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हिन्दू-स्त्रियों का सम्पत्त्यधिकार
संख्या ३ ]
३ -- बँटवारे में मिली हुई सम्पत्ति किसी भी मत के अनुसार स्त्री का पूर्ण स्त्री-धन नहीं है। सभी मतों के भिन्न भिन्न कारण हैं । फिर भी सबका निष्कर्ष एक ही है।
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४ - निर्वाह करने के बदले में स्त्री को दी गई सम्पत्ति को 'वृत्ति' कहते हैं । यह सभी अवस्था में और सभी मतों के अनुसार पूर्ण स्त्री-धन समझी जाती है ।
५ - मीरास की सम्पत्ति के दो भेद हैं। स्त्री दो प्रकार की सम्पत्तियों की उत्तराधिकारिणी हो सकती है- (१) किसी पुरुष की सम्पत्ति जैसे; पति, पिता, पुत्र इत्यादि की और (२) किसी स्त्री की सम्पत्ति; जैसे, माता, पुत्री इत्यादि की।
बंगाल, काशी, मिथिला और मदरास के मतानुसार मीरास की सम्पत्ति किसी भी अवस्था में पूर्ण स्त्री-धन नहीं हो सकती। किसी भी पुरुष या स्त्री से विरासत में मिली हुई सम्पत्ति पर स्त्री का केवल सीमित अधिकार रहता है और वह उसकी स्वामिनी अपने जीवन भर ही रह सकती है। उसकी मृत्यु के बाद वह सम्पत्ति अपने पहले स्वामी या स्वामिनी के उत्तराधिकारियों के पास ही लौट जाती है। महाराष्ट्र-मत इससे भिन्न है । वहाँ किसी स्त्री की सम्पत्ति किसी स्त्री को मिलने पर वह उसकी पूर्णाधिकारिणी हो जाती है और उसकी मृत्यु के उपरान्त वह सम्पत्ति उसकी पूर्ण स्त्री-धन-सम्पत्तियों की तरह उसके उत्तराधिकारियों को ही मिलती है । पुरुष से मिली हुई सम्पत्ति के दो भेद हैं-- ( १ ) उन पुरुषों से मिली हुई सम्पत्ति जिनके गोत्र में वह अपने विवाह के बाद चली श्राती है; जैसे, पति, पुत्र, प्रपौत्र इत्यादि से । (२) उन पुरुषों से मिली हुई सम्पत्ति जिनके गोत्र में उसका जन्म हुा है; जैसे, पिता, भाई, नाना इत्यादि से । पहले प्रकार की सम्पत्ति पूर्ण स्त्री-धम नहीं समझी जाती और उस पर स्त्री का परिमिताधिकार मात्र है । दूसरे प्रकार की सम्पत्ति महाराष्ट्र मत के अनुसार पूर्ण स्त्रीधन मानी जाती है और arat मृत्यु के उपरान्त उसके उत्तराधिकारियों को वह सम्पत्ति मिलती है ।
६ – स्वोपार्जित सम्पत्ति महाराष्ट्र, काशी और मदरास के मतानुसार स्त्री का पूर्ण स्त्री- धन है, चाहे वह कौमार्यावस्था में प्राप्त की गई हो या सधवावस्था में या विधवावस्था में। किन्तु मिथिला और बंगाल के मत भिन्न हैं । वहाँ कौमार्यावस्था और विधवावस्था में प्राप्त
फा. ५.
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की गई सम्पत्ति पूर्ण स्त्री-धन है, किन्तु सधवावस्था में स्त्री का स्वोपार्जित धन भी पति का हो जाता है। बंगाल में यदि पति स्त्री के पहले मर जाय तो स्त्री की वह सम्पत्ति पूर्ण स्त्री धन हो जायगी और उसके उत्तराधिकारी ही उसका उपभोग करेंगे। मिथिला में ऐसा है या नहीं, यह कहना कठिन है ।
शेष तीन प्रकार की सम्पत्तियाँ, अर्थात् ( ७ ) - अधिकार का निपटारा करने से मिली हुई, (८) विपरीताधिकार से मिली हुई और (९) स्त्रीधन के मूल्य अथवा श्राय से ख़रीदी हुई सम्पत्ति सभी मतों के अनुसार और प्रत्येक अवस्था में स्त्री का पूर्ण स्त्री-धन है और उस पर उसका अधिकार परिमित है
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अब यह देखना है कि ऐसी भी कोई सम्पत्ति है जो पुरुष को मिल सकती है, किन्तु स्त्री को नहीं ।
मिताक्षरा के अनुसार किसी भी हिन्दू की सम्पत्ति दो भागों में बाँटी जा सकती - ( १ ) संयुक्त पारिवारिक संपत्ति और (२) पृथक् सम्पत्ति ।
(१) संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति वह है जिसमें परिवार के
पुरुष या उनके पुत्र ही भाग ले सकते हैं और जिसका उत्तराधिकारित्व किसी नियमित क्रम से नहीं, किन्तु उत्तर- जीविता पर निर्भर है । उदाहरण के लिए, क र ख दो भाई हैं और दोनों की स्त्रियाँ जीवित हैं। पर जब क मर जाता है तब समस्त सम्पत्ति a को मिल जाती है और क की स्त्री को कुछ भी नहीं मिलता ।
(२) पृथक् सम्पत्ति वह है जिस पर किसी व्यक्ति का विशेषाधिकार हो । उसकी मृत्यु के बाद उसकी वह सम्पत्ति उसके उत्तराधिकारियों को विहित क्रम से मिलेगी ।
दायभाग के अनुसार भी सम्पत्ति के यही दो भेद हैं । अन्तर इतना ही है कि उसमें संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति उत्तर - जीविता के अनुसार नहीं मिलती। उदाहरण के लिए यदि क र ख दो भाई हैं और दोनों की स्त्रियाँ जीवित हैं तो क की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति उसकी स्त्री को ही मिलेगी, ख को नहीं ।
अब प्रश्न यह उठता है कि इन दोनों प्रकार की सम्पत्तियों के सम्बन्ध में स्त्रियों का क्या स्थान है ।
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