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संख्या ३]
हमारी गली
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गई जिस प्रकार क्षितिज में जाकर ज़मीन ख़त्म हो जाती है सुलेमान को हुक्म मिला कि एक महल बनायो तो बस
और आसमान शुरू हो जाता है, और जान नहीं पाते कि साहब उन्होंने तैयारियां शुरू कर दी। जिन्नातों ने आननज़मीन ख़त्म हो गई या हर जगह आसमान ही आसमान फानन में बड़े-बड़े फ़त्तर और सिल्ले ला-लाकर जमा कर है । आवाज़ इस तरह धीरे-धीरे रुक गई कि आवाज़ और दिये और मदत लग गई, तुम जानते ही हो कि जिन्नातों उस खामोशी में कोई भेद नहीं देख पड़ता था। आवाज़ का काम कितना फुर्ती का होता है। आज इतना, कल कानों में गूंज रही थी, लेकिन यही सन्देह होता था कि वितना, थोड़े ही दिन में महल आसमान से बातें करने केवल मौन का अातङ्क कानों पर छाया हुआ है। लग गिया। हज़्ज़त सुलेमान रोज़ विस जंगा जाके देखा
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करते कि कोई काम में सुस्ती तो नहीं कर रिया है । तो एक रात को मिर्जा की दुकान पर चार अादमी बैठे बस, साहब एक दिन महल खड़ा हो गिया। अब सिर्फ़ हुए बातें कर रहे थे। उनमें से एक तो अज़ीज़ था, एक विस के अन्दर की कत्तलें और फ़त्तर साफ़ करने रह गिये। कबाबी और एक-आध और इकट्ठे हो गये थे। उनके सामने दूसरे रोज़ फिर हज़त सुलेमान अपनी लकड़ी टेककर हुक्का रक्खा था और वे बारी बारी से यूंट खींच रहे थे। खड़े हो गये और कूड़े-करकट को बाहर फेंकने का हुक्म उनमें से एक कह रहा था
दे दिया। लेकिन वित्ने में वहाँ से कुछ और ही हुक्म श्रा मैं तो यार, हर एक चीज़ में विस की शान देख चुका था। अब देखिए विस की शान कि यहाँ तो महल रिया हूँ।"
की सफ़ाई हो रही है और वहाँ विस लकड़ी में घुन लगना इस पर मेरे कान खड़े हुए और मैं ध्यान से सुनने शुरू हो गया। लेकिन वे डटे खड़े रहे। यहाँ तक कि लगा। इतने में एक गाहक आया और उसने मिर्ज़ा से घुन लगते-लगते मूंठ तक पहुँच गया, लेकिन विस को एक अाने का दूध माँगा और एक अोर खड़ा हो गया। ज़री भी खबर नहीं हुई और लकड़ी राख की तरियों झड़ मिर्जा ने एक कुल्हड़ उठाया और दूध निकालने के लिए गई और विन का खुद का दम निकल गया। लेकिन लुटिया कढ़ाई की ओर बढ़ाई । उस आवाज़ ने अपनी बात मैं तो इस बात पर हरियान हो रिया हूँ कि उन कत्तलों उसी तरह कहना शुरू किया--
और फ़त्तलों को कौन साफ़ करेगा।" ___“परले दिन में चाँदनी चौक में से जा रिया था कि अज़ीज़ के हाथ में हुक्के की नली उसके मुँह के सामने से एक बछिया आ री थी, उसी जगा एक बच्चा बराबर रक्खी हुई थी और वह बोलनेवाले की तरफ़ घूर पड़ा वा था। गाय बच्चे के पास पान के रुक गई । मैंने रहा था। मिर्जा का एक हाथ जिसमें लुटिया थी, ऊपर था सोचा कि देखो अब क्या करती है। वित्ने में साब विस और श्राबखोरेवाला नीचे. और वह किस्से में बेसुध बछिया ने अपने चारों पैर जोड़कर कुल्लाँच मारी कि बच्चे हो लगा हुआ था। मैंने ज़ोर से एक कहकहा लगाया, को साफ़ लाँग गई। मुझको तो उस जानवर की अक्ल में लेकिन फिर सोच में खो गया कि वाकई आखिर इन विस की शान नज़र आ गई।" मिर्जा का एक हाथ कढ़ाई "कत्तलों और फ़त्तरों" को कौन साफ़ करेगा। के पास था, दूसरे में कुल्हढ़, और वह बोलनेवाले की हवा का एक झोंका ज़ोर से आया और मिट्टी के तेल ओर घूर रहा था।
का लैम बुझ गया। सड़क पर अँधेरा था। उसी वक्त ___ अज़ीज़ बोला-"वाह क्या विस की शान है !" लोग मिर्जा की दूकान से उठकर चलने लगे और मैं भी मिर्जा ने लुटिया में दूध लिया और उसको उछालने घर के अन्दर चला गया ।* लगा, उतने में एक दूसरा शख्श बोला-"हाँ, मिया उसकी शान का क्या पूँछ रिये हो। एक मर्तबा हज़ ( सर्वाधिकार लेखक के लिए सुरक्षित)।
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