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________________ ३४४ सरस्वती [भाग ३८ कर कोई आरोप लगा कर निकाल देना फैटी के स्वामि- दफ्तर में प्रतिदिन नियुक्ति और वियुक्त हुश्रा करती। सेवक-व्यवहार-शास्त्र की प्रस्तावना में लिखा था। सरकारी सेवकों को स्वामी के लिए कोई स्नेह न था, फिर भी क्षेत्रों में और विप्लवकारी मठों में यह संवाद प्रचलित था लोग श्रा ही जाते थे। मित्रों ने भी यह मानना प्रारम्भ कि मोटा व्यापारी धन से और नौकरी से नवयुवकों की किया कि कहीं कोई भारी भ्रम है; फैटी और फ्रास्टी सहायता करता है। परन्तु जिस किसी नवयुवक का स्वामि- रुपये के सम्बन्ध में बेईमान और आन्दोलन के सम्बन्ध में संवक के नातं उसका नाता जुड़ा वह उससे रुष्ट होकर ही कायर और लुक-छिप कर बचनेवाले हैं। जाता था। समय आया कि ज़मोरिन नामक एक नवयुक ने ____मील की संख्या बतलानेवाले पत्थर किसी यात्री एक प्रतिबन्ध-पत्र के अनुसार फैटी के यहाँ नौकरी की। में साहस और किसी में थकावट उत्पन्न करते हैं; ज़ार के इसने बड़े परिश्रम से काम किया। उसने इसकी प्रशंसा घोर दमन में किसी ने क्रांति की सफलता और किसी ने की और वेतन बढ़ा दिया । दूध-पानी की भाँति दोनों वि.लता देखी। फैटी को इसी असमञ्जस की स्थिति में घुल-मिल गये थे; परन्तु व्यापारी की बेईमानी ने खटाई सुख था। वह क्रांति की प्रेरणा करनेवाले सिद्धान्तों से डालकर दोनों को पृथक कर दिया, मनोमालिन्य बढ़ा। घृणा करता था, परन्तु सरकारपक्ष ग्रहण करके लोकप्रियता ज़मारिन साम्यवादियों का प्रमुख व्यक्ति था। इसे ज़ारको भी नहीं छोड़ना चाहता था। द्वारा दण्ड भी मिल चुका था-केवल फाँसी से बच मोटे व्यापारी ने फ्रास्टी नाम का एक चाटुकार सेवक गया था। इसे अपनी ईमानदारी और देश-सेवा की रख छोड़ा था। इसे वह अच्छा वेतन देता था। ज़ार-विरोधी ऐंठ थी; उसे अपने धन का इठलाता हुआ मद था। मोटे अान्दोलन में कभी भाग लेने के कारण लोकप्रिय व्यक्तियों व्यापारी ने आरोप लगा कर ज़मोरिन को निकाल दिया। में इसका स्थान था। इसके द्वारा फैटी अपने का प्रसिद्ध ज़मेरिन बहुत उष्ण, भावुक, स्पन्दनशील, आत्मकिये हुए था । लोकप्रियता के प्राण खींचने के लिए इसे गौरव की रक्षा में सब कुछ खोदेनेवाला व्यक्ति था। वह अपनी स्वास-नली बनाये था । यह रुई की भाँति नरम, इसकी अप्रतिष्ठा तो मोटे व्यापारी ने खूब की, परन्तु इसके गिँजाई की भाँति घिनौना, बन्दर की भाँति स्वामि-भक्त विरोध में आ जाने से मोटे व्यापारी की अपीति और और गिरगिट की भाँति चट पलट जानेवाला था। जिसके बढ़ी । सूर्य-ग्रहण तो हुआ, परन्तु चन्द्रमा का कालापन सब प्रति यह परिचय दिखाता वह इससे पिण्ड छुड़ाना लोग देखने लगे। इस संघर्ष में भी मोटे व्यापारी ने चाहता। जिस पर यह प्रेम से हाथ रखता उसकी साँस फ्रास्टी का ही सामने रखा। उसी की आड में उसने ऊबने लगती। मोटे व्यापारी को कूट मन्त्रणानों का यह सब कुछ किया। साधन था। उत्तरदायित्व इसका रहता था और उद्देश 'उसने मुझे बेईमान लिखा और स्वयं मेरे साथ इसके स्वामी का पूरा होता था। दोप इस पर मढ़ा जाता बेईमानियाँ की'---यह भावना ज़मोरिन को मारने-मरने के था, लाभ उसका होता था। लिए तक तैयार किये थी। उसके पास धन है और साधन धीरे-धीरे मोटे व्यापारी के विषय में यह प्रसिद्ध हो है । बड़े शक्तिमान् और प्रभावशाली व्यक्तियों के पास गया कि उसने मैचलिन से धोखा देकर झूठे हस्ताक्षर उठता-बैठता है। सब उसी की ऐसी कहेंगे।'-यह भी करा लिये, अपने विश्वासी सेवक लीना को भ्रम में डाल- ज़मोरिन समझता था। कर उसकी सारी कमाई का भाग हड़प लिया और उसे ज़मारिन ने पहले सोचा कि प्रतिबन्ध के अनुसार धता बताया, इंग्लैंड की किसी कम्पनी से झगड़ा हुआ मोटे व्यापारी के प्रतिकूल ज़ार-सरकार की शरण लें, पर तब उसका सारा फाइल जाली बनाया गया। उदार विचार- वकील का व्यय, अदालत का व्यय और यदि हार गये वाले बड़े व्यक्ति कुछ उदासीन होकर यह कह दिया करते तो प्रतिवादी का व्यय, यह सब मर मिटने की बातें थे कि यह काम फ्रास्टी का है। मोटा व्यापारी भी इसे थीं। ज़मोरिन के पास क्या था ? उसे इतना वेतन भी अस्वीकार नहीं करता था। कभी नहीं मिला कि वह सुख से कुछ एकत्र कर सकता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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