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सरस्वती
होगा कि पवित्र हाथों को इस तरह स्पर्श करने से क्या भोगना पड़ता है I
मुंज - श्रो दण्ड देनेवाली सुन्दरी ! जलती हुई लोहे की छड़ से मुझे दागना है १ यदि मुझे जलाने से ही तुम्हारी आत्मा को शान्ति होती हो तो मैं वह दुःख सहने के लिए इसी क्षण तैयार हूँ ।
मृणालवती -- तू तैयार हो या न हो, पर मैं तुझे कब छोड़ सकती हूँ ?
मुंज - किन्तु मेरे दाग देखते ही तुम्हारे हृदय में तीव्र वेदना न हो, इसका ख़याल रखना । मेरा दाग तुम्हारे कोमल हृदय में प्रवेश न कर सके, इसकी सावधानी रखना । तुम्हारे हृदय में होलिका प्रज्वलित न हो, इसका ध्यान रखना । ( वीरबाहु हाथ में तप्त लौह का छड़ लेकर आता है ।) ला, यहाँ ला, मैं स्वयम् इसे दाग दूँगी तू जा । (वीरबाहु जाता है ।) मुंज - लाओ, लाओ मोहमूर्त्ति ! अपने कोमल हाथ को
इतना कष्ट मत दो। मुझे दागते समय कहीं तुम्हारा कुसुम सम कोमल कर कुम्हला न जाय ! इसलिए यह रक्तवर्ण लोह मेरे हाथ में (मुंज मृणालवती के हाथ से उसे लेकर अपने हाथ को दाग देता है । हाथ का चर्म जलने से उसकी गन्ध से सारा वातावरण भर जाता है ।) क्यों अब तो तुम्हारे हृदय में शान्ति का साम्राज्य स्थापित हुआ न ? मृणालवती - (स्वगत) ग्रह ! कैसी इसकी हिम्मत है ? जलने पर भी इसके मुख पर कष्ट की ज़रा भी छाया दृष्टिगोचर नहीं होती। सच्चे वीर ऐसे ही होते हैं ! भय और मौत क्या, यह तो ये जानते ही नहीं। ऐसा
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[ भाग ३७
ही निडर राज सिंहासन पर शोभित होता है। ऐसे सिंह ही सार्वभौम शक्ति स्थापित करने में शक्तिमान् होते हैं । कायर - डरपोक मनुष्य कभी राजा बनने लायक नहीं ।
मुंज- अभी और कुछ बाक़ी रहा जाता है क्या ? अगर बाकी रहा जाता हो तो स्मरण शक्ति को ताज़ा करके For
मृणालवती - (स्वगत) कैसे कोमल हाथ हैं इसके ! आँखों में कैसा अद्भुत जादू भरा है ! चंद्र-सा शोभित मुखारविन्द है । पृथ्वी का चन्द्र चकोरी के बिना रह नहीं सकता और चकोरी चन्द्र के बिना क्षण भर भी नहीं जी सकती। मुंज मेरा चन्द्र है और मैं उसकी चकोरी । ( प्रकट में) मुंज ! वीर मुंज तुम्हें जीतने आई थी, किन्तु तुम अजेय रहे । मैं हार गई । आज मुझमें विचित्र परिवर्तन हु है I मुंज - श्राश्रो ! श्राश्रो सुन्दरी ! ज़रा नज़दीक श्राश्रो । मृणालवती - श्राज से श्राप मेरे प्रियतम और मैं आपकी
ू
प्रियतमा । प्रियतम ! आज से मैं मालव नगरी की महारानी हुई हूँ और आपकी पटरानी । प्यारे ! मेरा हृदय तुम्हारे मिलन के लिए आतुर हो
रहा था ।
मंज - आओ प्रिये ! तब तो तुम आज से मालव- नरेश की महारानी हुई । जगत् देखेगा और कहेगा कि तैलप की बहन मालवा की महारानी है ।
( पर्दा गिरता है)
['पृथ्वीवल्लभ' के आधार पर ]
झगड़ा लेखक, श्रीयुत बिसमिल
बन्दी का बखेड़ा है, न कुछ पस्ती का झगड़ा है। हक़ीक़त में फ़क़त मज़हब की अब मस्ती का झगड़ा है। कोई मुझसे अगर पूछे तो कह दूँ साफ़ ऐ 'बिसमिल' । न मजहब है, न मस्ती है, जबरदस्ती का झगड़ा है ||
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