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________________ संख्या ५] मदरास का सम्मेलन ४८१ किया है उसको शीघ्र ही कार्य का रूप देना चाहिए और शिक्षण संस्थाओं को भी इस ओर ध्यान देना श्रावश्यक है। आखिरी दिन श्री टंडन जी के हिन्दी-व्याकरणसम्बन्धी प्रस्ताव पर काफी देर तक बहस हुई। श्रीराजगोपालाचार्य तक ने वादविवाद में भाग लिया। ____ सम्मेलन के समाप्त होने के पहले श्रीमती रामन ने कुछ देर हिन्दी में और फिर अपने उद्गारों को अच्छी तरह व्यक्त करने के लिए तामिल में भाषण किया । उनके सुन्दर भावों, विचारों तथा राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी होगी। नम्रता तो [श्री सेठ जमनालाल बजाज़ और श्रीमती लोकसुन्दरी रमन] उनमें कूट कूट कर भरी हुई है। उनके भाषण का बहुत इन परिषदों को जीवित बनाने के लिए अधिक समय और प्रभाव हुआ। सेठ जमनालाल जी का भी अन्तिम भापण तैयारी होनी चाहिए। मर्मस्पर्शी तथ भारतीय साहित्य-परिषद् भी साथ साथ होने से हर वर्ष की तरह सम्मेलन के अन्तर्गत भिन्न भिन्न सम्मेलन का कार्यक्रम इतना जकड़ गया था कि अधिकतर परिषदें भी हुई। किन्तु निर्वाचित अध्यक्षों के न आने से कार्य ठीक समय पर शुरू न हो सका। कार्यक्रम में अदलश्री टंडन जी को ही साहित्य और दर्शन-परिषदों की बदल भी कई बार की गई । इस प्रकार समय का अपमान अध्यक्षता का भार लेना पड़ा। ये दोनों परिषद एक साथ करना उचित नहीं मालूम पड़ता । अाशा है, भविष्य में ही कर दी गई। टंडन जी ने साहित्य और दर्शन के इस बात पर अधिक ध्यान दिया जायगा । पाठकों को यह पारस्परिक सम्बन्ध पर सुन्दर भाषण किया । विज्ञान-परिषद् जानकर ख़शी हुई होगी कि अागामी सम्मेलन शिमले में के निर्वाचित अध्यक्ष श्री रामनारायण जी मिश्र उपस्थित होना निश्चित हुआ है। थे। उनके ठोस और महत्त्वपूर्ण कार्य की सब लोगों ने प्रशंसा की। प्राचार्य नरेन्द्रदेव जी की अनुपस्थिति के दक्षिण-भारत हिन्दी प्रचार-सभा ने गत १८ वर्षों में कारण इतिहास-परिषद् का अध्यक्ष-पद इस बार फिर श्री अत्यन्त प्रशंसनीय काम किया है। इस सभा के प्रयत्न जयचन्द्र विद्यालंकार ने ग्रहण किया। कवि-सम्मेलन का का ही यह फल था कि उत्तर और दक्षिण भारत के लोग सभापतित्व श्री गांगेय नरोत्तम शास्त्री ने किया। राष्ट्रभाषा के द्वारा परस्पर विचार-विनिमय कर सके। विभिन्न परिषदों का वर्तमान ढंग बिलकुल सन्तोषजनक जिस पौधे को महात्मा गांधी और सेठ जमनालाल जी नहीं मालूम पड़ता। इन परिषदों में स्वागताध्यक्ष और ने अठारह वर्ष पूर्व लगाया था उसको अाज एक पुष्पित अध्यक्ष का भाषण पढ़ा जाना ही काफी समझा जाने लगा वृक्ष के रूप में देखकर किस हिन्दी-भाषी को प्रसन्नता है। महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होना ज़रूरी है। इसलिए न होगी ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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