________________
भारत के प्राचीन राजवंशों का काल-निरूपण
लेखक, पण्डित अमृतवसन्त
पण्डित अमृतवसन्त पुरातत्त्व के सार्मिक विद्वान् हैं। इस लेख में उन्होंने यह बात प्रमाणित की है कि भारत का सूर्यवंश ही संसार का प्राचीन राजवंश है। यही नहीं, सुमेर, बैबलन तथा मिस्र के
प्राचीनतम समझे जानेवाले राजवश भी उसी भारतीय सूर्यवश से ही निकले हैं।
तो मिस्त. बेबीलोनिया, चीन आदि वहाँ क्यों नहीं प्राप्त हुआ? यह तो माना ही नहीं जा संसार के सारे प्राचीन देशों के सकता कि सिन्धु-उपत्यका में वैदिक आर्य-सभ्यता का प्राचीन और विशेषकर प्रारम्भिक प्रसार ही नहीं हुआ था जब कि ऋग्वेद के अनुसार सिन्धुराजवंशों का भी समय अनिश्चित-सा उपत्यका ही वैदिक अायं-धर्म का मुख्य केन्द्र थी। विद्वानों
है, परन्तु भारत के प्राचीन राजवंशों का कथन है कि आर्यों ने आकर मुहेंजोडेरोवासी द्राविड़ों को के समय की बात तो नितान्त ही अनिश्चित है। उपयुक्त परास्त करके दक्षिण की ओर भगा दिया और स्वयं वहाँ देशों में पुरातत्त्व की सहायता से थोड़ी-बहुत सत्यता के बस गये। तब तो अवश्य ही आर्य-सभ्यता के चित वहाँ साथ वहाँ के प्राचीन राजवंशों का काल-निरूपण किया प्राप्त होने चाहिए थे। सत्य बात तो यह है कि न आर्य जा चुका है, परन्तु भारत में तो यहाँ के प्राचीन राजवंशों ही बाहर से भारत में आये और न द्राविड ही कभी उत्तर. के समय की कोई वस्तु ही नहीं उपलब्ध होती, जिसके भारत में बसे । ये सब निराधार भ्रान्तिमूलक कल्पनायें हैं, अाधार पर उनके काल के विषय में कुछ निश्चित रूप से जो पाश्चात्य विद्वानों की कृपा से भारत में फैल गई हैं। कहा जा सके। यही कारण है कि अधिकांश पाश्चात्य वास्तव में सिन्धु-सभ्यता ही वैदिक आर्य-सभ्यता थी और विद्वान् यहाँ के प्राचीन राजवंशों के अस्तित्व को ही नहीं वह इसी देश में सरस्वती-नदी के तट-प्रदेश पर विकसित मानते। प्राचीन नगरों की खुदाई में मौय-काल से दो-एक हुई थी। इस प्रारम्भिक प्रार्य-सभ्यता के चिह्न सिन्ध के सदी पूर्व तक की ही वस्तुएँ प्राप्त हो सकी है, इसी लिए आमरी, विजनोत अादिक अनेक स्थानों में प्राप्त हो चुके हैं पाश्चात्य विद्वान् भारत के वास्तविक इतिहास का प्रारम्भ और वह 'श्रामरी सभ्यता' कहलाती है। सरस्वती के तटईसा से पूर्व सातवीं सदी से मानते हैं । सिन्ध-सभ्यता
* इस समय अमरीका की दो पुरातत्त्व संस्थानों की कुछ वर्ष पूर्व सिन्धु-उपत्यका में जो प्रागैतिहासिक अोर से चान्हूडेरो (ज़िला नवाबशाह, सिन्ध) में जो खुदाई काल की खुदाइयाँ हुई हैं उनकी प्राप्त सामग्री तो भारत हो रही है उसमें सिन्धु-सभ्यता के बाद की दो सभ्यताओं में आर्यों के आगमन के पूर्व की द्राविड़-सभ्यता के के नगर और अन्य पुरातत्त्व-सामग्री प्राप्त हुई है। इनको भग्नावशेष मान ली गई है और उसको सिन्धु-सभ्यता' क्रमशः 'झकार-सभ्यता' तथा 'झाँगर-सभ्यता' के नाम का नाम दे दिया है। यहाँ भी ऐसी कोई वस्तु नहीं उप- दिये गये हैं। पाश्चात्य विद्वानों ने इनको भी द्राविड़लब्ध हुई है जो शिशुनाग-वंश से पूर्व के किसी राज- सभ्यता माना है। मुहें जोडेरो की खुदाई के आधार पर वंश पर प्रकाश डाल सके। आश्चर्य तो यह है कि हड़प्पा उन्होंने कहा है कि इस सिन्धु-सभ्यता के पश्चात् यहाँ
और मुहेंजोडेरो में वहाँ की द्राविड़ मानी जानेवाली सिन्धु- प्राय-सभ्यता पाई। अब जब सिन्धु-सभ्यता के पश्चात् सभ्यता के अवशेषों पर बौद्ध-स्तूप तथा बौद्ध-काल की की दो और सभ्यताओं के चिह्न अभी हाल में मिले तब पुरातत्त्व-सामग्री उपलब्ध हुई है। बौद्ध-काल के पूर्व तथा वे उनको भी द्राविड़ मानने लगे हैं। यह कितने आश्चर्य . सिन्ध्रु-सभ्यता के पश्चात् की आर्य-सभ्यता का कोई चिह्न की बात है !
.. ३५०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com