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________________ सरस्वती [भाग ३८ फरासीसी नवयुवतियों की इस मनोवृत्ति को मंकचित तथा असभ्य कहकर उसकी हँसी उड़ाना अमेरिकन महिलायों और आज़ाद सिनेमा नर्तकियों का ही काम है। इंग्लिश स्त्रियाँ भी जो अाज अपनी अमेरिकन बहनों के पद-चिह्नों पर चल रही है, फ्रांस के विरुद्ध अपना मत ज़ाहिर करती हैं, उन्हें जाहिल और दकियानूस कहती हैं। लेकिन वास्तव में फरासीसी स्त्रियाँ अपना सामाजिक मान बढ़ाये हुए हैं। वे युवक-समाज के ऊपर मँडरानेवाली तितलियाँ नहीं बनना चाहतीं। दूसरी शिकायत उनके खिलाफ यह है कि व अतिथि सम्मान नहीं करती और पुरुषों से दूर दूर रहती हैं । यह सच है कि वे पुरुष पर एकदम विश्वास नहीं करती। फ्रांस के विषय में स्वामकर त्रयों के सम्बन्ध में विदेशियों की जो राय है वह पे रस को देग्वन हुए है। पेरिस वास्तव में क्रांस के अन्तरंग मे विलकुल भिन्न है। पेरिम का जीवन अाज भी कड़े मे कड़े शब्दों में धिक्काग जा सकता है। परन्तु पेरिस और बाकी फ्रांस में ज़मीनश्राममान का फल है। फ्रांस पेरिस से नहीं जाना जा सकता । फ्रांम को समझने के लिए फ्रांस के देहाती जापन का अनुभव करने की ज़रूरत है। फ्रांस का देहाती जीवन बड़ा ही शान और सरल है । यहां तक कि एक परिवार, दूसरे परिवार के माथ कम हिलता-मिलता है। प्रत्येक अपने ही राग में मस्त है। शिशु अपनी माता की बाँहों में।। त्योहारी और राजनैतिक जलमो के समय माग फ्रस जानी हैं। १५-१६ वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कर फ्रांसमय ही दीखता है। इस समय लोग मदिरापान दिया जाता है। विवाह करते समय माता पिता नथा करने में नहीं हिचकते। शगव वहाँ बहुत बड़े परिमाग वर कन्या सभी मिलकर निश्चय करते हैं । विवाह के समय में बनती है, लेकिन पी बहुत कम जाती है। शराब उनके मारे दिखाऊ खच टाल दिये जाते हैं। विवाह के पश्चात जीवन की अावश्यकता नहीं. वरन उत्मया की एक खाम अक्सर पति-पत्नी अपना मंसार अलग बमा लेते हैं या चीज़ है। शराब की जगह में तम्बाक का प्रयोग बहत होता कुटुम्ब के माथ ही रहकर जीविकोपार्जन करते हैं। उनका है। पर स्त्रियाँ तम्बाक पीना भी बुरा समझती है। बच्चे वैवाहिक जीवन बड़ा ही सादा और मुबर होता है । परिवार अंगर खूब खाते हैं । फल और मेवों का प्रचार ग्लव है। के मित्र बहुत थोड़े रहते हैं। केवल मन्वन्धी ही परिवार के बच्चे स्कूल से पाने के बाद शाम को अपनी माता भीतर प्रवेश कर सकते है । प्रत्येक पैसेवाला या ऐश्वर्यवान या पिता के सामने कारनेली या रेसीन की कविता पव उन तक पहुँच नहीं पाता । लकियों नथा नवयुवतियों के मन में कहते हैं । शाम के वक्त हर एक घर में वनों का याचरण तथा रहन मन पर कड़ी निगाह रकबी जानी चहकना, घर के कम्पाउंड में कुत्तों का भीकना और रोशन है। वे भड़कन दुनिया और उसके प्रलोभनों में दर दानों में मे हलकी और धीमी शनाका बादर छिटकना की जाती है। देहाती जीवन का एक प्रमुख चह है। शाम के ही समय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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