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सरस्वती
[भाग ३८
२-अम्बा-लेखक; श्रीयुत उदयशंकर भट्ट, पुरोहित के षडयन्त्र से कुछ बदमाशों से लड़ते-लड़ते प्रकाशक, मोतीलाल बनारसीदास, सैदमिट्ठा बाज़ार, उनकी मृत्यु हो जाती है । पितृ-हीन असहाय लता नदी में - लाहौर, हैं । मूल्य १) है।
दुबकर अात्म-हत्या करने जाती है । परन्तु ज़मींदार, यह एक नाटक है। इसकी रचना महाभारत की एक लोकनाथ का भावुक हृदय तथा दीनों से सहानुभाते कथा के आधार पर की गई है। भीष्म काशिराज की रखने वाला पुत्र- 'अरुण' उसको रक्षा करता है। अन्त में
अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका नामक तीन पुत्रियों को लता और अरुण दोनों बहन और भाई के समान पवित्र • बलपूर्वक हरण करके ले आते हैं । इनमें से पिछली दो तो प्रेम से एक एक कुटिया में रहते और समाज-सुधार का विचित्रवीय नामक रोगी और अपाहज राजा से ब्याह दी काम करते हैं। एक दिन एक दृष्ट और सुधार की सीमा जाती हैं, और बड़ी कन्या अम्बा के सौभराज्य शल्व से से परे पहुँचे हुए ज़मींदार की हत्या अरुण कर डालता है पूर्व ही विवाह के लिए वचनबद्ध होने के कारण उनके और अंत में सत्य घटना का वर्णन करके फाँसी पाता है। पास जाने की अनुमति पाती है। परन्तु क्षत्रियत्व की लता उसके सुधार कार्य को चलाने का वचन देकर मिथ्या ठसक और मर्यादा के नाम पर शल्व उस प्रेम मयी लौट आती है। लता के पिता की मृत्यु कराने के बाद ही रमणी का अपमान करता है और उसे उच्छिष्ट कहकर पसली की अचानक पीड़ा से लोकनाथ मर जाते हैं और निकलवा देता है। अतएव वह प्र तहिसा की उग्र प्रतिमूर्ति अरुण की माता देवकी दीन और दरिद्रों की सेवा का व्रत बनकर भीष्म से बदला लेने के लिए निकलती है। अन्त लेती हैं । नाटक में रामनाथ नामक एक बौड़म मिडिल में शिव की कृपा से पर जन्म में वही अम्बा शिखण्डी के पास युवक भी अाता है, जो लता के पीछे पड़ जाता है रूप में भीष्म की मृत्यु का कारण बनती है। यही इस और अन्त में जिसे लता पागलखाने भिजवा देती है । नाटक का कथानक है।
यह साधारण कोट का नाटक है । चि:-पट की कहाभट्ट जी इसको रचना में सफल हुए हैं। चरित्रों का नियों के समान ही इसका प्लाट है। बीच-बीच में कवितायें चित्रण, भावों का घात प्रतघात तथा अपनी जोरदार और गाने हैं, जो अनेक स्थानों पर अस्वाभाविक है । रामनाथ भाषा के कारण एवं कला की दृष्टि से भी 'अम्बा' एक का चरित्र-चित्रण अस्वाभाविक तथा अनेक अशों में कथाउत्कृष्ट नाटक बन पड़ा है। क्राति की हूँकार और अव- वस्तु से असम्बद्ध है। नाटक के प्रधान पाः अरुण और मानित तथा सदा से नरत्व के द्वारा पददलित नारीत्व का लता के चरित्र साधारणतया अच्छे बन पड़े हैं। नाटक क्रोध इसमें बड़ी कुशलता से दिखाया गया है। नाटक की सबसे बड़ी त्रां यह है कि कथा वस्तु की चरम कोटि रंगमंच के लिए उपयोगी है । हिन्दी प्रमियों को इस उत्कृष्ट और विभिन्न अकी में बिखरे हुए दृश्य किसी एक मुख्य रचना का रसास्वादन करना चाहिए।
अश के पारपापक रूप में अंकित नहीं हो सके हैं। यों ३- लना-लेखक श्रीयुत रामचन्द्र सक्सेना.बी०ए० यह नाटक काफी मनोरञ्जक हे। समाज-सुधार के उद्देश हैं। मल्य ।। है। पता-सुकाव कार्यालय, फीलखाना, से लिखे जाने के कारण लेखक का प्रयास स्तुत्य है। कानपुर ।
-कैलाशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० ___यह एक सामाजिक नाटक है। लोकनाथ एक बड़े ४---श्री रामचंद्रोदय-काव्य-रचायता, श्रीयुत ज़मींदार हैं और अपने स्वार्थी तथा दुष्ट हृदय पुरो हत रामनाथ 'जोतिसी' राजकवि अयोध्या, प्रकाशक-हिन्दीकी मत्रणा से बड़ा-से-बड़ा अत्याचार करते हैं । उसी गाँव मंदिर, प्रयाग हैं । मूल्य २) में लता नामक एक सुशिक्षित कन्या के पिता समाज- यह ब्रजभाषा का एक नया काव्य है। इसमें श्री सुधारक के रूप में निधनता में जीवन काट रहे हैं। पुरोहित रामचन्द्र जी के अवतार-कारण से राज्यारोहण तक की की सलाह से धर्म की रक्षा के नाम पर एक दिन दिवाली कथा का वर्णन किया गया है। अंत में गोस्वामी जी की पर पुरस्कार देने के बहाने लता के पिता बुलाये जाते हैं रामायण के उत्तरकाड के अनुसार वेदात, ज्ञान, वैराग्य के और जब वे पुरस्कार लेकर घर लौटते हैं तब ज़मीदार और विचार भी लिपिबद्ध किये गये हैं। घनाक्षरी, सोरठा,
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