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________________ संख्या ५] मदेशी ४३७ R [मडेरा के समुद्र-तट पर जलक्रीड़ा] १९३६ के १४ सितम्बर का मध्याह्न का समय था। के निम्न भाग से टकराकर फेनिल पर्वत का रूप धारण लगभग ४०० व्यक्ति पैरामारिबो शहर की जेटी पर बिदाई कर लेती थीं। समुद्र की नीरवता को भंग करनेवाली देने आये थे। दक्षिण-अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के यदि कोई वस्तु थी तो वह वायु संघर्ष से हायसंघर्ष से उत्पन्न हई ध्वनि बीच रहने के ये मेरे अन्तिम क्षण थे। कितने ही सहृदयों तथा जहाज़ के इंजन का संचालन । के नेत्र तरल थे। जहाज़ सुरीनाम नदी की दूसरी ओर डेक के एक कोने में बैठा हुआ मैं प्रकृति की नग्न खड़ा था, जहाँ पहुँचने के लिए यात्रियों को 'फेरी-बोट' सामुद्रिक शोभा को देख रहा था। पीछे से किसी के पाने से जाना पड़ता था। अतः ‘फेरी-बोट' में जा चढ़ा । मेरे की पदध्वनि सुनकर उधर मुड़ा तब एक दक्षिण-अमरीसाथ प्रोफेसर भास्करानन्द जी एम० ए०, बी० एल० तथा कन नवयुवक को अपनी ओर आते देखा। वह नवयुवक अन्य प्रेमीजन भी थे। थोड़ी देर में पैरामारिबो शहर के मुझे जानता था। बात यह थी कि उसने मेरे डच गायना भवनों का केवल धुंधला भर दृष्टिगत था। इसमें सन्देह के कई भाषणों को सुना था । पास आने पर बातचीत नहीं, उसका ऊँचा दीपस्तम्भ मकानों की पंक्तियों के बीच प्रारम्भ हुई। विजय-केतु-सा दिखलाई पड़ता था। "श्राप कहाँ तक जायँगे" ? युवक ने साधारण अँगरेज़ी कुछ मिनटों में 'यारेज नसाऊ' नामक डच-जहाज़ में पूछा। के सामने हम लोग आ गये । मडेरा और योरप जाने के "वैसे तो मैं भारतवर्ष जा रहा हूँ, पर इस समय लिए बहुत-से यात्री उसमें भरे हुए थे। कुछ मास पहले एम्सटर्डम जाना है ।” मैंने कहा। मुझे इसी जहाज़ से डच-गायना से ट्रिनिडाड की यात्रा "मैं भी एम्सटर्डम तक जाऊँगा।” युवक ने कहा । करने का अवसर मिला था । दूसरी बार इसी से यात्रा करने "एम्सटर्डम में आप क्या करते हैं ?" में जहाज़ के कई पूर्व परिचित कर्मचारी मिले । ___ "मैं विद्यार्थी हूँ और हेग में पढ़ता हूँ। एम्सटर्डम से आकाश निर्मल था। नक्षत्रों की ज्योति पूर्ण यौवना- कुछ घंटों में मैं हेग पहुँच जाऊँगा।" युवक ने उत्तर वस्था में थी। अटलांटिक महासागर को उत्तुङ्ग लहरें जहाज़ दिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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