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सख्या ४]
खूनो लोटा
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लम्बोदर-अजी, अभी-अभी यह हालत हो गई। मैं . जाइए । तकलीफ़ तो होगी ही, पर क्या किया जाय ।।
आपके यहाँ आदमी भेजने ही को था। . लम्बोदर [उठकर बैठते हुए] - अरे बाप रे ! । अोझा जी—मैं घर को जा रहा था। रास्ते में सुना, आपकी अोझा जी [लम्बोदर के सिर के चारों तरफ़ उस लोटे को
तबीअत बहुत ख़राब है । उल्टे पैर इधर ही भाग घुमाते हुए] भूत, पिशाच, देव, जिन, प्रेत, परी, अाया हूँ। कहिए, मेरे लिए क्या हुक्म है।
चुडैल, यक्ष, गन्धर्व, [सफ़ाई से लोटे में रंग की मालिनी-सभी वैद्य, हकीम, डाक्टर इनकी दवा करते- पुड़िया डालकर] राक्षस, किन्नर, बैताल । तीन लोक
करते हार गये। अोझा जी, इनके प्राण बचा दो। मन्तर जागें; दुख-दर्द, विकट सङ्कट सब भागे; शत्रु अोझा जी [सेठ जी का निरीक्षण कर]-यह उनके बस का श्रासन काँपे, गुरु महाराज का महावचन । ओं
का रोग ही नहीं है । यह छूत, जादू और भूत इन फिस्स, अों फूः, श्रों फट्ट । [लोटे की परिक्रमा तीनों में से एक है। [फागुन से जा, एक झाड़, तो रोक कर] अब ज़रा इस लोटे के जल की धार ले श्रा। मैं इसे अभी भगा दूँगा।
को देखिए । [ज़मीन पर लोटे से पानी की धार [फागुन झाड़, लेने जाता है।]
गिराता है।] लम्बोदर-मैंने भी यही कहा था कि यह जादू है। बड़ी लम्बोदर-हैं ! इसका रंग लाल क्योंकर हो गया ? [फिर देर में आये अोझा जी!
लेट जाता है। अोझा जी-आपको उसी वक्त मुझे बुला लेना था। अब फागुन–मैं तो बिलकुल साफ़ पानी लाया था। ___ तक तो. श्राप दूकान में तराजू लिये होते।
अोझाजी-आपका सारा दुख-दर्द, आपके ऊपर किया [फागुन का झाड़ लेकर प्रवेश ।]
हुअा तमाम जादू, मेरे मन्तर की ताकत से खिंचकर फागुन-यह लीजिए।
. इसमें श्रा गया, इसी से पानी लाल हो गया । अोझा जी [फागुन के हाथ से झाड़ लेकर सिर से पैर तक मालिनी-नहीं जी, इस लोटे में मैंने रात गेरू भिगोने
सेठ जी को झाड़ते हुए-नमों विघननासकारी सिरी को डाली थी। यह उसे ही ले आया है। महादेव जी के पुत्तर और सेसनाग में पड़े बिसुन जी फागुन-ॐ हूँ ! वह लोटा तो वहाँ रक्खा है। संख बजावें, कमलासन में बिरमा वेद पढ़ावे । आये लम्बोदर-[कुछ याद कर उठ बैठता है ।] कहाँ रक्खा है ? भत भागे, जावें । गुरु जी की सहाई, हनूमान जी की फागुन-गुसलखाने में । [दौड़कर लोटा लेने जाता है।] दुहाई, सूरज-चन्दर की गवाही । श्रों नमः, श्रों फू: अोझा जी--क्यों सेठ जी, अब तबीअत केसी है ? (झाड़ में फूंक मारकर एक कोने में फेंक देता है।] लम्बोदर-लोटा तो देख लेने दीजिए, तबीअत भी ठीक
ओं फूः हाथ में फूकमार कर ताली पीटता है।] हुई जाती है। [बिस्तर से उठकर भूमि पर खड़ा हो क्यों सेठ जी! सच-सच कहना बीस का दस जाता है। हुश्रा न ?
__ [फागुन लोटा लेकर आता है। लम्बोदर-अोझा जी, अभी तो--
फागुन-वह लोटा यह है। अोझा जी-तोला-भर, तिल-भर, बाल-भर । ठहरिए, अभी मालिनी [दुःख के साथ] -मगर इसमें भिगोया गेरू तो
इलाज किये देता हूँ। [फागुन से] जा एक लोटे में सब-का-सब किसी ने गिरा दिया। पानी ला, [फागुन का पानी लेने जाना, अोझा जी लम्बोदर [प्रसन्नता के मारे भूमि पर कूदता है और हाथ का खाँसकर थूकने के बहाने अलग जा भीतरी जेब फैलाकर पूर्ण स्वस्थता प्रकट करता है।] अरी, ठहर । से एक पुड़िया निकालकर स्वगत] यह लाल रंग की जा दुखी न हो, उतना ही सोना तोल दूंगा। पुड़िया है। सफ़ाई से उस लोटे में डालकर नया रंग मालिनी-परमेश्वर को धन्यवाद है: आप अच्छे हो गये. जमाऊँगा। [फागुन का पानी का लोटा लाकर यही क्या मेरा कम सौभाग्य है। देना।] सेठ जी, अब आप ज़रा सीधे होकर बैठ अोझा जी क्यों सेठ जी ? कैसा झाड़ा ? अब लाइए,
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