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संख्या ३]
हिन्दू-स्त्रियों का सम्पत्त्यधिकार
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बहन का स्थान सबसे पीछे आता है । गोत्रज सपिण्ड जिक कारणों का प्रभाव तीन प्रकार से पड़ा। पहली बात न होने के कारण उसका अधिकार सबसे पीछे है। किन्तु तो यह थी कि प्रारम्भ में समाज राजनैतिक दृष्टिकोण से बहन के अधिकार के सम्बन्ध में बहुत-से विवाद चलते सुदृढ़ नहीं था। सम्पत्ति की रक्षा का भार सम्पत्ति के आये हैं। किन्तु अब १९२९ के हिन्दू-उत्तराधिकार के अधिकारियों पर ही रहता था। परिवार में पुरुषों पर ही कानून के पास हो जाने के कारण काशी, महाराष्ट्र, मदरास इसका भार रहता था। इसी कारण सभी की यह चेष्टा
और मिथिला में बहन को उत्तराधिकार में निश्चित स्थान रहती थी कि परिवार में जितने ही पुरुष हों उतना ही मिल गया है, साथ साथ पुत्र की कन्या, पुत्री की कन्या अच्छा । इसी से शास्त्रों ने बारह प्रकार के पुत्र और आठ
और बहन के लड़के को भी स्थान मिला है । बंगाल में यह प्रकार के विवाह माने । दूसरी बात रक्त की शुद्धता थी। नियम लागू नहीं है और वहाँ बहन अब भी उत्तराधिका- देश समृद्धिशाली था, किन्तु सुव्यवस्थित नहीं था। बाहर रिणी नहीं समझी जाती।
से बहुत-सी जातियाँ आक्रमण किया करती थीं। अायों का स्त्रियों के अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगने के तीन प्रकार रक्त शुद्ध रहे और बाहर से उसमें कोई सम्मिश्रण न होने के कारण हैं-धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक । पावे, इसकी चेष्टा की गई। इसका पहला परिणाम यह
(१) धार्मिक कारण-जैसा कि डाक्टर राजकुमार हुआ कि स्त्रियाँ घरों में बन्द कर दी गई। उनकी रक्षा सर्वाधिकारी ने कहा है कि हिन्दुओं की उत्तराधिकार- करने के लिए पुरुष अपनी जान देने लगे । यह प्रवृत्ति सम्बन्धी व्यवस्थाओं का मूल मंत्र है पितृ-पूजा। पितृ-पूजा यहाँ तक बढ़ी कि धीरे धीरे असवर्ण विवाह उठने लगे, में तीन पीढ़ी तक पितरों की गणना की जाती है। अनुलोम विवाह निषिद्ध हो गया, चरित्र की शुद्धता पर इनकी पूजा अर्थात् श्राद्ध-प्रथा का प्रभाव व्यवस्था- अधिक ज़ोर दिया जाने लगा और पहले जो आठ प्रकार शास्त्र के और अंगों से अधिक उत्तराधिकार पर पड़ा। के विवाह शास्त्रोक्त थे उनकी संख्या केवल दो रह गई। विष्णु ने अपना मत निश्चित किया कि जो सम्पति का नियोग की प्रथा भी एकदम उठा दी गई। इसका परि. उत्तराधिकारी होगा उसे सम्पत्ति के भूतपूर्व स्वामी को णाम अच्छा भी हुआ और बुरा भी। सामाजिक अाचरण पिण्डदान अवश्य देना पड़ेगा। धर्म, समाज और व्यवस्था- की शुद्धता की सतह बहुत ऊपर उठ गई, विशृंखलता घट शास्त्र, तीनों ने मिलकर पिण्डदान को उत्तराधिकार के गई, परिवारों में संगठन श्रा गया, किन्तु स्त्रियाँ परतंत्र हो साथ चिरन्तन बन्धन में बाँध दिया।
गई और उनके आर्थिक अधिकारों के प्रति व्यवस्थापक इस प्रथा का सबसे विषमय परिणाम पड़ा स्त्रियों के उदासीन हो गये। आर्थिक स्वतंत्रता से व्यावहारिक अधिकारों पर। पितरों को पिण्ड-दान मिलता रहे, इसके स्वतंत्रता भी आ जाती है और इसे शास्त्रकार पसन्द नहीं लिए आवश्यक था कि वंश युग-युग तक कायम रहे। करते थे अतएव उन्होंने स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता की इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि स्त्रियों का अस्तित्व जड़ ही काट दी। तीसरा कारण यह हुआ कि पारिवारिक गौण विषय हो गया। फिर दूसरी आवश्यकता यह भी संगठन के बाद धीरे धीरे परस्पर सहयोग की भावना प्रोत्साथी कि जो पुरुष पिण्ड दे वह सम्पत्ति ज़रूर पावे। बंगाल हित की जाने लगी। चेष्टा की गई कि परिवार के व्यक्तियों तो एक कदम और आगे बढ़ गया। जीमतवाहन ने यह में प्रतियोगिता की भावना हटाकर सहयोग के विचार रक्खे लिख दिया कि जो पिण्डदान दे सकता है वही सम्पत्ति जायँ । शास्त्रकारों ने पृथक् सम्पत्ति के विरुद्ध और संयुक्त भी पा सकता है। पुरुषों को पिण्ड देने का स्त्रियों से पारिवारिक सम्पत्ति के पक्ष में व्यवस्थायें बनाई। यह अधिक अधिकार था, इसी लिए सम्पत्ति भी प्रायः वही पाने सब किसी बुरे अभिप्राय से नहीं, किन्तु सद्विचार से लगे। मिताक्षरा ने इसे नहीं माना। फिर भी इतना हुआ कि किया गया और इसका परिणाम भी पारिवारिक दृष्टि से उत्तराधिकार से पाई हुई सम्पत्ति पर स्त्री का स्वत्व बिलकुल अच्छा ही हुआ, किन्तु स्त्रियों को यहाँ भी घाटा ही रहा । परिमित हो गया। उसे केवल उपभोग का अधिकार मिला। उनके अधिकार परिवार के हित के लिए बलिदान कर
(२) सामाजिक कारण--प्रतिबन्धों के लगने में सामा- दिये गये और उन्होंने सब कुछ चुपचाप सह लिया।
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