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स्त्रियों के अपहरण
के
मूल कारण साहित्य-सदन, कृष्णनगर, लाहौर, ७-२-३७
प्रिय महोदय !
फ़रवरी की 'सरस्वती' में 'स्त्रियों के सम्बन्ध में भ्रमात्मक सिद्धान्त' शीर्षक लेख पढ़ा। इसमें सितम्बर ३६ की 'सरस्वती' में प्रकाशित मेरे 'हिन्दू-स्त्रियों के अपहरण के मूल कारण' शीर्षक लेख की आलोचना है । लेखिका के रूप में जिन कुमारी का नाम 'सरस्वती' में छपा है वे भी लाहौर के उसी महल्ले में रहती हैं जिसमें मैं रहता हूँ। कुछ समय पूर्व जब मैंने एक मित्र से सुना कि एक देवी ने मेरे लेख की आलोचना लिखकर 'सरस्वती' में भेजी है तब इस विषय पर एक देवी के विचार जानने की आशा से मैं बहुत प्रसन्न हुआ था । मैंने समझ रक्खा था कि लेख के पाठ से मेरे ज्ञान में कुछ वृद्धि होगी । परन्तु अब लेख को पढ़कर मुझे घोर निराशा हुई, इसलिए नहीं कि उसमें मेरी कड़ी आलोचना है, न इसलिए कि वह लेख कृत्रिम है, उसमें किसी नारी- हृदय का उच्छवास नहीं, बरन किसी लहँगा चुनरी धारी पुरुष के नारी-सेवा-धर्म या 'शिवलरी' का प्रदर्शन मात्र है । जिस बालिका का नाम लेख की लेखिका के रूप में दिया गया है वह स्कूल में पढ़ती है। लेख में जिस प्रकार की भाषा और विचार व्यक्त किये गये हैं, स्कूल में पढ़नेवाली कोई कुमारिका वैसी भाषा में वैसे विचार
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कभी व्यक्त कर ही नहीं सकती। उसे इस बात का ज्ञान हो नहीं हो सकता कि अमुक दम्पति में 'किसी प्रकार का वासना-पूर्ण सम्पर्क नहीं है।'
कुछ
साड़ी-धारी लेखक ने मेरे लेख के आशय का वा तो समझा ही नहीं या उसने जानबूझ कर मेरे विरुद्ध स्त्री जाति को उभाड़ने और अपने को स्त्री- रक्षक प्रकट करने की चेष्टा की है। मैंने जो कुछ लिखा है उसमें कितनी सचाई है और मेरे खंडन में जो लिखा गया है उसमें कितना सत्यांश है, इसका पता कृष्णनगर - (लाहौर) निवासियों से पूछने से लग सकता है । युवक और युवतियों के अमर्यादित मेल-मिलाप से उनके नैतिक पतन का भय रहता है, इसलिए उन्हें अलग अलग रहना चाहिए, जिस प्रकार यह कहना किसी को व्यभिचारी ठहराना नहीं है, उसी प्रकार नारी-प्रकृति के सम्बन्ध में कोई मनोवैज्ञानिक तथ्य बताकर उससे लाभ उठाने का परामर्श देना किसी की निन्दा करना नहीं । स्त्रियों की झूठी प्रशंसा से वाहवाही तो मिल जाती है, परन्तु जात का कोई लाभ नहीं पहुँच सकता । इच्छा रहते भी मैं समालोचक महाशय पर तब तक प्रहार नहीं करूँगा जब तक वे साड़ी जम्पर उतारकर अपने प्रकृत पुरुष-रूप में मैदान में नहीं आते। इससे अधिक मैं इस समय और कुछ नहीं कहना चाहता ।
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आपका
सन्तराम
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