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विक्टोरिया क्रास
संख्या ५ ]
में जनरल राबर्ट का पीछा करना अच्छा नहीं समझा। जनरल वान लक ने हाविटज़र तोपों की क़तार लगाकर ब्रिटिश सेना और नगर को भँज डालना चाहा । गोलों के - फटने से धुएँ के बादल और लाल रंग की रोशनी चारों ओर फैल रही थी । सारी ब्रिटिश सेना धुएँ के बादलों में ढँकी थी । अन्धकार ऐसा था कि हाथ से हाथ नहीं . सूझता था। इस निविड़ अन्धकार में शत्रु का पता लगाने और निशाना मारने के लिए बड़े बड़े गोले आकाश में फेंके जाते थे और वहाँ से फटकर सूर्य की तरह प्रकाश करते हुए शत्रु सेना पर गिरते और गिरकर भी अपने प्रकाश से 'शत्रु का भेद खोल देते थे ।
इसी फ़ौजी आतिशबाज़ी की रोशनी का सहारा लेता हुआ चेतसिंह नाले की ओर चला जा रहा था। गोलों की लाल रोशनी से भी उसको सहायता मिल रही पी। धीरे धीरे वह उन झाड़ियों के पास पहुँचा जो नाले के
नारों पर उगी हुई थीं । यहाँ बहुत-सी लाशें उन जर्मन और भारतीय सिपाहियों की पड़ी थीं जिन्हें सेना उठा नहीं की थी । यहाँ की दशा देखकर चेतसिंह ने समझ लिया कि इन झाड़ियों में छिपे हुए जर्मनों को निकालने के लिए भारतीय सेना को संगीनों से काम लेना पड़ा है । घायल और मृतकों को बचाता हुआा चेतसिंह चला जा रहा था कि उसको एक ओर कराहने का शब्द सुनाई दिया । लाशों को बचाता हुआ जब वह उस शब्द की ओर बढ़ा तब उसने गोले की रोशनी में देखा कि कुछ सिपाही मरे पड़े हैं और उनके बीच में एक आदमी उठने का यत्न करता है, लेकिन कराह कर गिर जाता है ।
चेतसिंह लपक कर घायल सिपाही के पास पहुँचा । दियासलाई निकाल कर श्रोवरकोट की आड़ में जलाकर घायल को पहचान लिया, और अचानक उसके मुँह से निकल गया " सूबेदार घनश्यामसिंह ।” सूबेदार की वर्दी ख़ून से भीग गई थी, और पास ही उनका झब्बेदार साफ़ा पड़ा था | चेतसिंह ने उसी साफ़ से सूबेदार के घुटने का घाव बाँध दिया, और फिर उन्हें पीठ पर लादकर नाले में उतर कर पार हो गया । दो-चार क़दम अँधेरे में बढ़ने पर वह काँटेदार तारों से अड़ गया। तारों में ही बिजली का तीव्र प्रकाश उस पर ा पड़ा और सन्नाटे " को चीर कर शब्द हुआ, "हाल्ट !”
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“हाल्ट ! हैंड्स अप ! कौन है ?" चेतसिंह ने कड़क कर आवाज़ दी - "इंडियन सोल्जर चेतसिंह | "
बिजली का प्रकाश मिट गया, और अन्धकार में दो काली शकलें चेतसिंह के सामने आकर खड़ी हो गई । चेतसिंह के सिर पर पिस्तौल तानकर लेफ्टिनेंट स्टेनली ने टार्च की रोशनी डाली और पूछा
" दूसरा घायल आदमी कौन है ?"
" सूबेदार घनश्यामसिंह चौथी जाट पल्टन ।” "हमारे साथ चले आओ ।"
आगे श्रागे लेफ्टिनेंट स्टेनली, उनके पीछे चेतसिंह सूबेदार को पीठ पर लादे, उनके पीछे सूबेदार सन्तसिंह ट्रेंच ( मोर्चों) को पार कर कैंप में श्राये । सूबेदार के घुटने को तोड़ती हुई दो गोलियाँ निकल गई थीं, इससे वे लाहौर इंडियन जेनरल हास्पिटल रूमान बेस में भेज दिये गये । और सन्तसिंह ने चेतसिंह को ब्रिगेडियर जनरल राबर्ट के सामने पेश कर दिया । उस समय जनरल राबर्ट बैटरियों के पीछे खड़े हुए ऊँचे श्राफ़िसरों से परामर्श कर रहे थे । सन्तसिंह ने चेतसिंह के साथ जाकर फ़ौजी सलाम किया । साहब ने घूमकर चेतसिंह को सिर से पैर तक देखा, और फिर अपनी नोटबुक निकालकर कुछ पन्ने उलटने के बाद मधुर स्वर से बोले - " सूबेदार साहब, इस जवान का नाम चेतसिंह है ? क्या यह वही सिपाही है जिसने अपनी बहादुरी से हमारी फ़ौज को बहुत बड़े ख़तरे से बचाया है । चेतसिंह कहाँ काम करता है ?" चेतसिंह ने कहा - ' - " हुज़ूर ने हमें फ़ोर्थ जाट रेजिमेंट में मेहरबानी करके हवलदार कर दिया था । उस दिन हमें दो घंटे का वक्त आराम करने को मिला था, लेकिन हमको अस..."
बात काट कर सन्तसिंह आगे बढ़ाये और फ़ौजी सलाम कर कड़क कर बोले - “हुज़ूर, इस सिपाही ने जर्मन-लाइन पारकर जो बहादुरी का काम किया है उसे सब आफ़िसर जानते हैं। लौटते हुए यह जवान मैदान में घायल पड़े हुए सूबेदार घनश्यामसिंह को भी उठाकर लाया है। इसकी बहादुरी इनाम के काबिल है ।"
साहब प्रसन्न होकर हँसने लगे और हँसते हँसते चेतसिंह की ओर देखकर बोले - " चेतसिंह, हम तुम्हारे काम.
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