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________________ ३९० सरस्वती [भाग ३८ श्री हरिकृष्ण 'प्रेमी' आधुनिक छायावादी कवियों बेलेपेट, बेंगलौर सिटी हैं। दाम १) सजिल्द, पृष्ठ-संख्या में अच्छा लिखते हैं। भाव, भाषा, विचार और छन्द की २६० है। दृष्टि से उनकी यह रचना शुद्ध छायावाद का एक उत्कृष्ट इसमें हिन्दी अक्षरों में उन शब्दों का अर्थ दिया गया काव्य है। - है जो उर्दू, फारसी व अरबी याद भाषाओं के हैं और कवि के कथनानुसार 'यह पुस्तक प्रारम्भ से अंत उनमें से बहुतेरे हिन्दी-भाषा में भी प्रयोग में अाते हैं। तक एक ही कल्पना है। ससीम असीम को-या यों कहो सम्पादक ने अर्थ के सिवा यह भी दिखलाया है कि शब्द कि अात्मा ब्रह्म को प्राप्त करने का प्रस्थान करती है। किस भाषा का है, स्त्रीलिङ्ग है अथवा पुनिङ्ग है या इसकी इसमें प्रात्मा की एक स्त्री के रूप में कल्पना की गई है। व्याकरण-विषयक यह बात है। प्रारम्भ में अरबी-व्याकरण वह एक कटी में बैठी हुई है। किसी के मक-श्राहान से के कुछ नियम, अरबी-फारसो के उपसर्ग व प्रत्यय का श्राकर्षित होकर वह वहां से चल पड़ती है। मार्ग में उसे सक्षिप्त विवरण दिया गया है। जिससे इस छोटे से कोष अनेक प्राकृतिक दृश्य दिखाई पड़ते हैं। प्रभात के समय । कोष की मुख्य वह एक नाव लेकर सिंध में बह पड़ती है और उसे ज्ञात बात जो शब्द व अथ से सम्बन्ध रखनेवाली है, कहीं-कहीं होता है कि जिसकी खोज में वह चली थी वह दर त्रुटिपूर्ण अवश्य है। उदाहरणार्थ-मौज, मौजी, तजरवा नहीं है। तजरबाकार, तजल्ली, तजम्मुल को ज़ से न होना चाहिए और नगमा में ग़ होना चाहिए । - इस कथा की कल्पना में कवि के हृदय की सहृदयता और ऊँची उड़ान का अच्छा दिग्दशन होता है। पाण्डत इस प्रकार की कुछ और त्रुटियाँ हैं, तथापि सम्पादक माखनलाल चतुर्वेदी, सुमन जी और मिलिन्द जी के महाशय का उद्योग सराहनीय है । लोगों को इससे लाभ कथनानुसार इसमें उप नषदों की झलक है। ऐसी दशा में हो सकता है । कोष की छपाई व काग़ज़ सन्तोषजनक है। यह मध्यम श्रेणी के काव्य-प्रामयों के रसास्वादन की चीज़ -महेशप्रसाद मौलवी आलिम फाजिल नहीं है। हाँ, दाशनिक विचारक ही इस ग्रन्थ की कीमत ९--डाबर-पञ्चाङ्ग–यह डाक्टर एस० के० बम्मन. श्राँक सकते हैं। पुस्तक में वह स्थल अधिक आकपक कलकत्ता का सुन्दर पञ्चांग है। यह सचित्र पञ्चांग भी और कल्पनाप्रिय है जब स्त्री (आत्मा) रात्रि में कुटी को प्रतिवर्ष की तरह बड़े सजधज से प्रकाशित हश्रा है और छोडकर पर्यटन करती है और उसे माग में नदी, तालाब, बिना मल्य वितरित किया जाता है। इसमें ग्रह, उपग्रह, उपवन, समाधि का दीपक श्रादि मिलते हैं। राशिफल, वर्षफल इत्यादि सभी बातें दर्ज हैं । इसके सिवा अपने 'प्रवेश' में प्रेमी जी ने अपनी कुछ निजी बातें विविध और अत्युपयोगी अोपांधयों आदि का भी वणन भी लिखी हैं । एक स्थान पर लिखा है- "प्रेमी जी, है। इसमें राणा प्रताप के भिन्न भिन्न समय के तीन भव्य अापकी 'अनन्त के पथ पर' पुस्तक का जेल में गीता की चित्र हैं। यह पञ्चाङ्ग सभी के काम का है। ऐसे उपयोगी तरह पाठ होता है। यह उद्धरण पाण्डत हरिभाऊ उपा- पञ्चाङ्ग के अधिकाधिक प्रचार से 'जन-समाज का लाभ ध्याय के पत्र से लिया गया है। परन्तु हम इस रचना को ही है। 'गीतो' या 'उपनिषद' समझने में असमर्थ हैं। हम इतना -सुन्दरलाल द्विवेदी ही कह सकते हैं कि यह एक सुन्दर काव्य-ग्रन्थ है। १०-दी गार्डनर--यह अँगरेज़ी बाग-बगीचा-ज्योतःप्रसाद मिश्र निर्मल' सम्बन्धी एक साचत्र त्रैमासिक पत्र है। फल-फूल व ८-उर्दू-हिन्दी-कोष-संपादक, श्रीयुत एम० वि० सब्ज़ी आदि के बीजों के विक्रेता मेसर्स पेस्टन जी० पी० जम्बुनाथन, एम० ए०, वि० एस-सी०, अध्यापक मैसूर पोचा एण्ड सन्स हैं। यही उसे प्रकाशित करते हैं । विश्वविद्यालय, प्रकाशक, एम० वि० शेषाद्रि एंड कम्पनी, इसका वाषिक मूल्य ११) है। 'गाडनर' अपने विषय का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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