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________________ हिन्दू स्त्रियों का सम्पत्त्यधिकार लेखक, श्रीयुत कमलाकान्त वर्मा, बी० ए०, डाक्टर देशमुख ने असेम्बली में हिन्दू-स्त्रियों का सम्पत्त्यधिकार सम्बन्धी बिल उपस्थित करके स्त्रियों के तत्सम्बन्धी अधिकारों पर चर्चा करने का एक अच्छा अवसर उपस्थित कर दिया है । इस लेख के लेखक महोदय ने इस विषय की बड़े अच्छे ढंग से विवेचना की है और इस जटिल विषय पर पूर्ण प्रकाश डाला है । न्द्रीय व्यवस्थापिका सभा की इस बैठक में सामाजिक और आर्थिक दृष्टि-कोण से एक बड़े महत्त्व के विषय पर गवेषणा की जायगी, और वह है डाक्टर देशमुख का हिन्दूस्त्रियों का साम्पत्तिक अधिकार सम्बन्धी बिल | इस बिल पर जनता का मत जानने का प्रयत्न किया गया है और अभी तक जो विचार संग्रह हुआ है उससे इस नये विधान को बहुत कुछ प्रोत्साहन मिलता है । एक सौ उनतालीस सम्मतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें आठ विरुद्ध हैं, एक तटस्थ है और शेष एक सौ तीस पक्ष में हैं । यह बिल देखने में जितना छोटा है, इसका परिणाम उतना ही सुदूरव्यापी होगा। इसके विषय में सर सी० पी० रामस्वामी ऐयर का मत है कि "यह विषय बहुत जटिल है। स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए हमें सबसे पहले हिन्दू पारिवारिक जीवन की भावना में भारी परिवर्तन करना पड़ेगा | जब तक विशेषरूप से नियोजित विशेषज्ञों की एक समिति इस बिल को अच्छी तरह समझ-बूझ कर इसमें सुधार नहीं करेगी, मुझे इसकी सफलता में सन्देह है । " इस बिल के पास जाने से वर्तमान दशा में कौनसे परिवर्तन हो जायँगे, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से उन परिवर्तनों का क्या महत्त्व होगा और इसके क्या गुण-दोष हैं, इस सबकी समीक्षा करने के पहले यह जानना बहुत ज़रूरी है कि हिन्दू स्त्रियों का वर्तमान सम्पत्त्यधिकार क्या है और उस अधिकार के सीमा-बंधन के कारण क्या हैं । यहाँ हम पहले उन अधिकारों का विवेचन करेंगे । बी० एल० किसी भी व्यक्ति का पूर्ण सम्पत्त्यधिकार तीन अंगों में बाँटा जा सकता है - (१) प्राप्ति, (२) उपभोग, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ( ३ ) और पृथक्करण । यदि ये तीनों अधिकार किसी के पास हैं तो उसका सम्पत्ति पर पूरा अधिकार समझा जाता है। यदि किसी भी अंग की कमी हुई तो अधिकार सीमित समझा जाता है। देखना यह है कि हिन्दू स्त्रियों को ये तीनों अधिकार पूर्णरूप से प्राप्त हैं या नहीं । इस विषय पर विचार करने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि हिन्दू-व्यवस्था - शास्त्र क्या है । वास्तव में इस शास्त्र के तीन प्रधान स्रोत हैं- श्रुति, स्मृति और आचार । श्रुति चारों वेदों को कहते हैं । इनका व्यवस्था शास्त्र से बहुत कम सम्बन्ध है । स्मृति धर्म शास्त्र को कहते हैं। तीन स्मृतियाँ प्रमुख हैं- मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति और नारदस्मृति । इन स्मृतियों पर बहुत बड़े बड़े निबन्ध लिखे गये हैं और वर्तमान सारा हिन्दू-व्यवस्था - शास्त्र इन्हीं निबन्धों पर स्थित है । निबन्धकारों में सबसे उच्च स्थान विज्ञानेश्वर और जीमूतवाहन का है। विज्ञानेश्वर के 'मिताक्षरा' और जीमूतवाहन के 'दायभाग' पर ही सारा हिन्दूव्यवस्था - शास्त्र अवलंबित है । दायभाग बंगाल में सर्वमान्य है, और मिताक्षरा मिथिला, महाराष्ट्र, बनारस और मदरास में । इस प्रकार हिन्दू-व्यवस्था - शास्त्र के दो मत हैं - (१) दायभाग और (२) मिताक्षरा । मिताक्षरा की चार उपशाखायें (१) महाराष्ट्र- मत जो बम्बई, गुजरात आदि में प्रचलित है, (२) मैथिल - मत जो मिथिला में माना जाता है, (३) काशी- मत जो संयुक्त प्रान्त और उसके आस-पास व्यवहृत होता है और (४) द्राविड़ - मत जो मदरास में स्वीकृत है । स्त्रियों की प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति को साधारण बोलचाल की भाषा में 'स्त्रीधन' कह सकते हैं । किन्तु दुर्भाग्यवश शास्त्रकारों ने 'स्त्री-धन' शब्द को विशिष्टार्थ में ही प्रयुक्त किया है और उसे केवल उन्हीं सम्पत्तियों तक परिमित रक्खा २३९ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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