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________________ संख्या ४] - गोरों धाय का अपूर्व त्याग ३९: लगा हुआ है, जिसमें घोड़े पर सवार एक मूर्ति है और यद्यपि इन्हीं अप्रसिद्ध वीरों की सहायता से रणक्षेत्र में बड़े एक स्त्री पास खड़ी है । घुड़सवार पुरुष के हाथ में माला बड़े वीरकार्य होते हैं । है। लेख इस प्रकार है राजपूताने के गौरवान्वित इतिहास में ठीक यही दशा (१) “सं० १७६१ साके १६२६ रा जेठन्द ११ विस्तवार गोराँ धाय की हुई है । इसी विचार से ये पंक्तियाँ लिखी (२) घटी १३ धा ||मा। मनोर गोपी भलात गेलोत गई हैं * । (३) री देवगत परायण हुश्रा ने लारे सत कियो। (४) धा || गोरों बाई टांक......र... . * जोधपुर के सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ मुंशी देवीप्रसाद (५) बेटी उपर छतर मिती दु । भादों जी ने भी अपने लेख 'महाराजा अजीतसिह राठौड़' में जो (६) बद ४ "संवत १७६८ मंगलवार" १२ अप्रेल १९१२ ई. के 'संसार' समाचार-पत्र के अंक श्राश्चय है कि बड़े बड़े इतिहास-लेखक भी अपने . ४ में छपा था, गोराँ धाय के आत्म-त्याग का उल्लेख बड़े ग्रन्थों में किसी देश के महापुरुषों अथवा वीरों के चरित सुन्दर शब्दों में किया था। मुंशी जी के उस लेख के तथा लिखते समय गोरों धाय-से छोटे-मोटे वीरों का बिलकुल पं० गोकुलप्रसाद जी पाठक-कृत राजस्थान के सपूत' पृ० उल्लेख ही नहीं करते । यह वैसी ही बात है जैसे किसी और बाल इंडिया क्षत्रिय महासभा के मख-पत्र क्षत्रियमहायुद्ध की घटनाओं का वर्णन करते समय केवल प्रसिद्ध . मित्र (भाग २७ अंक ६ पृ०९) में प्रकाशित कविराजा सेनानायकों का ही गुणगान किया जाता है। किन्तु मेहरदानजी, पोयट लारियट', जोधपुर, के लेख मारवाड़साधारण सैनिकों के कार्य का नाम तक नहीं लिया जाता, राज्य के राष्ट्रीय गीत के अाधार पर यह नोट लिखा गया * देखो मिसल नं० ७७ सन् १९३० ई० कोटवाली है। इसके लिए हम इन लेखकों का आभार मानते हैं। जोधपुर रेवेन्यु ब्राच। -लेखक अन्वेषण लेखक, श्रीयुत गयाप्रसाद द्विवेदी 'प्रसाद' प्रणय का मधुर-मधुर इतिहास । बसता कण-कण में पराग केरत्नाकर के हृदय-पटल पर, बन अलियों की प्यास । विमल वीचियों के अंचल पर; लिखा प्रकृति ने शशिकिरणों से पढकर मंत्र-मुग्ध मलयानिल, करके प्रथम प्रयास। अखिल जगत से जीभर हिल-मिलानीरव-नभ के अन्तरग में, मुक्ति-मार्ग पर मुक्त विचरतीउडुगण के उर को उमग में; लेकर सरस सुवास। 5 मंगों में दिग्वधुओं के वन, उपवन, गिरि, सरित, सरों से, पाया विशद-विकास। कूजित पिक गुञ्जित भ्रमरों से रंग-बिरंगे फूल-फलों में, सुनने आता है वसन्त भीस्रवित अोस-कण मृदुल दलों में; बन मधु-माधव मास। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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