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________________ संख्या ५] विक्टोरिया क्रास लाख सवारों की मांग पेश की। इसलिए फ्रांस में भारतीय का कलरव घर लौटते हुए गो-वृन्द के गले की घंटियाँ, और रिसाले जो पैदल पल्टन का काम कर रहे थे, घोड़े-सहित मजदूरों की बेसुरी तान भंग कर रहा था। इन्हें काफ़ी न इजिप्ट लौटा दिये गये। चेतसिंह भी रिसाले के सवार समझकर गाँव के लड़कों ने अपने कोलाहल से गाँव की थे, इसलिए १५ जाट केवेलरी में रिसालदार होकर एजिप्ट शान्ति को कोसों दूर भगा दिया था। गाँव भर में दौड़कर आगये। उन्होंने अपने स्वर से गाँव भर को हिला दिया था। सेना के एकत्र हो जाने पर जनरल एलेनबी ने ६०,००० वे चिल्ला रहे थे, "चेतसिंह आगये", "चेतसिंह श्रागये।" सवारों को जहाज़ों पर सवार कराकर तुर्की-सेना के उत्तर शोर सुनकर चेतसिंह की माता द्वार पर आकर खड़ी के पृष्ठ-भाग के समीप के बंदरगाह में उतार दिया, और होगई। चेतसिंह इक्के से कूद पड़े और माता के चरणों दक्षिण से १,४०,००० सवारों को लेकर दोनों ओर से पर सिर रखकर अश्रुजल से धो दिया। माता ने पाँच वर्ष बाज़ की तरह उस पर टूट पड़े। तुकों के १,६०,००० से बिछुड़े हुए पुत्र का हृदय से लगाकर आँचल से आँसू जवानों ने घिर कर अपने शस्त्र रख दिये। तुर्की के पूर्ण पोंछ दिये। चेतसिंह घर में गये, माता से बातें कर सूबेपराभव से भारतीय सिपाहियों का काम मेसोपोटामिया और दार के घर में आये और निःशंक भीतर चले गये। इजिप्ट में हलका पड़ गया। तीन बरस इजिप्ट में जनरल आँगन में एक बड़े पलंग पर लँगड़े सूबेदार घनश्यामएलेनबी के अधीन काम करने पर चेतसिंह ने ६ महीने की सिंह बैठे हुक्का पी रहे थे। पास ही एक मचिया पर बैठी छुट्टी पाई। महायुद्ध समाप्त होगया था। एप्रिल के सूबेदारिन पंखा झल रही थीं। चेतसिंह ने जाते ही दोनों प्रारम्भ में चेतसिंह स्वेज़ में जहाज़ पर बैठे। हज़ारों के चरण छुए । सूबेदार चेतसिंह को देखकर गद्गद होगये हिन्दुस्तानी सैनिक ५ वर्ष के बाद स्वदेश को लौट और चेतसिंह का हाथ पकड़कर अपने पास बैठाते हुए रहे थे। कहा-"पाश्रो बेटा ।' फिर चेतसिंह की पीठ पर हाथ जहाज़ को अदन छोड़े सातवाँ दिन था। आठवें फेरते हुए सूबेदारिन की ओर देखकर कहा-"देख, कलादिन जब चेतसिंह डक पर आये उस समय पूर्व दिशा में वती की माँ, चेतसिंह ने लड़ाई में बड़ा नाम पाया है। - सूर्यदेव का रथ आ गया था। उनका सारथी अरुण मेरी जान बचाई है और अपनी बहादुरी से सूबेदार अंधकार को भगाता हुअा भगवान् के प्रखर तेज की सूचना होगया है ।" दे रहा था । अाकाश में लाल-लाल बादल घोड़े थे, सूबेदारिन ने हँसकर कहा-"चेता, तुझे तो मैंने जिनकी आभा बम्बई की ऊँची मीनारों पर पड़ रही थी। पहचाना ही नहीं। ५ बरस में इतना ऊँचा होगया है। जहाज़ के बन्दरगाह में पहुँचते पहुँचते सूर्यदेव के भी कलावती पाँच बरस में मुझसे भी लंबी होगई है। मैं . *दर्शन होने लगे और उन्होंने बम्बई के ऊँचे ऊँचे मीनारों हैरान थी कि इसके लिए वर कहाँ मिलेगा ?" को सुनहरे रङ्ग से रँग कर समुद्र की नीली छाती पर एक सूबेदार घनश्यामसिंह ज़ोर से हँस पड़े। उन्होंने सुनहरी रेखा खींच दी। कहा-"हैरान क्यों होती है ? चेतसिंह से अच्छा वर कहाँ चेतसिंह ७ बजे सवेरे जहाज़ से उतरे। एक गाड़ी मिलेगा? चेतसिंह कलावती से भी लम्बा है। दोनों का करके माधवबाग़ आये। धर्मशाला में दिन भर विश्राम कर कैसा अच्छा जोड़ा है ! कलावती सूबेदार की बेटी है और रात्रि में बाम्बे-मेल से रवाना हो गये। वे दूसरे दिन अर्द्ध- चेतसिंह सूबेदार मेजर है।" रात्रि के समय देहली-स्टेशन पर आगये और वेटिंगरूम में सूबेदारिन ने हँसते हँसते कहा-“यही बात तो मैं सो गये । सवेरे इक्का करके अपने गाँव की ओर रवाना सदा से कहती आई हूँ।" इस पर सब हँसने लगे। हो गये। दिन भर चलकर इक्का जब गांव में पहुँचा, एक खम्भे की आड़ से कलावती झाँक रही थी, सूर्यास्त हो चुका था, लेकिन धुंधला-सा प्रकाश पके गेहूँ लेकिन उसका गोरा हृष्ट-पुष्ट एक हाथ दिखाई देता था। के खेतों पर पड़ रहा था। अपूर्व शान्ति थी, जिसे पक्षियों ब्याह में सूबेदार सन्तसिंह भी आये थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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