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________________ सरस्वती [भाग ३८ खेद की बात है । स्कूलों की इमारतें तथा उनका साज़- की गति १० वर्षों में ४ फी सदी रही है, परन्तु भारत में सामान भी अनुपयुक्त और दरिद्रता-द्योतक बताया गया है। वह १ फ्री सदी रही है । भारत में ९२ फी सदी निरक्षर पढ़ाई का हाल यह रहा है कि ५ वर्ष पहले बच्चों की श्रेणी हैं । सन् १९२१ से सन् १९३१ तक मध्यप्रान्त में प्रत्येक की जो छात्र संख्या ३०,३८९ थी उसमें से छठे दर्जे तक साक्षर पर चार हज़ार रुपया खर्च करना पड़ा है। उस कुल १,६५३ ही लड़के पहुँच सके हैं। यह स्थिति कैसे दशक में वहाँ साक्षरता की वृद्धि १ फी सदी में हुई श्राशाजनक मानी जा सकती है ? लड़कियों के स्कूलों की है । इस गति से भारत को साक्षर होने में १,१५० वर्ष सख्या ४३७ से ४५७ हो गई है और उनकी छात्र संख्या लगेंगे। भारत के साक्षर होने में अनेक बाधाये हैं। इनमें ४२,६३५ से ४५,५५७ हो गई है। एक महत्त्व का कारण प्रौढ़ों का निरक्षर होना भी है। यह ____ मन्तव्य में यह भी कहा गया है कि अनेक बोर्ड पता लग गया है कि बच्चे को पढ़ना-लिखना सिखाने में कलह और द्वन्द्व के घर बने रहे हैं। यह वास्तव में बड़ी जितना समय लगता है उसके पंचमांश समय में ही प्रौढ़ निन्दा की बात है। लोग पढ़ना-लिखना सोख सकते हैं। इस नई खोज से भारत को लाभ उठाना चाहिए। प्रौढ़ लोगों का बच्चों की डाक्टर लौबैच और हमारी निरक्षरता किताबों के पढ़ने में मन नहीं लगता है। उनके लिए अमरीका के न्यूयार्क नगर में एक बड़ी महत्त्व की सभा उनकी प्रवृत्ति के उपयुक्त ही पाठ्य-पुस्तकें तथा शिक्षा का है । इस सभा का एक-मात्र उद्देश संसार की निरक्षरता ढंग होना चाहिए। यह सम्भव होना चाहिए कि भारत दूर करना है, और यह एक नामधारी सभा भर नहीं है, २५ वर्ष के भीतर साक्षर हो जाय । रूस ने तो इस दिशा किन्तु अपने उद्देश की पूर्ति के लिए व्यावहारिक कार्य भी में १५ वर्ष में ही सफलता प्राप्त कर ली है। करती है। अभी हाल में इस सभा के एक प्रतिनिधि इसमें सन्देह नहीं है कि डाक्टर लौबैच के ये विचार श्रीयुत डाक्टर फ्रैंक सी० लौबैच भारत आये हैं और यहाँ अत्यन्त उपयोगी हैं । खेद की बात है कि भारत अपनी की जनता को साक्षर बनाने के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षा- वर्तमान परिस्थिति में उनसे जैसा चाहिए वैसा लाभ नहीं संस्थाओं में जा जाकर भाषण कर रहे हैं। अब तक इस उठा सकता, तथापि यह नितान्त आवश्यक है कि देश सभा ने संसार की ३६ भाषाओं में अपनी योजना का इस महारोग से शीघ्रातिशीघ्र मुक्त किया जाय । क्योंकि प्रयोग किया है और उसे अाशातीत सफलता प्राप्त हुई देश की यह व्यापक निरक्षरता देश की उन्नति की प्रगति है। अपनी ही भाषा का जल्दी से जल्दी और सो भी में सबसे बड़ी बाधा है। कुछ शिक्षा-प्रेमी देशभक्त यदि से लिखना-पढ़ना सिखा देना ही इस सभा देश की निरक्षरता दूर करने का ही काम उठा लें तो इस की योजनाओं का मुख्य ध्येय है और इसमें उसे, विशेष- क्षेत्र में काफ़ी सफलता मिल सकती है। अाशा है, लोककर फिलीपाइन द्वीपों के मोरों लोगों में, आशातीत सफलता सेवकों का ध्यान इस ओर आकृष्ट होगा । प्राप्त हुई है। यहाँ के प्रयोगों से यह बात प्रकट हुई है कि सामान्यतः लोग अपनी भाषा को एक से तीन दिन के स्वर्गीय डाक्टर विंटनित्ज़ भीतर ही पढ़ लेना बखूबी जान जा सकते हैं। डाक्टर मोरित्ज़ विंटर्नित्ज़ का अभी हाल में ९ जनवरी बातचीत के सिलसिले में डाक्टर लौबैच ने बताया को देहान्त हो गया। ये एक पारगामी विद्वान् थे। ये है कि संसार की आधी आबादी से भी अधिक लोग अर्थात् आस्ट्रियावासी जर्मन थे। इनका जन्म २३ दिसम्बर सन् १ अरब से भी अधिक लोग पढ़ना नहीं जानते हैं। १८६६ को हुआ था। १७ वर्ष की उम्र में ये वियना के दोतिहाई बिलियन तो एशिया में ही निवास करते हैं। विश्वविद्यालय में दर्शन और भाषा-विज्ञान पढ़ने को भर्ती इनमें से ३५ करोड़ चीन में और ३४ करोड़ भारत में हुए। इसी समय इनकी भेंट डाक्टर बूलर से हुई। १८८८ रहते हैं । शेष निरक्षर विशेषकर अफ्रीका, दक्षिण-अमरीका में इन्हें डाक्टर की डिगरी मिल गई। इन्होंने अापस्तम्बीय और प्रशान्त महासागर के द्वीपों में हैं। साक्षरता के प्रचार गृह्यसूत्र का सम्पादन और अनुवाद किया। इसके बाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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