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सरस्वती
[भाग ३८
विचार-बल अशक्त न था। वह फिर सोचने लगा कि फैटी ने दोनों पत्रों का खूब प्रदर्शन किया। ज़मोरिन व्यक्तिगत झगड़े के लिए लोक-रक्षा के लिए संग्रहित को और भी लज्जित होना पड़ा। उसके दल के लोग बल तथा अनुयायियों का प्रयोग उचित नहीं। जन-सुधार मनमानी करने की उससे अाशा मांगते । जमारिन कभी के लिए अपने सारे प्रयोगों को काम में लाना क्षम्य है। मना करता, कभी चुप रह जाता। परन्तु हृदय में बदला परन्तु अपने व्यक्तिगत अपमान के प्रतिशोध में कोई काम लेने की भीषण ज्वाला की कोई भी लपक उसके साथीन कर डालना ठीक नहीं। लोग कहेंगे और ठीक कहेंगे देख पाते । मित्र दाँत पीस कर रह जाते। कि एक डाक और हत्यारे की भाँति मैंने फैटी के साथ तार एक-दूसरे से लड़ क्यों नहीं जाते ? इसके तल व्यवहार किया। इसका पवित्र उत्तर मेरे पास कोई नहीं है। पर मानवयुक्ति है, जिसने खम्भों पर उन्हें सावधानी से
परन्तु इस समय लोक-जीभ सेा रही है। वह मेरे कस दिया है। इससे कम युक्ति-युक्त वह अदृश्य विधान नहीं पक्ष में क्या कहती है ? लोक के कानों तक पहुँचने के जो बादलों के पहाड़ों को अन्तरिक्ष में सँभाले रहता है। लिए ज़ोर का विस्फोट चाहिए । वह अभी नहीं हुआ है। किसी ऐसे ही अदृश्य अवरोध ने उबलते हुए ज़मारिन को मेरे आगामी काय में वह धड़ाका होगा कि सबकी आँखें भी थाँम रखा था। बहुत काल व्यतीत हो गया। सबने मुझे ही घूरने लगेंगी। पर अभी अपमान का जो घुन यह जाना कि ज़मारिन कुचल दिया गया। फैटी का आतङ्क मुझे खाये जाता है उसे कोई अनुभव नहीं करता । बहुत बढ़ा, उसका धन भी बढ़ गया। साथ ही साथ उसके सोच-विचार कर जमोरिन ने फैटी को एक पत्र लिखा- विचारों में भी विपर्यय होगया। वह खुल्लम-खुल्ला ज़ार मोशिये ह्य वो,
का.समर्थन करने लगा। समवितरणवादियों को कुचलनेतुम्हारे और मेरे बीच में मनो-मालिन्य बढता जा वाली मन्त्रणाअों में वह सरकारी परिषदों के गुप्त अधि. रहा है। तुमने मेरा घोर अपमान किया है और मुझे वेशनों तक में पहुँचने लगा। इसके पूर्व-परिचित नवयुवक बेईमान कहा है। मैं इसका प्रतिशोध द्वन्द-युद्ध करके सबसे पहले फाँसे गये। लेना चाहता हूँ। कृपया समय और स्थान निश्चय करके इधर आतङ्क बढ़ा और उधर क्रान्तिकारियों का वेग। सूचना दीजिए। इस आमन्त्रण को स्वीकार न करने से क्रांति एक अोर से दबाई जाती और दूसरी ओर उभर दोनों पक्षों की महती हानि हो जाने की आशंका है। निकलती। इसी बीच में एक पत्र में प्रकाशित हुआ कि
भवदीय वैरी राजधानी से थोड़ी दूर पर किसी ने फैटी की हत्या कर
जमोरिन दी। सरकारी पदाधिकारियों ने हत्यारे को भी निर्माण कर फॅटी ने तुरन्त उत्तर लिख दिया
लिया। ज़मोरिन फांसी के लिए न्यायाधिकरण में खड़ा ज़मोरिन,
किया गया। न्यायाधीश के समक्ष ज़मोरिन ने बयान दिया तुम्हारा अशिष्ट पत्र मिला। तुम जिस बर्बर-प्रथा और कहा कि मैंने फैटो को नहीं मारा है। का आश्रय लेना चाहते हो वह हम सभ्य लोगों को न्यायाधीश ने उसकी बातों के बड़े मनोयोग से सुना। स्वीकार नहीं। तुम्हारे लिए न्यायाधिकरण खुले हैं। यदि वह लेखनी रखकर कुछ सोचने लगा। 'फैसला कल सुनाया तुम्हें शरीर-बल के संघर्ष में ही पशुओं की भाँति अानन्द जायगा'--यह कहकर वह उठ खड़ा हुअा। श्राता हो तो मेरा मोटा चौकीदार ट्रास्की तुम्हारी नसें कहते हैं कि उसी शाम को ज़ार रूस से मिट गया। तोड़ने के लिए प्रस्तुत है। मैंने उसे अाशा दे दी है। मैं ज़मोरिन जेल के बाहर था। वह भाषणों द्वारा जनता में बिलकुल शान्त हूँ। तुम्हारा जो मन भावे करो। तुम्हें उत्तेजना पैदा कर रहा था। सैकड़ों लोग उसके पीछे थे। 'उसका परिणाम भोगना पड़ेगा।
और फिर फैसला सुनाने वाला वह 'कल' कभी नहीं ___ ह्य वो आया।
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