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________________ संख्या ४] खूनी लोटा शुद्ध आचरण के बामन से, शिव जी के मन्दिर में मङ्गल का एक लाख जप करात्री । दच्छिना में मसूर, सोना और गुड़ दो, एक लाल वस्त्र दो । नज़दीक है। लम्बोदर - मैं किस बामन को खोजने जाऊँ १ मालिनी - शिव जी का मन्दिर तो आपके ही घर के हकीम जी - सेंधा ! प्रोफ़ ! वह तो और भी ज्यादा खतरनाक है ! सुनिए, जब आपने बोरी खिसकाई तब सारा वज़न, नसों के ज़रिए आपके दिल पर पड़ा, जहाँ पर कोई खून की नाली टूट गई ! इस बीमारी का नाम फ़िरोकुल मिग़ोर है। सिकंदर जब ईरान को फ़तह कर हिन्दुस्तान में श्राया तब उसे भी रास्ते में यहीं श्रीमारी हो गई थी । वह जिनकी पुड़िया सूत्रकर अच्छा हो गया था, उन्हीं की बौलाद होने का इस नाचीज़ को भी फल है । ज्योतिषी जी पर मुझे फुर्सत ही कहाँ है १ लाट साहब की जन्म कुण्डली आई है। उनके लिए शिकार को जाने का मुहूर्त ढूंढ़ना है। मैं तो तुम्हारी दूकान बन्द देखकर मारे फ़िक्र के इधर चला आया । मालिनी- हमारी लाज तुम्हारे हाथ है महाराज ! हम पर दया करो | लम्बोदर – जो कहोगे वही दच्छिना दूँगा । इस मङ्गल को मेरे घर से निकाल दो महाराज ! ज्योतिषी जी-अच्छी बात है। मैं किसी को भेज दूँगा । [पोथी - पत्रा समेटता है ।] लम्बोदर -- जिला लो हकीम साहब, वही पुड़िया मुझे भी दे दो । मालिनी नहीं, आपका ही जाना पड़ेगा । ज्योती जी - अच्छी बात है। तत्र पहले जाकर इसी का इंतज़ाम करता हूँ । हकीम जी-जी पुड़िया क्या है, बिलकुल अक्सीर है । मरे को जिला ले, आपके तो अभी सभी लामात सही और दुरुस्त हैं 1 लम्बोदर - जब तक जियूंगा, आपका ऋणी रहूँगा । हकीम जी नुस्ख़ा ख़ास लुकमान हकीम का था। एक [ ज्योतिपी जी का उठकर जाना, फागुन का एक हकीम जी को लेकर आना । मालिनी घूँघट काढ़ एक ओर को हो जाती है ।] फागुन- लीजिए, हकीम जी को ले आया । हकीम जी क्यों जनाब सेठ जी ! आपको हो क्या गया ? पेट में दर्द है ? खून गिरा ? लम्बोदर - हाँ साहब मरता हूँ, बचा लो । हकीम जी - ज़रा नब्ज़ तो दिखाइए । [ नब्ज़ देखता है ।] हरत तो बहुत है नहीं । जीभ तो बाहर निकालो । [लम्बोदर जीभ बाहर निकालता है ।] हूँ ! खाने को कोई सख्त, क़ाबिज़ चीज़ तो नहीं खा ली थी ? लम्बोदर - नहीं साहब हकीम जी — दूकान में कोई भारी बोझ तो नहीं उठाया था ? लम्बोदर - बोझ ? [कुछ याद कर ] हाँ, उठाया था। वह तो धंधा ही ठहरा। कभी नौकर पास रहता है, कभी नहीं । हकीम जी - बोझ किस चीज़ का था ? लम्बोदर - नमक की बोरी खिसकाई थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ३३१ हकीम जी - नमक की बोरी ? बस, बस, मैं समझ गया ।, रुई की बोरी होती तो आप हर्गिज़ श्रीमार न पड़तें सेठ जी | नमक कौन-सा था ? संधा या समुद्री १ लम्बोदर - सेंधा | मर्तबा ग़लत से वह उन्हीं की जेब में रह गया और लबादा धोत्री के यहाँ चला गया । धोत्री उसे पढ़ाने को मेरे बुजुर्गों में से किसी के पास लाया और उन्होंने उसे याद कर लिख लिया । वही म मेरे पास है । आप मेरे घर चलें तो मैं आपको दिखा सकता हूँ । लम्बोदर - मगर इस समय मुझे मरने की भी ताकत नहीं है । पुड़िया निकालिए । हकीम जी - लो ये चार पुड़ियाँ हैं । दो-दो घण्टे में एक-एक फाँक लेना । एक अभी लो । [ पुड़ियाँ देता है । लम्बोदर एक उसी समय फॉक लेता हैं ।] एक और मरीज़ को देखने जाना है। कुछ देर में फिर आऊँगा ।. [जाना ] मालिनी [घूंघट दूरकर लम्बोदर के निकट या ] क्यों तबीयत कैसी है ? दवा ने कुछ असर दिखाया ? लम्बोदर - कुछ भी नहीं । [ पीड़ा व्यक्त करता है ।] मालिनी - घण्टे भर में दूसरी बुड़िया खाने पर शायद कुछ असर हो । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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