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________________ ENAADIMAR मिडेरा में बे-पहिये की गाड़ी मडेरा लेखक, प्रोफेसर सत्याचरण, एम० ए० प्रोफेसर सत्याचरण जी के सम्बन्ध में हम दिसम्बर की सरस्वती में एक लेख छाप चुके हैं। आप दक्षिण अमरीका के प्रवासी भारतीयों में आर्य-संस्कृति के प्रचार के लिए गये थे। अब आप स्वदेश लौट आये हैं। यह लेख आप की वापसी यात्रा का है। इसमें आपने मार्गगत सुन्दर मडेरा द्वीप का वर्णन किया है। भारच META रत से बिदाई लिये लगभग सोलह- विशेषतः अगस्त और सितम्बर मास में दक्षिण-अमे - सत्रह मास से अधिक व्यतीत हो रिका के गोरे लोग योरप की यात्रा करते हैं। डच-गायना चुके थे। पिता जी की अस्वस्थता से योरप के लिए डच और फ्रांसीसी-इन्हीं दो लाइनों को और मातृभूमि के दर्शन की उत्कण्टा जहाज़ मिलते हैं । फ्रांसीसी जहाज़ों की अपेक्षा इस लाइन ने स्वदेश लौटने के लिए विवश के डच-जहाज़ अधिक साफ़ और तेज़ रफार के होते हैं। किया। जितने भी मास मेरे प्रवास- डच-जहाज़ वैसे तो लगभग ४-५ हजार टन के होते हैं, पर काल के दक्षिणी अमेरिका में कटे वे सांस्कृतिक प्रचार के अटलांटिक जैसे विशाल महासागर को पार करने में भी अतिरिक्त समाज-शास्त्र की दृष्टि से बड़े उपयोगी सिद्ध इनमें असुविधायें कम होती है। योरप से दक्षिण अमेरिका हुए । इच-गायना के जंगलों के बीच बहनेवाले नदी-नालों अाते समय 'कार्डिलेरा' नाम के जर्मन-जहाज़ से पाया से गुज़र कर कैसी विचित्र जंगली जातियों के अध्ययन था। यह डच-जहाज़ का लगभग दूना था और प्रत्येक का अवसर मिला, इसका उल्लेख पुनः कभी 'सरस्वती' दृष्टि से उत्कृष्ट भी। किन्तु योरप पाते समय डच-जहाज़ के पाठकों के सामने उपस्थित करूँगा। का ही आश्रय लेना पड़ा। ४३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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