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________________ संख्या ३] सम्पादकीय नोट ३०७ प्रोफ़ेसर मैक्समूलर को ऋग्वेद का दूसरा संस्करण निकालने उम्र इस समय ७२ वर्ष थी और आप वर्तमान मिश्रबन्धुओं में मदद की। इन दोनों ग्रन्थों के सम्पादन आदि में इन्होंने में ज्येष्ठ थे। इधर कई महीने से आपका स्वास्थ्य खराब हो अपने ऐसे पाण्डित्य का परिचय दिया कि ये अपनी रहा था। परन्तु ऐसा नहीं था कि श्राप दिवंगत हो जाते । २५ वर्ष की ही उम्र में सर्वश्रेष्ठ प्राच्यविदों में गिन लिये आपका भी अपने दोनों छोटे भाइयों की तरह हिन्दी से गये। इन्होंने 'मंत्रपाठ' का सम्पादन किया तथा 'ब्राह्मण- विशेष अनुराग था और अपने भाइयों के साहित्यिक कार्यों ग्रन्थों में स्त्रियों का स्थान' और 'महायान बौद्धधर्म'- से विशेष सहानुभूति ही नहीं रखते थे, किन्तु 'हिन्दीविषयक कई एक पुस्तकें लिखीं। पर इन्होंने 'भारतीय नवरत्न' तथा 'मिश्रबन्धुविनोद' की रचना में सक्रिय भाग साहित्य का इतिहास' नाम का जो प्रसिद्ध ग्रन्थ तीन जिल्दों भी लिया था। आप पर गृह-प्रबन्ध का ही सारा भार था में लिखा है वह अपने विषय का सबसे अधिक महत्त्व का और आपका अधिक समय अपनी ज़मींदारी आदि की ग्रन्थ है। इन्होंने भारत की यात्रा भी की है। ये डाक्टर देख-रेख करने में ही बीतता था। इस दुःख के अवसर पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विश्वभारती में गये। कलकत्ता- हम आपके परिवार के साथ विश्वविद्यालय में इन्होंने अपनी व्याख्यान-माला भी पढ़ी। करते हैं। इनके प्रयत्नों से भारतीय संस्कृति का योरप में अच्छा प्रचार हुआ है। इनकी मृत्यु से भारतीय संस्कृति के एक मिस्र में नये युग का आविर्भाव प्रेमी विद्वान् का अभाव हो गया है। मिस अब एक स्वाधीन राज्य में परिणत हो गया है । यह सौभाग्य उसे एक लम्बे युग के बाद प्राप्त हश्रा है। जर्मन की उग्र राष्ट्रीयता इसका सारा श्रेय मिस्र की प्रबुद्ध जनता तथा उसके लोकजर्मनी के नाज़ियों ने जर्मन-राष्ट्र का 'आर्यनव' विशुद्ध नेता स्वर्गीय जगलूल पाशा तथा नहस पाशा को है । अब बनाये रखने के लिए यहूदियों को जिस तरह जर्मनी से चूंकि ब्रिटिश सरकार से उसकी सन्धि हो गई है, अतएव निकाल बाहर करने की उग्र व्यवस्था कार्य में परिणत कर मिस्र की सरकार ने भी एक स्वाधीन राष्ट्र की तरह अपने रक्खी है वह सर्वविदित है। इसी प्रकार वे अपने हाथ-पैर चलाना शुरू कर दिया है । एक ओर जहाँ उसने 'ईसाई-धर्म' में भी नूतन संस्कार करने का उपक्रम कर स्वदेश की रक्षा के लिए नूतन ढंग से अपने सामरिक रहे हैं ताकि वह भी विशुद्ध 'जर्मन-धर्म' बन जाय। परन्तु बल का संगठन करना प्रारम्भ किया है, वहाँ वह संसार उनकी उग्र राष्ट्रीयता यहीं से समाप्त नहीं हो जाती। वे के राष्ट्रों के बीच भी अपने नये पद के अनुरूप अपना अपनी मातृभाषा का भी संशोधन करने पर उतारू हो गये स्थान अधिकृत करने के लिए यत्नवान् हो रही है। अभी हैं । वे उससे सारे विदेशी शब्द निकाल बाहर करके उनके तक मिस्र में रहनेवाले योरपीयों का, किसी तरह का स्थान में विशुद्ध जर्मन-शब्द ही प्रयोग करने की व्यवस्था अपराध करने पर, वहाँ के न्यायालयों में मुकद्दमा करना चाहते हैं। विद्वानों का कहना है कि उस दशा में नहीं चलता था, किन्तु भिन्न भिन्न राष्ट्र अपने अपने जर्मन-भाषा एक विचित्र ही नहीं, अति कठिन भाषा हो राष्ट्रीयों के अभियोगों का निर्णय अपनी ख़ास अदालत जायगी। परन्तु नाज़ियों की राष्ट्रीयता को इसकी परवा में किया करते थे। स्वाधीन मिस्र अब योरपीयों को नहीं है। वे तो अपने सारे राष्ट्र को क्या रक्त, क्या धर्म ऐसा कोई अधिकार नहीं देना चाहता, क्योंकि इस और क्या भाषा और क्या संस्कृति 'विशुद्ध जर्मन' बना व्यवस्था से उसके गौरव को ठेस पहुँचती है। उसने डालने को तुले बैठे हैं। उन राष्ट्रों को जिन्हें मिस्र में विशेष अधिकार प्राप्त हैं, इस बात की सूचना दे दी है कि वह मिस पण्डित गणेशविहारी का स्वर्गवास में किसी राष्ट्र को विशेष अधिकार नहीं देना चाहता दुःख की बात है कि लखनऊ के पण्डित गणेशविहारी और १२ वर्ष के बाद ऐसे अधिकारों का अन्त हो मिश्र का गत ३१ जनवरी को स्वर्गवास हो गया। आपकी जायगा। इस बीच में मिस्र में विशेषाधिकारवाले विदेशियों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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