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________________ ४८८ सरस्वती [भाग ३८ से बहुत खुश हो गया है। हवलदारी तुम्हारे इनाम के क्रोरोफ़ार्म देकर डाक्टर कर्नल ब्राडफोर्ड ने डाक्टर लिए काफ़ी नहीं है। तुमको कमिशन दिया जाता है। कप्तान जोशी की सहायता से अपना कामकर पट्टी बाँध सूबेदार घनश्यामसिंह की जगह तुम फोर्थ जाट में सूबेदार दी। डाक्टर कर्नल बाडफ़ोर्ड सूबेदार के पलंग पर मुके किये गये । हम जागीर के.लिए गवर्नमेंट अाफ़ इंडिया हुए थे । सूबेदार के चेहरे पर से क्लोरोफ़ार्म का असर धीरे से सिफ़ारिश करेगा। चेतसिंह, तुमको सबसे ऊँचा मिलिटरी धीरे दूर हो रहा था। पहले उन्होंने आँखें खोलने का तमगा 'विक्टोरिया क्रास' दिया जाता है ।" यत्न किया, और फिर बड़े यत्न से अपनी रक्तवर्ण आँखें चेतसिंह, सन्तसिंह के इशारे पर, साहब के सामने खोलकर चारों ओर देखने लगे। सूबेदार घनश्यामसिंह घुटने टेक कर बैठ गये । जनरल राबर्ट ने अपनी तलवार को होश में आया देख दयालु कर्नल ने बड़ी नर्मी से उनके म्यान से निकाल कर चेतसिंह के दोनों कन्धों पर क्रम से मस्तक पर हाथ रखते हुए हँस कर कहा-"वेल सूबेदार छ दिया। फिर चेतसिह को खड़े हो जाने का हुक्म दिया। साहब, पाल राइट। सब ठीक है। आप का सिर्फ एक जब चेतसिंह विनम्रभाव से खड़ा हो गया तब साहब ने पैर काट दिया गया है।" आगे बढ़कर अपने हाथ से चेतसिंह के दोनों कन्धों पर साहब हः हः हः हः हँसते हुए डाक्टर जोशी के तीन तीन स्टार जड़कर छाती पर 'विक्टोरिया क्रास' का साथ चले गये । केवल एक योरपीय नर्स रह गई। सूबेदार तमगा लटका दिया। ने पानी मांगा। नर्स ने शीशे के ग्लास में दूध भरकर ___ जनरल वान क्रक का प्रयत्न सफल नहीं हो सका। पिला दिया और फिर दो चम्मच पानी । दूध और पानी १५ दिन गोलों की प्रलयंकारी वर्षा में भी भारतीय सेना पीने से स्वस्थ होकर सूबेदार ने चेतसिंह की ओर देखा। एक पग पीछे नहीं हटी। हजारों वीर काम आ गये। उसके तमगों से विभूषित सुन्दर शरीर को वे निनिमेष १५ दिन ड्यूटी करने पर चेतसिंह को ७ दिन की छुट्टी नेत्रों से देखते रह गये। चेतसिंह आगे बढ़ और चरण मिली । झट मिलीटरी लारी पर सवार होकर चेतसिंह ३० छूकर सूबेदार को प्रणाम किया। घनश्यामसिंह गद्गद मील दूर रूथान की ओर चले आये। ८ बजने का समय हो गये, उनकी आँखों से दो बँद आँसू ढरक पड़े। था। तेज ठंडी हवा चल रही थी। लारी आरास नगर उन्होंने प्रेम से चेतसिंह के सिर पर हाथ रक्खा और गद्के भीतर से जा रही थी। आकाशयानों और बड़ी तोपों गद गिरा से बोले-"बेटा चेता, दूने अपनी हिम्मत और की मार से रमणीक श्रारास नगर स्मशान हो रहा था। जामर्दी से दर्जा पाया है। अब मेरा कोई ठीक नहीं। बड़ी बड़ी इमारतें गोलों के गिरने से हाँड़ी की तरह फूट मुझसे प्रण कर, मेरा लड़का बनकर मेरा घर-बार सँभाल।" गई थीं। नगर जन-शून्य था। भारतीय सिपाहियों, कुछ चेतसिंह सूबेदार का फिर चरण-स्पर्श कर कहने लगेरसद-सामान और एक चलते-फिरते अस्पताल के सिवा चाचा जी, आप फ़िक्र न करें। मुझे आप अपना बेटा ही वहाँ कुछ नहीं था। समझे। आप जो आज्ञा देंगे मैं वही करूँगा।" सात दिन १ घंटे में चेतसिंह को लेकर लारी लाहौर इंडियन 'रुश्रानबेस' में रहकर चेतसिंह फ्रांट पर चले गये। जनरल अस्पताल के फाटक पर खड़ी हो गई। इस अस्प- सूबेदार घनश्यामसिंह अच्छे होने लगे, दो महीने में उनके ताल में ५,००० घायल और बीमार सिपाही कपड़े के डेरों कटे पैर में लकड़ी की नकली टाँग लगाकर वे बम्बई भेज में पड़े थे। लारी से कूदकर चेतसिंह सूबेदार घनश्याम दिये गये। वहाँ से पेंशन पाकर अपने घर चले गये। सिंह की तलाश में भीतर पहुँचे। सूबेदार की वर्दी देखकर दो बरस फ्रांस में काम करने के बाद चेतसिंह की बदली सब कर्मचारी श्रादर से पेश आये। इससे चेतसिंह को इजिप्ट को होगई। लंदन के वार-श्राफ़िस ने सब शक्ति सहज में मालूम हो गया कि सूबेदार का आपरेशन हो रहा लगाकर तुर्की को पराजित करना सबसे पहली नीति माना। है। झटपट चेतसिंह सर्जन-वार्ड के डेरे में गये। वहाँ जनरल एलेनबी इजिप्ट में पड़ी हुई भारतीय और ब्रिटिश डाक्टरों की भीड़ थी। चेतसिंह भी जाकर पीछे चुपचाप सेना के प्रधान फ़ील्ड मार्शल बनाये गये। जनरल एले. खड़े हो गये। नबी ने तुर्की को पूर्णरूप से पराजित करने के लिए दो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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