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________________ संख्या ४] . वह 'कल' कभी नहीं आया का भद्दा था। इस मोटे व्यापारी का अर्थ और यश थोड़ी मोटे व्यापारी का दफ़र बिलकुल साफ़ और सामयिक श्रायु के पदार्थ थे। वह पढ़ा-लिखा था। पहले एक छोटे था। सब चीज़ दर्पण की भाँति जड़ी हुई थी। परन्तु इस वेतन का कर्मचारी और फिर एक बड़े वेतन का पदाधिकारी बाहरी उज्ज्वलता और दिखावटी ईमानदारी की प्रेरणा में बना। बाद में एक बड़े व्यापारी के एक छोटे काम का बड़ी गन्दगी और बेईमानी थी। दफ्तर को शुद्ध, साफ़ छोटा हिस्सेदार हो गया। इससे बढ़ा तब उसने एक स्वतन्त्र रखने के लिए न जाने कितनी बहियों के पृष्ठ फाड़े जाते व्यापार खोल दिया। जिन सीढ़ियों पर पैर रखकर वह थे, कितनी बार काग़ज़ बदला जाता था और कितने जाली ऊपर चढ़ा उन्हें हमेशा पैर से कुचलना ही उसने अपना पत्र लिखे जाते थे। फ़ाइलें की फ़ाइलें बदल दी जाती कर्तव्य समझा। थीं। जाली हस्ताक्षरों के स्वीकृत-पत्र और भरपाई की मोटे व्यापारी का जिससे जिससे सम्पर्क हुअा, सब झूठी रसीदें भरी पड़ी थीं। परन्तु इँटी के ये सारे दोष यही कहा करते थे कि रुपये-पैसे के सम्बन्ध में वह साफ़ उसके वाचाल समवितरणवादी नवयुवक ढंके रहते थे। नहीं है। वह यह कहता कि लोग ऐसा सभी व्यापारियों 'जो अान्दोलन के लिए इतना धन दे सकता है वह के लिए कहते हैं । यात्रा करनेवाले के हो वस्त्र गंदे होते बेईमान नहीं हो सकता।' बेचारे यह न जानते थे कि हैं, घर में बैठे रहनेवाले के नहीं। व्यापार-शास्त्र में बेई. उनके नाम से एकत्र किये हुए धन का कितना बड़ा मानी पाप नहीं है। कीचड़ को बचाकर चलनेवाला हो भाग वह अपने पास बचा लेता था। गिरता है। इस मोटे व्यापारी के भारी पेट में दुनिया की ज़ार के प्रतिकूल जो अान्दोलन वेग से चल रहा चालाकी और फ़रेब छिपे थे। जितना ही उसका धन बढ़ा, था, मोटा व्यापारी धन से, गुप्तरूप से, उसको सहायता उतना ही उसका पेट बढ़ा और साथ-साथ पेट के कोष की देता। दूसरे व्यापारियों और धनिकों से नवयुवकों के साथ भी वृद्धि हुई। अपने गुप्त-सम्बन्ध का रहस्यमय ब्योरा देकर उन्हें ठगता फैटी शिक्षित तो था ही, उसकी बैठक-उठक भी और ठगे हए धन के कुछ भाग को अपना कहकर नवव्यापारियों में कम और शिक्षितों में अधिक थी। व्यापारियों युवकों को फुसला दिया करता। जिन श्रादर्शों की प्रेरणा को एक-दूसरे के लिए बेईमान कहना साधारण बात है, से विप्लव का सूत्रपात हुआ था उनसे इसे गहरी घृणा थी, अतएव मोटे व्यापारी पर किये हुए आरोप का कोई विशेष परन्तु जिन युवकों का इसमें हाथ था उन्हें वह हाथ में महत्त्व और प्रभाव जिस वर्ग में वह मिलता-जुलता था, रखना चाहता था। और वह केवल अपने प्रभाव को न पड़ा । परन्तु जिस पर बीती थी वह समझता था, जो अक्षण्ण रखने के लिए। वह लोकप्रिय बना रहे और समझता था वह जानता भी था तथा जो जानता था वह व्यापार उसका बढ़ता रहे यही उसकी आकांक्षा थी। क्रांति मानता भी था। की लपेट में बड़े-बड़े धनिक आथे. परन्तु नवयुवकों ने मोटे व्यापारी में एक और विशेषता थी। देश के उसे क्रांतिसेवी कहकर बचा लिया। प्रगतिशील नवयुवकों को वह अपनी ओर खींचे रहता धनिकों की संख्या विरल दाँतों की भाँति अभद्र दिखाई था। उनकी सस्थाओं को कुछ चन्दा दे देता था। किसी देने लगी। क्रांति की पौ अभी-अभी फटी थी। दसरे की किसी को अपने यहाँ भोजनों में बुला लिया करता था। कमाई से ऐंठ कर चलनेवाले कुबेर दूसरे के प्रकाश से कभी-कभी उन्हें अपने मोटर पर सैर करा देता था। सरल आलोकित चन्द्रमा की भाँति तेजहीन थे। समाज के सबसे नवयुवक, भुक्खड़ देश-भक्त, दिवाला निकाले हुए व्यापारी, ऊँचे कहे जानेवाले व्यक्तियों पर आपत्ति पहले आई। निठल्ले ठेकेदार, चापलूस सम्पादक सभी का उसके यहाँ प्रभंजन वृक्ष की सबसे ऊँची पत्ती को पहले झकझोरता है। अड्डा था और सबका वह उपयोग करता था। प्रभावशील फैटी दूसरों को दुर्दशा पर हँसता था। वह ज़ार के प्रति व्यक्तियों के साथ का लाभ व्यापार में उठाता था। बेई- घृणा-प्रचारकों का छिप-छिपकर साथ देता था। परन्तु मानों से बेईमानी के और झूठे काम लेता था। मुखर उसके व्यक्तिगत जीवन में कहीं अधिक जारशाही थी। चापलूसों से अपनी प्रशंसा का ढिंढोरा पिटवाता था। नौकरों को गाली देना और मारना और वेतन बढ़ता देख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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