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________________ संख्या ४] सामयिक साहित्य ४०३ किया। अपनी घरेलू परिस्थितियों के कारण मैं कालेज के लोगों पर ज़रूर असर पड़ता है। लेकिन इस नवयुवक की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका । अतः आपने ग्राम पुनर्रचना के साथ कठिनाई शायद यह है कि वह किसी सेवा-माव. का जो काम शुरू किया उसने मुझे ग्राम-जीवन ग्रहण से नहीं, बल्कि सिर्फ अपने निर्वाह के लिए रोज़ी कमाने. करने के लिए प्रोत्साहन दिया। मेरे पास कुछ ज़मीन है। को गाँव में गया है । और जो सिर्फ़ कमाई के लिए ही कोई २५०० की मेरे गाँव में बस्ती है। लेकिन इस गाँव वहाँ जाते हैं उनके लिए ग्राम-जीवन में कोई अाकर्षण नहीं के निकट सम्पर्क में आने के बाद कोई तीन-चौथाई में है, यह मैं स्वीकार करता हूँ। सेवा-भाव के बगैर जो लोग भी ज्यादा लोगों में मुझे नीचे लिखी बातें मिलती हैं- गाँवों में जाते हैं उनके लिए तो उसकी नवीनता नष्ट होते (१) दलबन्दी और लड़ाई-झगड़े, (२) ईर्ष्या द्वेष, ही ग्राम-जीवन नीरस हो जायगा। अतः गाँवों में जानेवाले (३) निरक्षरता, (४) शरारत, (५) फूट, (६) लापरवाही, किसी युवक को कठिनाइयों से घबराकर तो कभी अपना (७) बेढगापन, (८) पुरानी निरर्थक रूढ़ियों से चिपटे रहना, रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए। सबके साथ प्रयत्न जारी रखा (९) बेरहमी। जाय तो मालूम पड़ेगा कि गांववाले भी शहरवालों से यह स्थान दूर एक कोने में है, जहाँ आम तौर पर बहुत भिन्न नहीं हैं और उन पर दया करने व ध्यान देने से कोई आता-जाता नहीं। कोई बड़ा आदमी तो ऐसे दूर के वे भी साथ दंगे। यह निस्सन्देह सच है कि गाँवों में देश गाँवों में कभी नहीं गया। लेकिन उन्नति के लिए बड़े के बड़े श्रादमियों के सम्पर्क का अवसर नहीं मिलता। हाँ, आदमियों की सगति आवश्यक है। इसलिए इस गाँव में ग्राम-मनोवृत्ति की वृद्धि होने पर नेताओं के लिए यह रहते हुए मैं डरता हूँ। तो क्या मैं इस गाँव को छोड़ दूँ ? ज़रूरी हो जायगा कि वे गाँवों में दौरा करके उनके साथ आप मझे क्या सलाह और प्रादेश देते हैं।" जीवित सम्पर्क स्थापित करें। अतएव इस पत्रइसमें शक नहीं कि इस नवयुवक ने ग्राम-जीवन की प्रेपक जैसे नवयुवकों को मेरी सलाह है कि अपने जो तसवीर रवींची है वह अतिशयोक्तिपूण है, मगर उसने प्रयत्न को छोड़ न दें, बल्कि उसमें लगे रहें और जो कुछ कहा है वह आम तौर पर माना जा सकता है। अपनी उपस्थिति से गाँवों को अधिक प्रिय और यह बुरी हालत क्यों है, इसकी वजह मालूम करने के रहने योग्य बना दें। लेकिन ऐसा वे करेंगे ऐसी सेवा के ही लिए दूर जाने की जरूरत नहीं, क्योकि जिन्हें शिक्षा द्वारा जो गाँववालों के अनुकल हो। अपने ही परिश्रम से का सौभाग्य प्राम है उन्होंने गाँवों की बहुत उपेक्षा की गाँवों को अधिक साफ-सुथरा बनाकर और जितनी अपनी है। उन्होंने अपने लिए शहरी जीवन को चुना है। योग्यता हो उसके अनुसार गाँवों को निरक्षरता दूर करके ग्राम अान्दोलन तः इसी बात का एक प्रयत्न है कि जो हर एक व्यक्ति इसकी शुरुअात कर सकता है। और अगर लोग सेवा की भावना रखते है उन्हें गाँवों में बसकर ग्राम- उनके जीवन साफ़ सुघड और परिश्रमी हों तो इसमें कोई वासियों की सेवा में लग जाने के लिए प्ररित करके गाँवा शक नहीं कि जिन गांवों में वे काम कर रहे हेंगे उनमें भी के साथ स्वास्थ्यप्रद सम्पर्क स्थापित कराया जाय । पत्र- उसकी छत फैलेगी और गाँववाले भी साफ़ सुघड़ और प्रेपक युवक ने जो बुराइयाँ देवीं वे ग्राम-जीवन में बद्धमूल परिश्रमी बनंग। नहीं हैं। फिर, जो लोग सेवा-भाव से गाँवों में बसे हैं ये अपने सामने कठिनाइयों को देखकर हतोत्साह नहीं होते। वे तो इस बात को जानकर ही वहाँ जाते हैं कि अनेक कठिनाइयों में, यहाँ तक कि गाँववालों की उदासीनता के अगले मई महीने में महायुद्ध होते हुए भी, उन्हें वहाँ काम करना है। जिन्हें अपने श्रीयुत चमनलाल नवयुवक भारतीय पत्रकार मिशन और ख़ुद अपने आपमें विश्वास है वही गांववालों हैं। पिछले दिनों जापान की राजनैतिक स्थिति पर की सेवा करके उनके जीवन पर कुछ असर डाल सकेंगे। महत्त्वपूर्ण लेख लिखकर वे बड़ी ख्याति प्राप्त कर सच्चा जीवन बिताना ख़ुद ऐसा सबक है जिसका अासपास चुके हैं। आज-कल वे फिर जापान गये हैं। वहाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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