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________________ ३३० सरस्वती दिखाइए । [ हाथ से पेट को दबाकर ] गोला किधर गया ? [कुछ सोचकर ] ठीक है। एक तरफ़ से पित्त और दूसरी ओर से कफ की नाड़ी के आपस में टकरा जाने के सब बीच में पड़े उस वायु के गोले में पंचर हो गया। उसी के फूटने से तुम्हें यह ख़ून गिरा है। यही दवा काम करेगी, मगर गरम पानी के बदले ठंडा पानी लेना होगा | [फागुन से ] जा पानी ले या । फागुन- अभी लीजिए। [ जाता है. । ] लम्बोदर – वैद्य जी, मुझे तो कोई और दवा देते । प्रोह ! ज्योतिषी जी का श्राना ।] ● बड़ा दुख है । मालिनी - तुम्हारे चरणों पर सिर रखती हूँ वैद्य जी ! मेरी लाज तुम्हारे ही हाथ है। 'फागुन [जल लाकर वैद्य जी को देता है । ] -- लीजिए । वैद्य जी - जब आपका मुझ पर विश्वास है तब मेरी दवा पर भी होना चाहिए। नहीं तो काम कैसे चलेगा ? लीजिए, इसे निगलिए। दवा इसी मिनट से अपना बिजली का असर दिखायेगी । लम्बोदर - [ गोली निगलता है। दवा कड़वी होने के कारण मुँह बनाता है । ] उबक्क ! बड़ी कड़वी है । वैद्य जी - उपदेश और दवा कड़वी होने पर भी निगलने . के योग्य होते हैं। लो जल्दी से दो घूँट पानी पी लो । [लम्बोदर को पानी पिलाता है ।] ..... क्यों कैसी हालत है ? लम्बोदर र-- हालत ? क्या बताऊँ ? दर्द और भी बढ़ गया । मरा वैद्य जी, मरा ! वैद्य जी [स्त्रगत ] - मामला गड़बड़ ही नज़र आता है । खिसकना चाहिए । [ प्रकट] अभी धीरज रखिए । आपको बीमारी तो कुछ है नहीं, सिर्फ कमज़ोरी है । यह गोली जो मैंने आपका दी है, इसे मामूली गोली न समझिए। तोप में भर दी जाय तो लङ्का को फूँक दे। सुश्रुत की बनाई चरक नाम की जो मोटी पोथी हमारे यहाँ हाथ की लिखी हुई बँधी रक्खी है, इस गोली की तारीफ़ों के पुल उसमें बँधे हैं । ये चार गोलियाँ और दिये जाता हूँ। पहली दही के पानी, दूसरी छाछ, तोसरी दूध और चौथी घी के साथ घण्टे - arc भर में निगल लेना और मुझे ख़बर देना । एक दूसरे बीमार को देखने जाना है, इसी से जल्दी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ [ मालिनी को गोलियाँ दे खरल बग़ल में दात्र प्रस्थान | ]. लम्बोदर [+]बेचैनी प्रकट कर ] - कुछ न होगा, वैद्य जी की दवा से भी कुछ न होगा। अरे जा जा । किसी डाक्टर को बुला ला । जो कुछ उसकी फीस होगी, दूँगा, दूँगा । जान है तो जहान है । फागुन -- लीजिए, अभी लीजिए । [फागुन का जाना । पाथी- पत्रा बगल में दबाये ज्योतिषी जी - जय हो, जीते रहो जजमान । [ कुछ चौंककर ] हैं! यह क्या ? आपका चेहरा तो साल भर के बीमार का-सा हो गया। क्या हुआ ? कल ही तो ग्राप भलेचंगे मन्दिर में जल चढ़ाने गये थे । लम्बोदर - कर्म का फल भोग रहा हूँ ज्योतिषी जी । अरे मरा रे ! बड़ा कष्ट है ! मालिनी - कुछ पोथी- पत्रा देखिए, ग्रह- कुण्डली तो विचा रिए महाराज ! हमें कौन-सा सनीचर लग गया ? ज्योतिपी जी - बुरा मानने की बात नहीं है सेठानी जी ! मैंने पिछली अमावस को जब ग्रहण पड़ा था, सेठ जी से कहा था कि कुछ सोना किसी भले वामन को दान कर दो। ये भला क्यों सुनते ? मैंने इनसे दुबारा नहीं कहा। मुझे तुम्हारे पैसे का लोभ नहीं । [ बैठकर पत्रा उलटता है, पोथी खोलता है, पेंसिल से कुछ लिखता है ।] लम्बोदर – अरे मरा, मार डाला ! [ छटपटाता है । ] ज्योतिषी जी [अँगुलियों पर गिनकर ] - मीन, मेष, मिथुन, कर्क का सूरज और सेठ जी की धनराशि ; आज तारीख़ आठ सितम्बर, चार दूनी आठ, चार उसके, ठीक है, हासिल लगा एक । इतवार, सोमवार, मङ्गल । इनको सनीचर तो नहीं मङ्गल ज़रूर चिपटा है । लम्बोदर – मरता हूँ ज्योतिषी जी ! बदन का सारा खून बह गया । ज्योतिषी जी-ख़ून न बहेगा तो और होगा क्या ? मङ्गल की आप पर वक्र दृष्टि है। उसका रंग लाल है, वह लाल चीज़ ही पसन्द करता है । मालिनी - उसके छूटने का कोई उपाय बताइए महाराज ! ज्योतिषी जी - उसकी पूजा कर उसे प्रसन्न करो। किसी www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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