________________
२४६
(३) आर्थिक कारण --संयुक्त पारिवारिक संगठन का परिणाम स्त्रियों के स्वत्वाधिकार पर आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत पड़ा। भारत कृषि प्रधान देश रहा है और व भी है। घर-द्वार, खेत-खलिहान, हिन्दू कृषक परिवारों की यही प्रधान सम्पत्ति है । अत्र इस प्रकार की सम्पत्ति यदि परिवार के संयुक्त अधिकार में रहे तो ठीक है । किन्तु यदि उसमें रोज़ बँटवारा होने लगे तो बड़ी अड़चन पड़ेगी । उससे सम्पत्ति का मूल्य भी घट जायगा और असुविधा भी होगी । बँटवारा होना बुरी बात है, फिर भी इसके बिना काम नहीं चलता, इसलिए पुरुषों में बँटवारा हो सकता है । किन्तु यदि स्त्रियों को भी वह अधिकार दिया जाय तो विषम समस्या खड़ी हो जायगी। स्त्री विवाह होने के बाद एक परिवार से दूसरे परिवार में चली जाती है। यदि उसे सम्पत्ति मिले तो वह भी बँटकर दूसरे परिवार में चली जायगी । इसमें दोनों को ही सुविधा होगी । इसलिए शास्त्रकारों ने यह नियम बना दिया कि पुत्रों को तो पारिवारिक सम्पत्ति में भाग दो, किन्तु कन्याओं को नहीं । दूसरा कारण यह हुआ कि स्त्रियाँ व्यवहार कुशल और बहुत पढ़ी-लिखी नहीं होती थीं और सम्पत्ति का सुप्रबन्ध नहीं कर सकती थीं। इसलिए उन्हें सम्पत्ति में अधिकार न देकर उनके उचित निर्वाह का प्रबन्ध कर दिया गया।
सरस्वती
डाक्टर देशमुख के बिल का अभिप्राय हिन्दू स्त्रियों के सम्पत्ति-सम्बन्धी प्राप्ति, उपभोग और पृथक्करण के अधिकारों पर लगे हुए प्रतिबन्धों को हटाना है । उसके अनुसार स्त्रियों को भी पुरुषों की तरह सम्पत्ति पर पूरा और हर तरह का अधिकार मिलना चाहिए। वह स्त्री धन के पारिभा त्रिक अर्थ को उड़ा देगा और केवल उसके वैयुत्पत्तिक अर्थ को मानेगा । परिवार में स्त्री और पुरुष समान अधिकार पावेंगे और साम्यभाव से साथ रहेंगे ।
रूप
बिल के गुण-दोषों के विषय में अभी कुछ भी निश्चित से कहना अत्यन्त कठिन है । परिवर्तन-वादी कहते हैं कि स्त्रियों को पुरुषों की सतह पर रखना आवश्यक है। arry र अमरीका ने जो उन्नति की है उसमें स्त्रियों का बहुत बड़ा हाथ है और स्त्रियों में जागरण तभी हुआ है जब उन्हें अपने सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की याद
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
[भाग ३८
आई है। भारत में भी स्त्रियों को स्वतंत्र बनाना आवश्यक है। जब तक वे स्वतंत्र नहीं होतीं तब तक राष्ट्रीय जागरण नहीं हो सकता और स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। इसके विरुद्ध अपरिवर्तनवादी कहते हैं कि योरप और अमरीका ने जो कुछ किया है वही हमारा भी कर्त्तव्य है, ऐसी कोई बात नहीं है । पारिवारिक हित सहयोग में है, प्रतियोगिता में नहीं । प्रजातंत्र का युग जा रहा है और तानाशाही का युग आ रहा है। इसका अर्थ है कि सभी में प्रकृतिदत्त सुप्रबन्ध करने की शक्ति नहीं होती। इसलिए जिसे ईश्वर शक्ति दी है उसी के हाथ में सम्पत्ति छोड़ देना अच्छा है ।
दोनों दलों की दलीलों में थोड़ी बहुत सचाई है । यह सच है कि स्त्रियों में जागरण आने के लिए उन्हें कुछ आर्थिक स्वतंत्रता मिलना जरूरी है, किन्तु यह भी सच है। कि पारिवारिक हित के लिए दो में से एक को किसी अंश तक परतंत्र होकर रहना ही पड़ेगा और प्रकृति का तक़ाज़ा है कि स्त्री पुरुषों के सरंक्षण में रहे। अधिकार-चर्चा के जोश में चाहे जो भी कह दिया जाय, किन्तु असलियत यही है कि स्त्री का सबसे बड़ा भरोसा पुरुष की ताकत में है । प्रकृति के इस अटल नियम को कोई नहीं उलट सकता । पुरुषों के बलवान् होने में ही स्त्रियों का भी कल्याण है ।
स्त्रियों को सम्पत्ति पर अधिकार मिलना चाहिए और ज़रूर मिलना चाहिए, पर कैसा और कितना मिलना चाहिए, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। यह प्रश्न आज हमारी प्रधान व्यवस्थापिका सभा के सामने उपस्थित है । एक
र नवयुग की क्रान्ति की लहर है और दूसरी ओर प्राचीनयुग की रूढ़ियों की दीवार। दोनों बलवान् हैं, दोनों कठोर हैं, फिर भी दोनों को ही झुकना पड़ेगा। दोनों के समझौते में ही कल्याण है ।*
* डाक्टर देशमुख के बिल को असेम्बली ने अपनी ४ फ़रवरी की बैठक में पास कर दिया है । परन्तु उसमें सेलेक्ट कमिटी ने बहुत कुछ काँट-छाँट दिया है । जिस सुधरे हुए रूप में वह पास हुआ है उसमें केवल विधवाओं को ही अधिकार दिया गया है । - सम्पादक ]
www.umaragyanbhandar.com