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________________ ४८० सरस्वती [भाग ३८ [श्री सत्यनारायण जी और पं० हरिहर शर्मा] कता है, जिनके बिना हमारी नींव कभी पक्की नहीं हो सकती । अगर हम अँगरेज़ी के प्रचार की ओर अपनी नज़र डालें तो मालूम होगा कि अँगरेज़ी भाषा के शिक्षण के सिवा अँगरेज़ी शार्ट हेड (संकेत-लिपि) और टाइप राइटिंग की वजह से अँगरेज़ी का प्रचार देश के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत बढ़ा है, इसलिए जब तक हम हिन्दी टाइप राइटिंग और संकेत-लिपि जानने वालों को काफी संख्या में तैयार नहीं करेंगे तब तक जनता से हिन्दी में ही कार्रवाई [सेठ जमनालाल बजाज़ सम्मेलन के सभापति और पत्र-व्यवहार करने की अपील करना व्यर्थ ही समझना में करीब तीन घंटे तक चर्चा की। श्री राजगोपालाचार्य चाहिए। इस सम्बन्ध में इस बार सम्मेलन ने एक प्रस्ताव इस प्रस्ताव का हमेशा विरोध करते आये हैं, किन्तु भी स्वीकृत किया है। किन्तु इस काम को हमें प्रस्ताव पास महात्मा जी के बहुत कुछ समझाने पर उन्होंने बात मान करके ही नहीं छोड़ देना चाहिए। सम्मेलन ने प्रयाग में ली। दसरे दिन सम्मेलन के खुले अधिवेशन में 'हिन्दी- शार्टहेड और टाइप राइटिंग के वर्ग खोलने का जो निश्चय हिन्दुस्तानी को कांग्रेस के कार्य की भाषा बनाने का प्रस्ताव श्री राजगोपालाचार्य से ही पेश करवाया गया। उन्होंने अपना भाषण तामिल में किया, जिसका हिन्दी में भाषान्तर किया गया। सर्वश्री प्रकाशम्, शाम्बमूर्ति, और कालेश्वरराव ने अपने जीवन में पहले-पहल हिन्दी में भाषण कर अपने देश-प्रेम का परिचय दिया । इस सम्मेलन में अँगरेज़ी का बिलकुल उपयोग न होना कम महत्त्व की बात न थी। हिन्दी-प्रचार को मजबूत बनाने के लिए इसमें कई प्रस्ताव पास हुए। हिन्दी-प्रचार को सफल बनाने के लिए, केवल प्रोपेगेन्डा से काम न चलेगा, कुछ ठोस साधनों की भी आवश्य इस भवन में महात्मा जी ठहरे थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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