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सरस्वती
[ भाग ३८
के मामले सरकार-द्वारा नई मिस्रित अदालतों-द्वारा तय और वायुयानों के अकस्मात् गिर पड़ने का अब वैसा डर हुश्रा करेंगे। इन अदालतों के जजों की नियुक्ति में नहीं रहेगा । यह आविष्कार इन्होंने १९३१ में किया था, जाति व धर्म का विचार नहीं किया जायगा और यदि जो कसौटी पर कसे जाने पर खरा उतर चुका है। किसी विदेशी जज की जगह ख़ाली होगी तब वह स्थान सन् १९३५ में इन्होंने दो ऐसे नये आविष्कार किये हैं किसी मिस्री जज को ही दिया जायगा। इन अदालतों को जिनसे हवाईयुद्ध में क्रान्ति-सी हो जायगी। एक तो इन्होंने सरकार-द्वारा बनाये गये कानूनों और फ़र्मानों को एक ऐसा उड़नेवाला टारपीडो बनाया है जिसकी गति मानना पड़ेगा। इस प्रश्न पर विचार करने के लिए तेज़ से तेज़ जानेवाले गोले से चौगुनी है । वह दो सौ उसने ऐसे अधिकार-प्राप्त योरपीय राष्ट्रों को आह्वान किया मील तक, विना वाहक के, ३०० मोल फ्री घंटे के हिसाब है । आशा है, मिस्र इस समस्या के हल करने में भी से जा सकता है। दूसरा आविष्कार वायुयान की दुम में सफलमनोरथ होगा।
छिपाकर तोपें रखने का है। ये तो वायुयान में इस ढंग
से लगाई जाती हैं कि पीछे से आनेवाले जहाज़ के मार सैयद अमीरअली का स्वर्गवास
के भीतर आते ही उसे वार करने के पहले ही मारकर मध्य-प्रदेश के प्रसिद्ध हिन्दी लेखक श्रीयुत सैयद गिरा दे सकती हैं। अपने इन अाविष्कारों की बदौलत अमीरअली का इसी जनवरी में एक दुर्घटनावश निधन इस समय श्रीयुत नज़ीर का इंग्लैंड में बड़ा आदर हो गया। वे भाटपारा में रहते थे। घर स्टेशन के पास हो रहा है। था। एक दिन संध्या-समय एक मित्र के यहाँ से लौट रहे श्रीयुत नज़ीर बम्बई के निवासी हैं। इनके पिता जी० थे। रेलवे लाइन पार करते समय वे मालगाड़ी के शंटिंग आई० पी० रेलवे में मुलाज़िम थे। इन्होंने देवलली के करनेवाले डिब्बों के नीचे आ जाने से कट गये और उनका पारसी-स्कूल में शिक्षा पाई है। प्रारम्भ से ही इनका मेकस्वर्गवास हो गया।
निकल इंजीनियरिंग की ओर झुकाव था। स्कूल से सैयद साहब हिन्दी के पुराने लेखकों में थे और अपने निकलने पर ये बम्बई के एक मोटर के कारखाने में समय के प्रसिद्ध लेखक थे । वे गद्य-पद्य दोनों के लिखने उम्मेदवार हो गये। इसके बाद जी० आई० पी० के में सिद्धहस्त थे। उनका 'बूढ़े का ब्याह' आज भी बड़े माटुंगा के कारखाने में नौकर हो गये। यहाँ काम करते
आदर से पढ़ा जाता है । उनकी मृत्यु से एक उदार हुए ये अपने छुट्टी के समय में वायुयान-सम्बन्धी इंजीमुसलमान हिन्दी-लेखक का अभाव हो गया है । हम नियरिंग सीखने लगे और वायुयान का एक माडल भी अापके दुखी परिवार के साथ अपनी समवेदना प्रकट बनाया। अपने इस प्रयत्न से उत्साहित होकर ये पारसी करते हैं ।
ट्रस्टों की वृत्ति प्राप्तकर वायुयान-विद्या सीखने के लिए
सन् १९३१ में इंग्लैंड चले गये । इंग्लैंड में ये ग्राउंड इंजीएक पारसी नवयुवक का चमत्कार नियर हो गये। इसी समय इन्होंने वायुयान की दुर्घटना अवसर पाने पर भारतीय युवकों ने भी अपनी प्रतिभा रोकने का अपना पहला अाविष्कार किया। इस सम्बन्ध में का परिचय देकर यह बात बार बार प्रमाणित की है कि वे प्रिवी कौंसिल के सदस्य सर दीनशा मुल्ला ने इनकी बड़ी भी संसार के समुन्नत राष्ट्रों के युवकों की ही भाँति प्रतिभा- सहायता की और उन्हीं की सिफ़ारिश पर इनके उक्त शाली हैं। बम्बई के एक पारसी नवयुवक श्री फ़िरोज़ आविष्कार पर सरकारी वायुयान-विभाग ने ध्यान दिया प० नज़ीर ने इसकी एक बहुत ही उत्तम नज़ीर अपने और उसकी सार्थकता की जाँच की। अब तो ये उसके वायुयान-सम्बन्धी नये आविष्कारों के द्वारा उपस्थित की लिए ५० हजार रुपया एकत्र करने की चिन्ता में हैं ताकि है। अपने आविष्कार के फलस्वरूप आज इनका इंग्लेंड उस आविष्कार की पूर्ण रूप से जाँच की जा सके। में बड़ा सम्मान हो रहा है। इन्होंने वायुयान में एक ऐसा निस्सन्देह श्रीयुत नज़ीर ने अपने इन आविष्कारों से बहुत सुधार किया है कि अब हवाई यात्रायें निर्विघ्न हुअा करेंगी बड़ी ख्याति प्राप्त की है। ये इस समय लन्दन में कीन
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