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________________ संख्या ३] हमारी गली २५१ केवलम अतिरिक्त कोई अन्य बात नहीं, उसी प्रकार इनको जीवन जिले से काम की तलाश में आ गया था। वह रात को का उदय और अस्त एक प्रकार है। इनके लिए दिन एक मस्जिद में पड़ रहता और दिन भर शहर की काम करने और रातें सो रहने के लिए बनी हैं । बस यही सड़कों पर मारा मारा फिरता । लेकिन शहर की हालत इनका जीवन है और यही इनके जीवन का ध्येय । और काम काज मिलने के सम्बन्ध में गाँवों और कस्बों से किसी मत्य ही इनका जीवन से छटकारा दिला सकती है। तरह अच्छी नहीं थी। इसलिए शेरा को कोई काम न x x मिल सका। मस्जिद में मीर अमानुल्ला नमाज़ पढ़ने एक और चीज़ हमारे मुहल्ले में बहतायत से दीख पाया करते थे। शेरा ने उनको अपनी कहान पड़ती और वे थे कुत्ते मरे हुए और भूख से सताये । बहुतों मीर साहब को उसकी दयनीय दशा पर दया आ गई और ली थी और उनकी खाल में से मांस दिखाई पड़ता वे उसे अपने घर ले गये। शेरा नेक और ईमानदार था। अपने बड़े बड़े दाँतों को निकालकर वे अपने पट्रों आदमी था। कुछ समय के बाद मीर साहब ने उसे पाँच को खुजाते थे या कसाई की दुकान के सामने एक हड्डी के रुपये दिये और कहा--"इससे कोई काम शुरू कर देना, पाछ एक-दूसरे को नोचते और लहूलुहान कर देते। वे इसी लिए मैं ये रुपये देता है। जब तेरे पास पैसे हों तब अपनी दुमें टाँगों के बीच दबाये नालियों को सूंघते दबे यह रकम वापस कर देना, नहीं तो कोई फ़िक की बात दबे पातं और कसाई की दुकान पर छीछड़ी पर झपटते, नहीं।" लेकिन जैसे ही उनको गोश्त का कोई टुकड़ा या हड्डी दिखाई शेरा ने दाल, सेव और काबुली चनों का खोमचा देती तो चीलें ऊपर से झपट्टा मारती और उनके सामने लगाया। कुछ ही दिनों में शेरा को बहुत-से मुहल्लेवाले से उसको उठा ले जातीं । फिर वे एक ऐसे आदमी की जान गये और उसका सौदा खूब बिकने लगा। साल भर तरह जो कुछ लज्जित हो चुका हो, अपनी दुम दबाये हुए में ही उसने मीर साहब के रुपये लौटा दिये, अपने बीबीसड़क को सूंघा करते या अपनी भैप आपस में लड़ाई करके बच्चों को बुला लिया और एक छोटे-से परिवार में रहने और एक-दूसरे का खून बहाकर निकालते। लगा। वह बहुत खुश था। .. इसी समय के बीच में अब्दुर्रशीद को स्वामी श्रद्धाप्रातःकाल को बड़े सवेरे शेरा चने वेचनेवाले की नन्द की हत्या के अपराध में फाँसी का हुक्म हो गया था। आवाज़ आती । वह अपनी झोली में गरम गरम, ताज़े, शहर के मुसलमानों में एक हलचल मच गई। फाँसी के भुने हुए चने, गली-गली और कूचे-कूचे बेचता फिरता दिन जेल के बाहर हज़ारों आदमियों का झुण्ड था। वे सब था। उसकी उम्र कोई चालीस साल के थी, लेकिन वह दरवाज़े को तोड़कर भीतर घुस जाना चाहते थे । लेकिन दुर्बल और सूखा हुआ था। उसके चेहरे पर झुर्रियाँ अभी जब पुलिस ने अब्दुर्रशीद की लाश को लौटाने से मना कर से देख पड़ती थीं। उसकी ख़शख़शी दाढ़ी में सफ़ेद बाल दिया तब लोगों के जोश और गुस्से का कोई ठिकाना नहीं आ गये थे। उसकी आँखें एक बीमार की आँखों की तरह रहा। उनका बस नहीं चलता था कि किस तरह जेल को थीं, जिनके नीचे काले घेरे-से पड़े हुए थे और जिनमें मिट्टी में मिला दें, और उस गाज़ी की लाश को एक शहीद भूख और दीनता, रंज और मुसीबत साफ़ झलकते थे। की तरह दफ़न करें। उनके ढेलों में बारीक लाल रगे दूर से दिखाई देती थी, उस दिन शेरा किसी काम से जामामस्जिद की ओर जैसे या तो नशे में या दिनों के अनशन और बुखार के गया हुअा था। आसमान पर धूल छाई थी और सड़के बाद पैदा हो जाती हैं । उसके सिर पर कपड़े की एक मैली एक मौन शहर की भाँति सुनसान और उजाड़ मालूम हो टोपी होती थी। गले में फटा हुअा कमीज़, और उसकी रही थीं। पड़े हुए दोनों को चाटते हुए कई-एक कुत्ते उसे ऊँची धोती में से उसकी पतली पतली टाँगें दिखाई दिखाई दिये । एक नाली में एक मरा हुआ कबूतर पड़ा देती थीं। था। उसकी गर्दन मुड़ गई थी, उसकी कड़ी और नीली बहुत दिन हुए जब वह हमारे शहर में पास के किसी टाँगें ऊपर उठी हुई थीं, पर पानी में भीग गई थीं। उसकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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