SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ सरस्वती [भाग ३८ अन्तिम दिवस तक, चिर-काल तक मैं तुम्हें प्यार करता उस कमरे के अधखुले दरवाज़े के समीप विनोदचन्द्र रहूँगा। तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध अब कभी कोई कार्य दबे पाँव आये और एक बार अन्दर झाँककर हट गये । न करूँगा।" आल इज वेल दैट एन्ड्स वेल (अन्त ठीक तो सब "और मैं अब कभी तुम्हारे काम में विघ्न न डालूँगी ठीक)-उन्होंने मुस्कराकर धीरे से कहा। उस समय और तुम्हारी आज्ञाकारिणी स्त्री बनी रहने का सदा प्रयत्न उनका हृदय आत्मगौरव तथा अगाध संतोष से भर करूँगी।" गया था। उदय-अस्त लेखक, श्रीयुत सद्गुरुशरण अवस्थी, एम० ए० है प्रथम बिलोड़न किसने, है प्रथम बीज उपजाया, मातरिश्वनि में उपजाया ? अथवा कि वृक्ष पहले है ! गति दी किसने इस जग को, है अन्धकार पहले का, कब कम्पन इसे सिखाया ? अथवा प्रकाश पहले है ? आकर्षण की निधि कब से, पहले उगना मिटना या. इस दृश्य जगत ने पाई ? . है क्या निसर्ग ने पाया ? यह मिलन-प्रक्षिपण-लीला, पहले विकास को अथवा, गति में कब अगति समाई ? पहले विनाश अपनाया ? इस मूक सृष्टि के भीतर, चेतन चेता, रेंगा कब ? बोला कब किससे कैसे, सोचा समझा बूझा कब ? इस प्रखर-ज्वाल-माला को किसने कब प्रसव किया है ? इस शीतल कन्दुक को कब किसने आलोक दिया है ? जब कहीं 'नहीं' सब कुछ था, तब 'हाँ' सोचा है जिसने, इस सारे प्रलय स्रजन की, है विधि बैठाई उसने ॥ 'आरम्भ'-'अन्त' का विस्मय ___ कौतूहल चेतनता का । यह 'अब' का 'तब' का सम्भ्रम धोखा है मानवता का ॥ है 'उदय' 'अस्त' के भीतर; है 'अस्त' 'उदय' का लेखा। यह द्वैतभाव मयों का; अमरों की सीधी रेखा ॥ फेंका किसने कब इनको, कब तक आएँ-जाएँगे ? किस ओर कहाँ सूने में, निश्चेष्ट शान्ति पायेंगे ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy