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सरस्वती
[ भाग ३८
है जिन पर स्त्रियों का पूर्ण अधिकार रहता है। परिमित ४-निर्वाह करने के बदले में दी हुई सम्पत्ति । अधिकारवाली सम्पत्तियों को शास्त्रकारों ने स्त्री-धन नहीं कहा ५-मीरास की सम्पत्ति । है। इसलिए अपनी सुविधा के लिए हम यहाँ दो प्रकार का ६-स्वोपार्जित सम्पत्ति। स्त्री-धन मानेंगे -(१) पूर्ण स्त्री-धन और (२) परिमित स्त्री- ७-किसी अधिकार का निपटारा कर लेने पर मिली धन । पूर्ण स्त्री-धन वह है जिस पर स्त्री का पूरा अधिकार हुई सम्पत्ति । हो और परिमित स्त्री-धन वह है जिस पर उसका अधिकार ८-विपरीताधिकार से मिली हुई सम्पत्ति । किसी अंश में परिमित हो । अब यह प्रश्न हो सकता है ९–पूर्ण स्त्री-धन के मूल्य अथवा आय से खरीदी कि व्यावहारिक दृष्टि से 'पूर्ण' और 'परिमित' स्त्री-धन में गई सम्पत्ति । क्या अन्तर है। इसका उत्तर यह है कि यह अन्तर दो इन नौ प्रकार की सम्पत्तियों में कुछ तो पूर्ण स्त्री-धन हैं प्रकार से महत्त्वपूर्ण है
__ और कुछ परिमित । अब हम इनका यहाँ क्रमशः विवेचन (१) प्रत्येक प्रकार का पूर्ण स्त्री-धन किसी स्त्री के करेंगे। मरने के बाद उसके अपने उत्तराधिकारियों को मिलता १-सम्बन्धियों से भेट या वसीयत में मिली हुई है । परिमित स्त्री-धन के विषय में ऐसी बात नहीं होती। सम्पत्ति को 'सौदायिक' कहते हैं । यह कई प्रकार की है ।
(२) अपने पूर्ण स्त्री-धन की अनन्य स्वामिनी होने अध्याग्नि, अध्यावाहनिक, पादवंदनिक, अन्वधेयेवक, आधिदके कारण स्त्री उसका जिस तरह चाहे उपभोग कर सकती निक आदि पूर्ण स्त्री-धन हैं। पर इस नियम का एक है और जैसे चाहे उसे हटा सकती है। यद्यपि सधवावस्था अपवाद यह है कि दाय-भाग के मतानुसार पति की दी में उसे किसी किसी हालत में अपने पूर्ण स्त्री-धन का पूरा हुई स्थावर सम्पत्ति पूर्ण स्त्री-धन नहीं समझी जाती। अधिकार नहीं रहता है, किन्तु विधवावस्था में उसे उस पर २-असम्बन्धियों से मिली हुई सम्पत्ति के तीन पूरा अधिकार मिल जाता है। परिमित स्त्री-धन के सम्बन्ध भेद हैंमें ऐसी बात नहीं है। उस पर उसका अधिकार परिमित (१) कौमार्यावस्था में मिली हुई, (२) सधवावस्था है और वह जैसे चाहे उसे हटा नहीं सकती।
में मिली हुई और (३) विधवावस्था में मिली अब प्रश्न यह है कि स्त्री-धन का 'पूर्ण' या 'परिमित' हुई। (१) कौमार्यावस्था में मिली हुई सम्पत्ति पूर्ण होना किन कारणों पर निर्भर है। कोई भी सम्पत्ति 'पूर्ण स्त्री-धन है और सभी मतों के अनुसार स्त्री का उस स्त्री-धन है या नहीं, यह तीन बातों पर अवलंबित है- पर पूर्णाधिकार है।
१-स्त्री के पास सम्पत्ति किस प्रकार आई ? (२) सधवावस्था में अध्यामि (अर्थात् विवाहमंडप में
२-सम्पत्ति मिलने के समय वह किस अवस्था में विवाहाग्नि के सामने मिली हुई) और अध्यावाहनिक थी, अर्थात् वह कुमारी थी या सधवा या विधवा ?
(अर्थात् वधु-प्रवेश के समय मिली हुई) सम्पत्ति ३-वह हिन्दू-व्यवस्था-शास्त्र के किस मत से शासित प्रत्येक मत के अनुसार पूर्ण स्त्री-धन है। सधवावस्था होती है।
में असम्बन्धियों से दूसरे अवसर पर मिली हुई सम्पत्ति __पहले यह देखना है कि स्त्री को कितने प्रकार से सम्पत्ति महाराष्ट्र, काशी और द्राविड़ के मतों के अनुसार पूर्ण मिल सकती है और उसका यह अधिकार कहाँ तक सीमित स्त्री-धन है। दायभाग और मिथिला के मतानुसार वह है । स्त्री को सम्पत्ति नौ प्रकार से मिल सकती है
परिमित स्त्री-धन है। दायभाग के अनुसार ऐसी सम्पत्ति १-अपने सम्बन्धियों से भेंट में या वसीयत में मिली भी पति के मरने के बाद पूर्ण स्त्री-धन हो जाती है। हुई सम्पत्ति।
मिथिला का मत इस विषय पर अभी निश्चित नहीं है। ___२-असम्बन्धियों से भेंट में या वसीयत में मिली (३) विधवावस्था में मिली हुई सम्पत्ति पूर्ण स्त्री-धन है। हुई सम्पत्ति ।
सभी मतों के अनुसार स्त्री उसकी पूर्णाधिका३-बँटवारे में मिली हुई सम्पत्ति ।
रिणी है।
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