटक दे ताल में" में एक असहनीय स्पष्टता है, जो कहा-पटक हूँ इस घड़े को चौक में । सास जी, इसे जल्दी पनिहारी को बहुत अखरती है, और वह उससे अपना उतारो। - अपमान समझती है। परन्तु इसका दोष अोठी को सास बोली-बहू मेरी, तुझे किसने ताना दिया है, नहीं, परिस्थिति के आकस्मिक संयोग को दिया जा किसने तुझे गाली दी है ? सकता है। उत्तर-मुझे आज एक अोठी मिला, जिसने मेरे मन घर लौटने पर पनिहारिन की परिस्थितिजन्य घबराहट की बात पूछी। देवर के समान वह लम्बे-पतले शरीरवाला और साथ ही उसके 'मनड़े री बात' में भावों के मार्मिक था और ननदबाई की प्राकृति से उसकी श्राकृति मिलती थी। सम्मिश्रण का कैसा मनोज्ञ चित्र उपस्थित किया गया है। सास समझ गई। हँस कर बोली- इसमें सन्देह नहीं, इस गीत में मानव-हृदय के अत्यन्त बहू, तू बहुत भोली है । वह तो तेरा ही पति है। सूक्ष्मभाव कलात्मक रीति से केन्द्रीभूत हुए हैं। तभी तो कलात्मक सौन्दर्य और मनोविज्ञान के अच्छे दृश्य यह राजस्थान के स्त्री-पुरुषों के हृदय का इतनी बहुलता इस चित्र में सम्मिलित हैं । और पनिहारिने संयोग-सुख के के साथ आकर्षण कर सका है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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