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________________ २७२ सरस्वती [ भाग ३८ और एम० ए० में जिन्होंने इतिहास लिया हो उन्हें यह का जो हृदय का विश्लेषण करता है- प्रतिभा से निकटतम सम्पर्क है । श्रेष्ठ कला में इसी लिए अनुभूति पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । की गहरी छाप होती है और 'मदिरा' में इसका प्रभाव है। ४- सचित्र योगासन और अक्षय युवावस्था - लेखक, स्वामी शिवानन्द सरस्वती, प्रकाशक भारतवासी प्रेस, दारागञ्ज, इलाहाबाद हैं । पृष्ठ संख्या १७४ और मूल्य १) है । योग दर्शन के प्रेमियों से स्वामी शिवानन्द सरस्वती का नाम छिपा नहीं है । यह पुस्तक आपकी ही लिखी हुई है । इसमें योग सिद्धान्तों का परिचय बड़ी सरल रीति से दिया गया है। यह दो भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में अध्यात्म-विषयक योग का वर्णन किया गया है, जिसके नित्य अभ्यास से मनुष्य योग की अणिमादि सिद्धियाँ प्राप्त करता हुआ चरम सीमा की कैवल्य-समाधि तक पहुँच सकता है। द्वितीय भाग में श्रासनों का वर्णन है, जिनके अभ्यास से मुख्यतः रोगों का नाश होता है और उन आसनों का अभ्यास करनेवाला अक्षय युवावस्था का उपभोग करता है। उन ग्रासनों के अभ्यास से गौणरूप से प्राध्यात्मिक लाभ भी है । प्रत्येक आसन की क्रिया विशदरूप से समझाई गई है। आसनों द्वारा रोगों से मुक्त हुए लोगों के अनुभव भी दिये गये हैं। तृतीय भाग में मुद्रा और बन्धों का वर्णन है । अन्त में प्राणायाम कुडलिनी आदि का वर्णन करके पुस्तक समाप्त की गई है । पुस्तक के अन्त में विशेष स्वभाव के मनुष्यों के लिए विशेष विशेष ग्रासनों के अभ्यास की व्यवस्था दिनचर्या के सहित दी गई है। स्वामी जी के कथनानुसार इस पुस्तक के ग्रासन बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री और पुरुष सभी कर सकते हैं । इस विषय के प्रेमियों को इसका वलोकन करना चाहिए । ५ - मदिरा - श्री तेजनारायण काक 'क्रान्ति', प्रकाशक, छात्र हितकारी - पुस्तकमाला, प्रयाग हैं। मूल्य १) है । प्रस्तुत पुस्तक लेखक के सौ गद्य-गीतों का संग्रह है । 'मदिरा' के रचयिता में कविजनोचित पर्याप्त गुण हैं। उसमें प्रतिभा है, पाण्डित्य है, पर उसकी प्रतिभा पर पाण्डित्य का बोझ है। उसने यह भी लिखा है कि 'मदिरा' के अधिकांश गीतों के 'रहस्यान्मुख प्राध्यात्मिकता' के मूल रवीन्द्र का प्रभाव है । निस्सन्देह कवि हृदय के परिष्कार for festीव श्रावश्यकता है। पर कलाकार T Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 'मदिरा' काक जी की प्रथम रचना है । अतएव उनका यह प्रयत्न प्रशनीय है । पुस्तक के प्रारम्भ में हिन्दी - साहित्य के गद्यकाव्य पर एक विवेचना- पूर्ण निबन्ध है, जो | हिन्दी-प्रेमियों को इस रचना को अपनाना उपयोगी चाहिए । ६ -- कल्पना - लेखक, श्रीयुत मोहनलाल महतो, 'वियोगी', प्रकाशक - विश्व - साहित्य ग्रन्थमाला, लाहौर हैं । प्रस्तुत पुस्तक में 'वियोगी' जी का परिचय देने की विशेष ज़रूरत नहीं है । 'वियोगी' जी हिन्दी के एक प्रसिद्ध कवि तथा ज़ोरदार लेखक हैं । कविता के सिवा free आदि लिखने में भी उन्होंने कहानियाँ, गद्य-काव्य, ख्याति प्राप्त की है । 'कल्पना' उन्हीं की स्फुट कविताओं का संग्रह है । उनकी प्रतिभा कल्पना में भी विशेष रूप से विकसित हुई है । 'कल्पना' में वियोगी जी का कवि - हृदय स्पष्ट दीख पड़ता है । वास्तव में 'कल्पना', ‘हौंस’, 'उलझन', 'दो मन', 'स्वप्न', 'नर कङ्काल से' आदि में दर्द भरी पंक्तियाँ पर्याप्त मात्रा में वर्तमान हैं। 'अपनी बात' में कवि ने लिखा है कि “देश में जब कि चारों ओर महानाश की ज्वाला धधक रही है, माँ बच्चे भूनकर खा जाना चाहती है और पुत्र पिता का सिर काट लेना चाहता है" तब कवि से खून के आँसू की अपेक्षा है । महतो जी का यह दृष्टिकोण अभिनन्दनीय है । हिन्दी-प्रेमियों को वियोगी जी की इस रचना का रसास्वादन करना आवश्यक है। बाद - कुसुमकुमार ७ - रोगों की अचूक चिकित्सा - लेखक, श्रीयुत जानकीशरण वर्मा, प्रकाशक, लीडर प्रेस, इलाहा| पृष्ठ संख्या २७८, मूल्य १11) है । प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के सिद्धान्तों को दृष्टि में रखकर लेखक ने इस पुस्तक की रचना की है। इसमें प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली के सारांश का वर्णन, रोगों के कारण, रोगों के तीन मुख्य प्रकार, चिकित्सा- सिद्धान्त, भोजन, हवा, पानी, धूप-नहान, भाव-नहान, व्यायाम, www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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