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भूले हुए हिन्दू
लेखक, श्रीभाई परमानन्द जी, एम० ए०,
एम० एल० ए०
हिन्दू-संस्कृति की रक्षा के सम्बन्ध में श्रीमान् भाई परमानन्द जी के अपने खास विचार हैं। अपने इस लेख में उन्होंने उन्हें विलक्षण ढंग से व्यक्त किया है। परन्तु इस विचारकोटि का एक दूसरा पहलू भी है। जो महानुभाव उस पहलू से इस प्रश्न पर अपने विचार प्रकट करना चाहेंगे, हम उनका भी लेख 'सरस्वती' में छापने को तैयार हैं ।
Paneeaanemचन में अपनी विजय पर कांग्रेस बहुत बात भी कि कांग्रेस का आन्दोलन हिन्दुओं को किधर ले
द खुश है । खुश होना भी चाहिए। जा रहा है। नि हिन्दू तो कांग्रेस के नाम पर मुग्ध हिन्दुओं को ज़रूरत है तो इस बात की कि वे ऐतिहाPG मालूम देते हैं । वे कहते हैं, "हम सिक घटनाओं तथा तथ्यों को विचार-पूर्वक देखना सीखें।
कांग्रेस को वोट क्यों न दें जब कि तभी कहीं वे उनसे राजनैतिक शिक्षायें प्राप्त कर सकते
कांग्रेस ने हमारे लिए इतना कुछ हैं। ग्राइए, थोड़ी देर के लिए यह देखें कि कांग्रेस का किया है ?” एक दृष्टि से ये हिन्दूसच्चे हैं । न इन्होंने संसार वर्तमान अान्दोलन कैसे शुरू हुअा, इमकी रफ्तार क्या थी की विभिन्न जातियों के इतिहास का अध्ययन किया मालूम और इससे परिणाम क्या निकले। होता है, न इनको शायद यह मालूम है कि इस देश तीन बाते हैं जो बड़े ज़ोर के साथ लोगों के सामने के अन्दर पहले क्या कुछ हया है। इनका ख़याल है कि रक्खी जाती हैं। पहली यह कि जो जागृति हमें जनइससे पूर्व न इस देश में कभी अत्याचार या ज़न्म साधारण या जनता में दिखाई दे रही है वह सब कांग्रेस के हुया है, न विदेशी हमलों के तूफ़ान आये हैं; न इस कार्य का फल है, दूसरी यह कि कांग्रेसवालों ने हमारे लिए : देश में देशभक्त पैदा हुए और न उन्होंने राष्ट्र को कुरबानियाँ की हैं और तीसरी यह कि वर्तमान विधायक बचाने तथा दासत्व से निकालने के लिए करबानियाँ की। उन्नति कांग्रेस की कुरबानियों का फल है। हम एक-एक अगर ये हिन्द्र अपने पिछले इतिहास को अच्छी तरह जान बात को लेकर उसकी परीक्षा करने का प्रयत्न करते हैं। . लें तो इनको पता लगे कि अाज-कल कुरबानियों की असलि- पहली बात देश में जागृति के सम्बन्ध में है । सन् यत के बजाय शोर बहुत ज्यादा है। बात भी ठीक है। १९१४-१५ में कांग्रेस का एक खास मंतव्य था। इसके जिन लोगों को असलियत परखने की समझ नहीं होती अनुसार जो कोई मनुष्य कांग्रेस का सदस्य होना चाहता । उनको प्रायः शोर ही पसन्द पाता है और इस शोर का उसे गवर्नमेंट के प्रति राजभक्ति की शपथ खानी पड़ती। ही उन पर असर होता है। ऐसी ऐतिहासिक घटनायों के सन् १९०८ से १९१५ तक यह कांग्रेस राजनैतिक दृष्टि से अध्ययन से एक और बड़ा लाभ यह होगा कि लोगों को एक नीम-मुर्दा-सी संस्था थी। ऐसी दशा में देश के अन्दर इस बात का पता लग जायगा कि दासत्व से स्वतन्त्रता जागृति उत्पन्न हुई तो इसका सबसे बड़ा कारण योरप का प्राप्त करने का तरीका कौन-सा है। इसके साथ ही यह महायुद्ध था। इस युद्ध के दौरान में इंग्लैंड की हालत
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