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________________ संख्या ४ नई पुस्तकें ३८९ छप्पय, चौपाई, दोहा, सवैया, वसंततिलका तथा दो-एक के एक विशेष अंग की पूर्ति होती है। इसमें लोक नीतिअन्य छंद पुस्तक में प्रयुक्त हुए हैं। बीच बीच में श्लोक संबन्धी प्रत्येक विषय पर महत्त्वपूर्ण दोहे लिखे गये हैं। भी दिये गये हैं। पुस्तक के अंत में कवि ने अपना गौरवपूर्ण वश-वर्णन यह १६ कला में विभाजित है। लंका, राम-रावण भी किया है, जो प्राचीन काव्य-प्रणेतानों की परिपाटी युद्ध, वानर सेना अादि का वर्णन इसमें नहीं है। केवल के अनुकूल ही है। पुस्तक संग्रहणीय है। श्री रामचन्द्र जी-सम्बन्धी बातों की ही इस काव्य में ६--ब्रजभारती-लेखक-श्रीयुत उमाशंकर वाजप्रधानता है। पेयी 'उमेश' एम० ए०, प्रकाशक, गंगा-ग्रंथागार, लखनऊ ___ इस पुस्तक के प्रणेता जोतिसी जी प्राचीन ढंग के हैं। मूल्य ||1) है। कवि हैं। अलंकार और रस पर भी अच्छा दखल रखते हैं। यह स्फुट कविताओं का संग्रह है। इसकी कवितायें इसलिए इनके इस काव्य की वर्णन-शैली अलंकारिक और दो खंडों में विभाजित हैं। पहले खंड में बाईस कवितायें रसात्मक है। स्थान-स्थान पर भाव और विचारों का हैं जो अपने ढंग की नई हैं। नये छंदों में नवीन भावों, सुन्दर सामंजस्य हुअा है। विभिन्न प्रकार के छन्दों के विचारों, कल्पनाओं का समावेश करते हुए ब्रजभाषा-शैली उपयोग. से इसके पढ़ने में अानन्द प्राप्त होता है। और उसके स्वरूप की रक्षा की गई है। नई शैली के इसका नखशिख, षटऋतु-वणन खूब सरस है। काव्य की संगीतमय छंद और ब्रजभाषा के माधुर्य से कवितायें काठनाइयों को दूर करने के लिए कहीं स्फुट नोट और आकर्षक और मनोरम हुई हैं। हमारी समझ में ब्रजभाषा टिप्पणियाँ भी दी गई हैं। इस काव्य पर इसकी उत्कृष्टता के कवियों में उमेश जी का यह प्रयास नवीन, साथ ही के कारण इस वर्ष का 'देव-पुरस्कार' प्रदान किया गया सुन्दर है । 'अन्तर्वेदना', 'जीवन-फूल', 'स्वप्नन्दरी' और है। हिन्दो प्रेमियों को ब्रजभाषा के इस सुन्दर काव्य- 'भारती' बड़ी सुन्दर रचनायें हैं । 'कुसुमवतो' अतुकान्त ग्रंथ का अवलोकन करना चाहिए । कविता है। यह भी ब्रजभाषा में लिखी गई है, जो ५-सरस-नीति - सतसई-लेखक-साहित्य-रत्न ब्रजभाषा-प्रेमियों को नवीनता की ओर आकषित करनेपंडित शिवरत्न शुक्ल सिरस', प्रकाशक, श्री राघवेन्द्र दत्त वाली है। शुक्ल, बछरावा, गयबरेली हैं । मूल्य १||) है । द्वितीय खंड में छंदों के प्रयोग में ब्रजभाषा की हिन्दी में नीति काव्य की कमी है। आधुनिक काल प्राचीन परिपाटी का अनुसरण किया गया है। केवल में ब्रजभाषा में वियोगी हरि की 'वीर-सतसई प्रसिद्धि पा कवित्त और सवैया-छंद ही उपयोग में लाये गये हैं। विषय चुकी है। सिरस-नीति-सतसई' इस विषय का दूसरा ग्रंथ भी प्राचीन ढङ्ग के हैं । जैसे—'वंशीध्वनि', 'गजेन्द्रमोक्ष', है। इसमें नीति-विषयक सात सौ से अधिक दोहे हैं। 'मीठी फटकार' प्रादि । कवितायें प्रायः प्रोजदोहों का विभाजन सात शतकों में किया गया है। स्विनी और प्रवाह से पूर्ण हैं। भावों और विचारों में भाव और विचार की दृष्टि से अधिकांश दोहे बड़े नयापन अवश्य है, किन्तु प्राचीनता की झलक यत्र-तत्र सुन्दर और बढ़िया हैं और उनके पढ़ने में आनंद अाता दिखाई देती है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास है। मौलिकता का गुण भी अच्छी मात्रा में प्राप्त होता है। आदि का भी द्वितीय खण्ड की रचनाओं में अच्छा किन्नु "दृष्टान्तों की मौलिकता की दृष्टि से रहीम, वृन्द आदि समावेश है। को बहुत पीछे छोड़ दिया है", भामका लेखक गिरीश जी उमेश जी का यह ग्रन्थ सर्वथा सुन्दर और आकर्षक का यह कथन कुछ चिन्त्य त्य है । हाँ, दृष्टान्तों की मौलिकता में है। भाव, भाषा, शैली और विचारों का दिग्दर्शन इसकी कुछ विशेषताय अवश्य हैं । इसकी भाषा शुद्ध ब्रजभाषा नहीं, रचनाओं में सुन्दर रूप में मिलता है। बरन मिश्रित है। इससे दोहों में वह प्रवाह नहीं आ पाया ७-अनन्त के पथ पर-लेखक, श्रीयुत हरिकृष्ण है जो व्रजभाषा-काव्य का जीवन है । तो भी शुक्ल जी का प्रेमी', प्रकाशक, भारती-प्रिटिग-प्रस, लाहौर हैं। यह ग्रथ एक मौलिक रचना है और इसके द्वारा साहित्य मूल्य १) है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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