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________________ संख्या ३] नई पुस्तके २९---श्री कौशलेन्द्र-कौतक-लेखक व प्रकाशक, एक उपयोगी कार्य किया है। इसके लिए वे सर्वथा धन्यवाद श्रीयुत बिहारीलाल विश्वकर्मा, हंस-तीर्थ, काशी हैं। के पात्र हैं। परन्तु यह विशाल ग्रन्थ बिक्री के लिए नहीं मूल्य १।।) है। है और यदि बिक्री के लिए भी होता तो भी इसे साधारण १-श्रृंगारलतिका-सौरभ-अयोध्या-नरेश महाराज श्रेणी के लोग प्राप्त न कर सकते। ऐसी दशा में क्या मानसिंह 'द्विजदेव' का हिन्दी के पुराने कवियों में महत्त्व का ही अच्छा होता, यदि इसका एक ऐसा भी संस्करण निकस्थान है । उनकी रचित 'शृंगारलतिका' के पद्यों को उनके लता जो सवसाधारण को भी सुलभ होता। इस विशाल बाद के सभी संग्रहकारों ने अपने संग्रहों में गौरव पूर्ण स्थान ग्रन्थ की पृष्ठ-संख्या ८० +९८४ + २४ = ८०८ है। दिया है। खेद की बात है कि उनकी उक्त रचना सर्व- 'शृंगारलतिका' नायिका-भेद का एक उत्कृष्ट ग्रन्थ है । साधारण को अप्राप्य थी । इस ग्रन्थ को इसके दो टीकात्रों यह तीन सुमनों में विभक्त है। प्रथम सुमन में दोहा, के साथ उनके दौहित्र तथा उत्तराधिकारी स्वर्गीय अयोध्या- सवैया आदि ६५ पद्य हैं। दूसरे सुमन में १७३ पद्य हैं नरेश महाराज प्रतापनारायणसिंह ने एक बार छपवाया और तीसरे में ३६ पद्य हैं। इसकी था। बोल-चाल की हिन्दी में एक टीका स्वयं महाराज ने संवत् १९०६ में की थी और कदाचित् उसके निर्माण साहब ने लिखी थी और दूसरी टीका ब्रज-भाषा में पण्डित में उनका यह पूरा साल व्यतीत हुआ था। राधा-कृष्ण की जगन्नाथ अवस्थी ने लिखी थी। परन्तु वह संस्करण भी लीला और नखशिख का वर्णन करते हुए द्विजदेव ने अप्राप्य हो गया था। आलोच्य पुस्तक उसी अप्राप्य अपनी इस रचना में अपने भाषा-ज्ञान तथा उच्च कोटि के पुस्तक का नूतन संस्करण है, जिसे अयोध्याराज्य की कवित्व का परिचय दिया है। वर्तमान महारानी श्रीमती जगदम्बा देवी ने अपने पतिदेव २-स्मृति-शक्ति-लेखक, चतुर्वेदी पण्डित द्वारकामें छपवाया है। उसका यह संस्करण छपाई प्रसाद शर्मा, प्रकाशक, भारतवासी प्रेस, दारागञ्ज, इलाहा मनोहर तथा नयनाभिराम ही नहीं है, बाद हैं। पृष्ठ-संख्या ७४ क्राउन श्राक्टेवो साइज़ और किन्तु इसके सम्बन्ध में यह बात तक कही जा सकती है कि मूल्य ।।) है । ऐसा सुन्दर संस्करण शायद ही किसी हिन्दी-ग्रन्थ का कभी चतुर्वेदी जी हिन्दी के पुराने लेखकों में हैं। यह शृंगारलतिका' के ऐसे सुन्दर संस्करण के पुस्तक अपने विषय की प्रथम पुस्तक है। एक कमज़ोर रानी साहब ने बहुत अधिक धन व्यय याददाश्तवाला भी अधिक से अधिक बातें किस तरह याद किया है। यही नहीं, उसका उत्तम ढंग से सम्पादन रख सकता है, यह सब इसमें अभ्यासों के सहित बहुत ही करवाने में अपनी ओर से कुछ उठा नहीं रक्खा। अच्छे ढंग से बताया गया है। पुस्तक की शैली रोचक है। मथुरा के ब्रज-भाषा-काव्य के मर्मज्ञ पण्डित जवाहर- वकीलों, विद्यार्थियों और मस्तिष्कजीवी लोगों को इसका लाल चतुर्वेदी ने इसका जिस परिश्रम और अध्य- उपयोग करना चाहिए। वसाय से सम्पादन किया है उससे यह महत्त्व-पूर्ण ग्रन्थ ३--राबर्ट क्लाइव-लेखक, चतुर्वेदी पण्डित अति सुन्दर तथा शुद्ध रूप में प्रकाशित हो सका है। द्वारकाप्रसाद शर्मा, प्रकाशक, भारतवासी प्रेस, दारागञ्ज, चतुर्वेदी जी ने मूल पुस्तक के पाठ को यथावत् देकर इलाहाबाद हैं। मूल्य ॥) है। तथा पाद-टिप्पणियों में यथा-प्राप्त पाठान्तर एवं मूल चतुर्वेदी जी की यह एक मौलिक रचना है। राबर्ट रचना तथा टीकात्रों के भावों को स्पष्ट और वशद करने क्लाइव भारतवर्ष में अँगरेज़ी राज्य के जड़ जमानेवालों में के विचार से साहित्य के विद्वानों का मत तथा उनकी एक प्रधान पुरुष समझे जाते हैं। अपनी प्रतिभा के बल से सूक्तियाँ उद्धृत कर इस ग्रन्थ के महत्त्व को और भी बढ़ा एक मामूली क्लर्क से तत्कालीन ब्रिटिश भारत के सर्वेसर्वा दिया है। हो गये थे। उन्हीं का इसमें विशद परिचय दिया गया है, इस ग्रन्थ को इस प्रकार सुसम्पादित करवाकर तथा साथ ही इसमें तत्कालीन भारत का बड़ा ही करुण चित्र उत्तम रूप में छपवाकर श्री महारानी साहब ने वास्तव में खींचा गया है । इसकी रचना-शैली भी रोचक है। बी० ए० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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