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________________ मदरास का सम्मेलन लेखक, श्रीयुत श्रीमन्नारायण अग्रवाल हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन का अधिवेशन मदरास जैसे अाकर मोटर में ले गये। सेठ जमनालाल जी का डिब्बा ९ि अहिन्दी प्रान्त में होना कितना महत्त्वपूर्ण था, हमारे डिब्बे के पास ही था। मदरास-स्टेशन पर उनका इसका अन्दाज़ा तो सम्मेलन में उपस्थित हुए बिना नहीं खूब स्वागत किया गया। स्वयंसेवकों का भी अच्छा चल सकता था। महात्मा गांधी और सेठ जमनालाल जी प्रबन्ध था। हम लोग त्यागराय नगर में 'दक्षिण-भारतके कारण सम्मेलन ने वहाँ के. बहुत-से नेताओं और प्रति- हिन्दी-प्रचार-सभा' के नये भवनों में ठहराये गये। उसी ष्ठित सज्जनों तथा सन्नारियों को आकर्षित किया । हिन्दी- स्थान पर सम्मेलन का अधिवेशन भी हुआ। प्रचार और राष्ट्रीय भावना की दृष्टि से मदरास का यह शाम को थोड़ी ही देर बाद कनवोकेशन हुआ। अधिवेशन कुछ कम महत्त्व का न था। इसने राष्ट्रभाषा श्री पुरुषोत्तमदास टंडन ने दीक्षान्त-भाषण किया। महात्मा हिन्दी के सूत्र द्वारा उत्तर और दक्षिण को एक सूत्र में जी भी सभापति की हैसियत से उपस्थित थे। शहर के बाँधकर एक महान् राष्ट्र की पक्की नींव डाली है। जिस काम करीब करीब सभी प्रतिष्ठित लोग आये थे। महात्मा जी ने को महात्मा गांधी और सेठ जमनालाल जी करीब अठारह भी काफी देर तक भाषण किया और राष्ट्रीयता की दृष्टि वर्षों से कर रहे थे उसका दिग्दर्शन इस सम्मेलन से से हिन्दी-प्रचार का महत्त्व बतलाया। . मले प्रकार हुआ है। x दूसरे दिन दोपहर को सम्मेलन का खुला अधिवेशन वर्धा से हम लोग २५ मार्च को रवाना हुए। मैं हुआ। श्रीमती लोकसुन्दरी रामन (सर सी० बी० रामन महात्मा जी के डिब्बे में ही था । महात्मा जी के साथ सफ़र की पत्नी) स्वागताध्यक्षा थीं। उन्होंने हिन्दी में अत्यन्त करने का मेरा यह पहला ही मौका था। उनके दर्शन के सुन्दर भाषण किया। हिन्दी बोलना तो उनको अभी अच्छी लिए प्रत्येक स्टेशन पर इतनी भीड़ इकट्ठी हो जाती है, तरह नहीं पाता, लेकिन राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति उनका इसकी मुझे कल्पना भी न थी। रात भर "महात्मा गांधी अगाध प्रेम देखकर सबको बड़ा आनन्द हुश्रा। की जय” कानों में पड़ती रही । सेोना तो बहुत मुश्किल हो सेठ जमनालाल जी का भाषण छोटा किन्तु सारगर्भित गया। लेकिन महात्मा जी तो इतना शोरगुल होने पर भी था। साहित्यकार होने का दावा तो उन्होंने कभी किया गहरी नींद लेने के आदी हैं। दिन में तो महात्मा जी ही नहीं, और इस सम्बन्ध में उन्होने बड़े सुन्दर ढंग से हरिजनों के लिए धन एकत्र करने में लग गये। ज्यों ही अपनी सफ़ाई भाषण के शुरू में ही दे दी। किन्तु हिन्दीस्टेशन आता, और भीड़ हमारे डिब्बे के सामने इकट्ठी हो प्रचार-कार्य में सेठ जी ने तन, मन, धन से सेवा की है, जाती, महात्मा जी "डब्यो ! डब्यो ::' कह कर अपना और उन्होंने प्रचार का कार्य बढ़ाने के लिए अपने हाथ बढ़ा देते थे। पहले तो मैं 'डब्बो' का अर्थ नहीं अनुभव और विचार सरल किन्तु स्वाभाविक भाषा में समझा। बाद में मालूम हुआ कि 'डब्बो' का अर्थ तेलगू हमारे सामने रक्खे। अपने भाषण में उन्होंने दक्षिण के में 'पैसा' है। महात्मा जी के दर्शनों के लिए ज़्यादातर नेताओं से हिन्दी सीखने के लिए ज़ोरदार अपील की गरीब लोग जिनके तन पर काफ़ी वस्त्र भी नहीं थे, जमा ता.क हमको अन्तर्मान्तीय कार्य में एक विदेशी भाषाहोते थे। उनसे हरिजनों की सेवा के लिए महात्मा जी अँगरेज़ी का सहारा न लेना पड़े। एक एक पैसा एकत्र करने में संतोष मानते हैं। x x . x उसी दिन शाम को महात्मा जी ने मदरास के करीब मदरास-स्टेशन पर भीड़ कम करने के लिए श्री करीब सभी कांग्रेस के नेताओं को बुलाया और 'हिन्दु. पजगोपालाचार्य महात्मा जी को एक स्टेशन पहले ही स्तानी' को कांग्रेस की कार्रवाई की भाषा बनाने के सम्बन्ध x x Shree Sudharmaswami.Gyanbhandar-Umara, Surat. . . ... www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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