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नरहरि का निवास
लेखक, श्रीयुत ठाकुर मानसिंह गौड़ नाकबरी दरबार के हिन्दी-कवियों में नरहरि का अपना विक्रमी में प्रकाशित हुई थी। इसमें नरहरि कवि के वंश
एक विशेष स्थान रहा है । ये अपने समय के एक के विषय में इस तरह लिखा हैस्वाधीनचेता और नीतिकुशल महाकवि थे । खेद है, इनके
जग जानि आदि कवि वेद पुरुष । सम्बन्ध में अभी तक कोई जाँच-पड़ताल नहीं हुई है। जैसे तेहिं बंदीजन रामचरित मैं, गिरिधरदास अपनी कुण्डलियों के लिए प्रसिद्ध हैं, वैसे ही ये
मुनिन कही यह वाज सुरुष ॥१॥ अपने छप्पयों के लिए प्रख्यात हैं। गिरिधरदास की कुछ श्रीयुत नरहरि नाम महाकवि, कुण्डलियायें मिलती भी हैं, पर नरहरि के छप्पयों का लोप-सा
जिनके डंके बजत दुरुष । हो गया है। तब इनके ग्रन्थों के सम्बन्ध में क्या कहा जा जिन बन काटि बसाई असनी, सकता है ? और तो और, हिन्दीवालों ने यह तक जानने का
ब्राह्मणभक्ति न तन में है रुष ॥२॥ प्रयत्न नहीं किया कि ये कहाँ के निवासी थे। ठाकुर शिवसिंह तिनसे श्री हरिनाथ प्रगट भे, सेंगर ने अपने 'सरोज' में इन्हें असनी का निवासी लिखा
मधुर बचन कबहू न कुरुष ।। है। बस उसी की नकल हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों
जिनकी धुजा पताका फहरत, ने कर ली। मिश्रबन्धुत्रों ने, कहा जाता है, अपना 'विनोद' जिनके कुल में कोउ न मुरुष ॥३॥ विशेष खोजों के आधार पर लिखा है, परन्तु उनके संशो- मन थिरात बिनु साधन देखत, धित तथा परिवर्द्धित संस्करण में भी नरहरि असनी के श्री गंगा की झाँक मुरुष ॥ ही निवासी लिखे गये हैं । और यह बात सोलहो पाने ग़लत सो असनी भूदेव बाग सी, है । वास्तव में नरहरि बैसवाड़े के पखरौली ग्राम के निवासी देखत उपजत हरष हुरुष ॥४॥ थे । यह ग्राम रायबरेली-ज़िले के डलमऊ-कस्बे से दो मील इससे प्रकट होता है कि नरहरि और उनके पुत्र हरिनाथ पर्व गंगा जी से दो मील उत्तर स्थित है। इस गाँव में नर- का श्रादिस्थान असनी नहीं था। और सुनिए..हरि जी के द्वारा स्थापित सिंहवाहिनी देवी का मंदिर श्राज श्रीहरिनाथ अश्विनी भाये। भी मौजूद है । उनके वंशधर विवाह आदि शुभ अवसरों
पितु धन पाय सुग्राम बसाये ॥ पर देवी का पूजन करने के लिए यहाँ प्रायः आते रहते हैं।। श्रादिनाथ बेती सुखधामा। यह कहावत यहाँ अाज भी प्रचलित है कि
गोपालौ गोपालपुर नामा ॥ "बरहद नदी पखरपुर गाँव,
बेंती-कल्यानपुर नाम का गाँव गंगा जी के किनारे तिनके पुरिखा नरहरि नाँव" डलमऊ से तीन मील पूर्व है, अर्थात् पखरौली से केवल एक बरहद नाम का बहुत लम्बा-चौड़ा तालाब अब भी मील पर है। 'ब्रह्मभट्ट-प्रकाश' तृतीय खंड सफा ४९ में पखरौली में है। ज्यादा पानी हो जाने पर इसका पानी हरिनाथ भट्ट की संक्षिप्त जीवनी दी गई है। उसमें भी गंगा जी में जाकर गिरता है। बरहद तालाब पखरौली के हरिनाथ-द्वारा असनी का बसाया जाना लिखा है। यह भी उत्तर-पश्चिम ग्राम से मिला हुआ है। पखरौली लिखा है कि एक समय कार्यवश हरिनाथ रीवॉनरेश के पूर्व एक और तालाब है । वह 'हरताल' के नाम से प्रसिद्ध महाराज रामसिंह के पास गये थे। प्रसंगवश महाराज ने है। कहा जाता है कि इसमें नरहरि के हाथी नहलाये जाते अपनी पाली हुई चिड़ियाँ दिखलाकर उनसे पूछा कि थे। मुझे 'अश्विनी-चरित्र' नाम की एक पुस्तक मिली आपने भी चिड़ियाँ पाली हैं। तब उन्होंने यह उत्तर है। यह रायगंज, कानपुर, के 'शंकर-प्रेस' से संवत् १९८४ दिया
રદ્દ
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