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________________ ३१० सरस्वती दीर्घजीवियों का एक गाँव 'नवशक्ति' में छपा है - चीन के एक समाचार-पत्र में छपा है कि क्यूचू प्रान्त में टाटिंग ज़िले के अन्दर एक गाँव है, जहाँ के अधिकतर निवासी १०० वर्ष से अधिक अवस्था के हैं । उस गाँव की आबादी १०० कुटुम्बों से कम की ही है। इस वक्त जितने आदमी वहाँ ज़िन्दा हैं, थोड़े-से लोगों को छोड़ कर प्रायः सभी की उम्र १०० वर्ष के लगभग है । १०० वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या बहुत बड़ी । एक आदमी की उम्र १८० वर्ष है । इस समय भी उस आदमी में पूरी पूरी ताक़त है । वह अपनी जीविका के लिए लकड़ी के गट्ठे सिर पर लेकर बेचने जाया करता । १६० वर्ष से वह नियमपूर्वक सूर्य डूबते ही सो जाया करता है और सुबह सूर्य के उदय होने के बाद ही जागता है । उसको नींद खूब आती है। उसका कहना है कि उसके दीर्घजीवी होने का ख़ास कारण यही है कि वह ख़ूब सोया करता है। चीन में जब मिंग वंश का राज्य था तब कुछ लोग श्राकर यहाँ बाद हुए थे । श्राज के निवासी उन्हीं की संतान हैं। वर्षों से ये लोग अपना अलग उपनिवेश-सा बनाकर रहते आये हैं । बाहर के लोगों से ये बहुत कम मिलते-जुलते हैं। अपनी के लिए अधिक लोग खेती करते हैं । यहाँ की न अधिक गरम है और न अधिक सर्द । टेम्परेचर कभी ६० फ़ारेनहाइट से ऊँचा नहीं जाता और न ४० से कभी नीचे ही जाता है । जीविका हवा ब्रिटेन और भारत की व्यापारिक स्थिति में सुधार सरकारी व्यापार विभाग की ओर से इण्डियन ट्रेड कमिश्नर ने ३१ मार्च १९३६ को समाप्त होनेवाले वर्ष की आर्थिक उन्नति के सम्बन्ध में जाँच करके एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। उससे प्रकट होता है कि आज कल की अवस्थाओं का ध्यान में रखते हुए सभी देशों ने अपने-अपने देश के अान्तरिक व्यापारों को केन्द्रित और व्यवस्थित करना ही उचित समझा है। इसलिए साल भर में जो प्रगति हुई है उससे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की अपेक्षा देशों की आन्तरिक स्थिति में अधिक सुधार हुआ है | भारत सम्बन्धी कुछ बातें इस प्रकार हैं- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ लंकाशायर भारतीय रुई के उत्पादकों को उत्साहित कर रहा है । इस वर्ष लंकाशायर ने भारत की लम्बे रेशे की की रुई केवल २ प्रतिशत कम ली है, किन्तु छे । टे रेशे की रुई १०,१८,००० मन ली है जब कि पिछले वर्ष केवल ८,५५,००० मन और उससे पिछले वर्ष केवल ५६,८,०० मन ही ली थी। रबड़ की उत्पत्ति में इस वर्ष टन की कमी हुई है। भारत से इस वर्ष गत वर्ष की अपेक्षा बहुत कम रबड़ ब्रिटेन गई हैं । इस वर्ष भारत से ३७ करोड़ के सन का निर्यात हुआ जब कि गत वर्षों में ३२ करोड़ व्यय होता था । किन्तु फिर भी यह स्थिति सुरक्षित नहीं समझी जा सकती। सभी देश ग्रात्मनिर्भर होना चाहते हैं, अतः वे अब सन के स्थान पर कई अन्य प्रकार के रेशों का उपयोग कर रहे हैं । इसके सिवा वृक्षों की छालों को भी इस काम में लाया जाना शुरू हो गया है, अतः इस व्यवसाय की स्थिति बहुत ही खतरनाक हो रही है । ܕܘܘܘܨܘܘܨܨ चाय का श्रायात तथा निर्यात करनेवाले देशों में एक समझौता हो गया है, जिससे चाय का व्यवसाय व्यवस्थित हो गया है । गत वर्ष भारत से १,८१५ लाख रुपये की चाय ब्रिटेन गई थी । किन्तु इस वर्ष १,७६८ लाख रुपये की ही गई । भारत में चाय की खपत को और बढ़ाने के लिए यत्न जारी है। में इस साल चावल की उत्पत्ति बहुत अधिक बढ़ गई। १९३३ में ६,४४,००० और १९३४ में ८०, ८,००० इंडरवेट चावल भारत से ब्रिटेन गया था जब कि १९३४ ८,९६,००० हंडरवेट चावल इंग्लैंड भेजा गया है । भारत के तम्बाकू का निर्यात भी ३४ लाख रुपये से बढ़कर ४४ लाख तक पहुँच गया है । और सिगरेट के कारख़ानों में इस तम्बाकू का प्रयोग शुरू किया जानेवाला है। इससे भारत की तम्बाकू द्वारा और अधिक लाभ होने की प्राशा है । जर्मनी और फ्रांस के साथ हमारा भारत का और खालों का व्यापार अच्छा रहा क्योंकि जर्मनी ने हमारे चमड़े पर रोक-टोक जारी की है अतः जर्मनी से हमारा चमड़े का व्यापार उतना अच्छा न हो सका । काफ़ी की खपत बढ़ाने के लिए निरन्तर यत्न कर . www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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