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________________ संख्या ४] वह 'कल' कभी नह। आया ३४५ मोटा व्यापारी ज़मारिन की इस लाचारी को समझता बर्फ से ढंकी हुई रेती में मैं बर्फ के गेंद बना . था। और फिर यदि मुकद्दमा दायर भी हो गया तो कौन बालकों से खेलने के लिए बहुधा चुपके से घर से निकल ऐसा पदाधिकारी है जो घूस नहीं लेता। इस प्रकार जाया करता था। कई बार ठण्ढक लगी और मैं मरतेभी उसी की विजय थी। ज़मारिन न तो उसके समान मरते बचा। फिर भी अपनी बान नहीं छोड़ता था। पिता घूस देगा और न दे ही सकता है। मोटे व्यापारी जी को जब भी पता लगता तब मुझे बहुत डाँटते। माता ने लोक-पक्ष का सन्तुष्ट रखने के लिए पहले मेल का से कभी-कभी झगड़ा भी हो जाता था कि अकेले लड़के स्वाग भरा और फिर एक व्यंग्यात्मक अपमान के झटके को इतना न डराना चाहिए। पिता जी कहने लगते कि से मल के सूत्र को सहसा तोड़ दिया। किसको पड़ी है यदि इसे डॉटोगी भी नहीं तो यह बिलकुल बेबस हो कि दूसरे के बीच में पड़े। फैटी के टुकड़ों से पलनेवाले जायगा । इसी प्रसग में उन्होंने एक बार एक कहानी ज़मारिन के प्रतिकूल वातावरण बना रहे थे। धन का सुनाई थी, वह थोड़ी बहुत मुझे स्मरण है। साइबेरिया के बबरता-पूर्ण मद न्याय की छाती पर अन्याय का रथ हाँक उत्तरी भाग में एक बड़ा अजगर रहता था। दूर से ही रहा था। सच्चाई का सूर्य अँठाई की धुवाँधार गोलेबाज़ी में यदि कोई यात्री अथवा पशु-पक्षी उधर से निकलता, बिलकुल छपा था। वह अपनी वेगवती साँस से घसीटकर खा जाता। एक बार, हिचक पाप और पुण्य के युद्ध का आह्वान है । परन्तु हैकटी नामक एक पहुँचा हुअा पादरी उधर से निकला। मोटे व्यापारी की पाप-पुण्य की मेड़ स्पष्ट न थी। फैटी अजगर ने उसे भी घसीटना प्रारंभ किया। हैकटी उस समय भी हिचका नहीं जब उसने सरकारी अफसरों को ने वेग से चिल्लाकर कहा, घबड़ायो नहीं, मैं स्वयं श्रा ज़मो रन के पडयन्त्रकारी मस्तिष्क की व्याख्या की और रहा हूँ । पास पहुँचकर उन्होंने उसे अहिसा का उपदेश उसके वैर और कोप से अपने को बचाने की प्राथना की। दिया कि जब मिट्टी से तुम्हारा पेट भर सकता है तब जीववे दोनों से रुष्ट थे। इस संघर्ष में सम्भव है, कुछ मतलब हिसा करने से क्या लाभ ? अजगर की समझ में कुछ श्रा की बात मिल जाय, इसी ।लए इसके उकसाने में सुख था। गया। एक सप्ताह के बाद हैकटी फिर उधर से निकला। जामोरिन अकेला होकर अकेला ही घर पर बैठा था। देखता क्या है कि बहुत-से बालक अजगर पर सवारी किये वह अपनी साँसों से बात करता, अपने आँसुत्रों से उसके नथुनों को नाथे मुँह में लकड़ी डाल रहे हैं, पूँछ अपनी गाथा लिखता । शरीर कुढ़ चुका था। उसमें उत्ते- में रस्सी बँधी है, अजगर की बड़ी बुरी दशा है, उसके नेत्रों जना की चिनगारी और मन में विचारों का बात-चक्र। में धूल डाली जा रही है। हैकटी को बड़ी दया आई। वह अपने को सामने रखकर सोचता, मैने कितने षड़यंत्र बच्चों से मुक्त करके वह सोचने लगा कि यह मेरे ही पराकिये। सरकारी पदाधिकारी मेरे नाम से काँपते थे। मेरी मश का परिणाम है। अजगर से कहने लगे--अरे भाई योजनायें हमेशा सफल हुई । आज भी लड़खड़ाती हुई मैंने हिसा करने को मना किया था; यह थोड़े ही कहा था ज़ारशाही पर मेरे धक्के का भी प्रभाव है। में यदि कुछ कि अपनी फुसकार भी छोड़ दो। पिता जी ने कहा कि समझकर कुछ काल के लिए कुछ मित्रों और सम्बन्धियों बच्चों को ठीक रखने के लिए इसी फुसकार की श्रावके हित के लिए शान्त जीवन से परिणत होकर फैटो के श्यकता है । मैं सोचता हूँ कि मूखों और धूर्तों को ठीक यहाँ आया ता अाज यह अपमान मिला। यह वही फैटी रखने के लिए भी इसी फुसकार की आवश्यकता है। है जो मेरी पूजा करता था। पड़यंत्र के लिए मैंने जब जितना मैंने इसे छोड़ दिया इसी लिए फैटी को मेरा अपमान चाहा, धन |लया । उसने प्रसन्नता से अथवा भय से हमेशा करने का साहस हुआ। मेरी झोली भरी थी। वही आज मैं इतना अपदार्थ हूँ। ज़मारिन के इस विचार-विस्तार का सूत्र उलझ गया। फैटी ने मुझे अपने यहाँ बड़े अनुनय और विनय से बुलाया सहसा उसके एक मित्र ने आकर कहा कि मुझसे कहो, मैं था । आज वह मुझे तिरस्कार करने में अानन्द का अनुभव अभी तुम्हारे अपमान का बदला लूँगा। करता है। क्या इसमें भी मेरा ही दोष है ? ज़मारिन कुढ़कर क्षीण तो हो गया था, परन्तु उसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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