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संख्या ३ ]
मेरी कालेज में डाक्टर एन० ए० बी० पियर्सी के निरीक्षण में खोज का काम कर रहे हैं । अभी ये ३० वर्ष के हैं । आशा है कि वायुयान विद्या में ये अपने आविष्कारों से भविष्य में इनसे भी अधिक महत्त्व के चमत्कार कर दिखायेंगे ।
सम्पादकीय नोट
प्रवासी विदेशियों की संख्या राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर ग्राफ़िस ने उन विदेशियों की एक रोचक तालिका तैयार की है जो दूसरे देशों में निवास करते हैं । उस तालिका से प्रकट होता है कि सन् १९३० में स्वदेश छोड़कर परदेश में रहनेवाले विदेशियों की कुल संख्या २,८९,००,००० थी, जो संसार की कुल आबादी का १६ को सदी है। और इनमें भी ६३ लाख संयुक्त राज्य तथा २८ लाख अर्जेन्टाइन में ही ये विदेशी थे। इनके सिवा फ्रांस में सन् १९२६ में २४ लाख और सन् १९३१ में २७ लाख, ब्रेज़िल में सन् १९२० में १५ लाख, ब्रिटिश मलाया में १८,७०,०००, स्याम में १० लाख और जर्मनी में ७,८७,००० विदेशी थे ।
योरप के देशों में, रूस को छोड़कर, विदेशियों का सफ़ी हज़ार १५४ था, परन्तु वह बढ़ गया—लकजेम्बर्ग में १८६, स्वीज़लैंड में ८७, फ्रांस में ६६, आस्ट्रिया में ४३ और बेल्जियम में ३९ का फ़ी हज़ार सत हो गया । परन्तु जर्मनी में १२, बल्गेरिया में १०, हंगेरी में ९, तुर्की में ६, पुर्तगाल में ५, ब्रिटिशद्वीप में इटली में और फ़िनलैंड में ३ औसत रह गया ।
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परन्तु महायुद्ध के बाद इस अवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है । जर्मनी में तो विदेशियों की संख्या में कमी हुई है, इसके विपरीत फ्रांस में उसमें वृद्धि हुई है । फ्रांस में जहाँ फ़ी हज़ार में सन् १९९० में २९, १९२१ में ३९ विदेशी थे, वहाँ १९३१ में वे फ्री हज़ार में ६६ हो गये । स्वीज़लैंड में सन् १९९० में विदेशियों का औसत फ्री हज़ार में १४८ था, वहाँ वह घटकर सन् १९२० में १०४ और सन् १९३० में ८७ हो गया ।
विदेशों में एशियाइयों की संख्या सन् १९९० में ५० लाख थी, पर वह १९३० में ९५ लाख हो गई है। परन्तु योरपीयों की विदेशों में संख्या यद्यपि अब कुछ कम हो गई है, तो भी वह २,२४,००,००० है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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यह उपर्युक्त तालिका प्रथम बार बनी है और इसकी रचना सन् १९१०, १९२० और १९३० की मनुष्यगणना की रिपोर्टों के आधार पर की गई है, अतएव प्रामाणिक है ।
अध्यापक शरच्चन्द्र चौधरी का निधन
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के क़ानून विभाग के लोकप्रिय अध्यापक श्रीयुत शरच्चन्द्र चौधरी का ३० जनवरी को स्वर्गवास हो गया। इन प्रान्तों में क्या, समग्र भारत में उनके सदृश लोकप्रिय अध्यापक का नाम नहीं सुना गया है। उन्होंने अपने शिष्यों को शिष्य नहीं, किन्तु पुत्र ही समझा और उन्हें उपयुक्त शिक्षा तो बराबर ही दी, साथ ही उनके सुख-दुख में तन-मन और धन से भी सदा तत्परतापूर्वक शामिल रहे । यही कारण था कि वे अपने विद्यार्थियों में ही नहीं, विश्वविद्यालय के सभी छात्रों में अत्यधिक लोकप्रिय तथा श्रादरपात्र रहे | इसमें सन्देह नहीं है, चौधरी साहब सभी दृष्टियों से एक आदर्श अध्यापक ही नहीं थे, किन्तु इस क्षेत्र में द्वितीय व्यक्ति थे और अपना सानी नहीं रखते थे । सर आशुतोष ने यदि बंगाल का ग्रेजुएटों से भर दिया है तो उन्होंने इन प्रान्तों को क़ानूनदात्रों से भर दिया है । वे अपने नये क्या पुराने सभी विद्यार्थियों की विश्राम - समय की वार्ता के विशिष्ट पात्र बन गये थे और उनके समय के सभी छात्र उनकी चरित-गाथा बार बार कहते रहने पर भी नहीं घाते थे । ऐसे अध्यापक इस देश में हो गये हैं और श्राज भी कदाचित् यत्र-तत्र हों जिन्होंने अपने छात्रों से काफ़ी से अधिक श्रद्धा प्राप्त की हो और जिनका नाम सुनते ही उनके छात्र बड़े आदर के साथ अपना मस्तक नत कर लेते हों । परन्तु अध्यापक चौधरी इस श्रेणी से भी परे थे । उन्होंने अपने ही छात्रों का नहीं, विश्वविद्यालय के समग्र छात्रों का श्रद्धा से भी अधिक प्रेम प्राप्त किया था । धन्य हैं अध्यापक चौधरी जिन्होंने श्राजीवन शतशः पुत्रों के पिता का स्वाभिमान रखते तथा सभी प्रकार स्वस्थ रहते हुए सुखपूर्वक अपनी जीवन यात्रा समाप्त की । यहाँ हम उनके प्रतिरूप उनके योग्य पुत्र अध्यापक डाक्टर चौधरी के प्रति इस अवसर पर अपनी समवेदना प्रकट करते हैं ।
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