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________________ २३६ सरस्वती [भाग ३८ पार्लियामेंट के इस सदस्य के इस प्रकार अंगारे उगलने 'किंगहम पैलेस' में था और इसके रखने में प्रायः दो का कारण भी था। उस समय जनता के प्रवेश इत्यादि में हज़ार पौंड का सालाना खर्च था। जब चतुर्थ जार्ज गद्दी बहुत कठिनाइयाँ होती थीं। पहले यह कायदा था कि पर बैठे तब उन्हें यह ख़र्च नापसन्द हुा । यह भी पता विद्याशील और जिज्ञासु हो म्युज़ियम के भीतर जा सकते चला कि यदि वे चाहें तो रूस के ज़ार उनके समचे संग्रह थे। उन्हें एक प्रार्थनापत्र लिखकर द्वारपाल को देना को बड़ा मूल्य देकर खरीद सकते हैं । आखिर सब बात पड़ता था। फिर संग्रहालय-रक्षक इसका निर्णय करते थे पक्की भी हो गई । पीछे होम सेक्रेटरी को मालूम हुआ कि वह व्यक्ति म्युज़ियम के भीतर जाने लायक है या नहीं। और देश भर में इस बात की बड़ी निन्दा होने लगी । पर पक्ष में निर्णय होने पर उसे टिकट मिल जाता था। दस चतुर्थ जार्ज को अपने ऐश-आराम के लिए रुपयों की अादमी से ज्यादा एक घंटे के भीतर प्रविष्ट नहीं किये बहुत ज़रूरत थी। उन्होंने कहा कि यदि देश उन्हें उतना जाते थे, और पाँच आदमी से ज्यादा का एक समूह नहीं ही रुपया दे दे जितना रूस के ज़ार उन्हें दे रहे हैं तो वे बन सकता था। फिर वे एक विभाग में एक घंटे से ज़्यादा उसे परदेश न भेजकर अपने देश को ही दे देंगे। आखिर देर तक ठहर नहीं सकते थे। द्रव्य-विभाग में बिना संग्रहा- हुअा भी ऐसा ही। सारे देश ने मिलकर आवश्यकता भर लय के रक्षक के नहीं घूम सकते थे। और द्वारपाल को रुपया जमा कर लिया और इस अमूल्य रत्न को विदेश यह अधिकार था कि वह किसी व्यक्ति को किसी अनुचित जाने से बचा लिया। अब तो बीसवीं शताब्दी में लोग व्यवहार के कारण बाहर निकाल सकता था। पुरानी चीज़ों का महत्त्व इतना समझने लगे हैं कि उनके ऐसी बाधात्रों के कारण यदि जनता उसकी ओर लिए कोई भी मूल्य अधिक नहीं समझा जाता। प्रायः आकृष्ट न हो तो कोई आश्चर्य नहीं । धीरे धीरे प्रवेश- तीन-चार वर्ष हुए कि अँगरेज़-सरकार ने रूस-सरकार से होते गये। सन् १८१० में यह नियम बना एक बाइबिल एक लाख पोड़ यानी करीब चौदह लाख कि सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को म्युज़ियम जनता के रुपये में खरीदी है। यह बाइबिल संसार में सबसे पुरानी लिए चार बजे शाम तक खुला रहे और कोई भी भद्र बाइबिल समझी जाती है। सेवियट रूस जब ईश्वरविहीन व्यक्ति उसके भीतर जा सकता है। अब दर्शकों की संख्या हो गया तब उसकी नज़रों में बाइबिल का मूल्य जाता दिनोंदिन बढ़ने लगी । सन् १८२८ में प्रायः अस्सी हज़ार रहा ! इस कारण उसने एक बाइबिल के बदले १४ लाख मनुष्यों ने इसका निरीक्षण किया। सन् १८२८ में प्रायः रुपये लेना पसन्द किया। डेढ़ लाख और सन् १८४८ में प्रायः नौ लाख मनुष्यों ने आज ब्रिटिश म्युज़ियम के कारण अँगरेज़ी-साहित्य इसके निरीक्षण से लाभ उठाया। पर कितना नया प्रकाश पड़ा है, इसे सभी अँगरेज़ीसन् १८४८ योरप के लिए क्रांतिकाल माना जाता है। साहित्य-वेत्ता जानते हैं। पर इसका सबसे हृदयग्राही और ऐसा मालूम हुआ कि इंग्लैंड के चार्टिस्ट लोग जो अपने मनोरंजक विभाग 'हस्तलिखित-ग्रन्थ-भवन' है। इसमें को शारीरिक बलवाला दल कहते थे, इसका विध्वंस कर प्रायः सभी बड़े बड़े लेखकों के हाथ के लिखे ग्रन्थ मौजद देंगे। इसके बचाने के लिए सेना इत्यादि का आयोजन हैं। जब हम उनकी हस्तलिपि को देखते हैं, उनके हुआ। पर इस पर किसी ने आघात नहीं किया। तब से संशोधनों को देखते हैं, तब वे बड़े बड़े कवि और इसकी दिनोंदिन उन्नति होती रही है। अब तो दिखाने के ग्रन्थकार हम लोगों-सा प्रतीत होने लगते हैं। इससे उनके लिए सदा प्रदर्शक रहते हैं और समय समय पर इसमें प्रति हमारी श्रद्धा नहीं घटती, बरन हममें साहस का बड़े बड़े विद्वानों के व्याख्यान भी हुआ करते हैं। उद्भव होता है, हम अपनी शक्ति का अनुभव करने लगते इसमें चीन, जापान, हिन्दुस्तान, अरब, ईरान इत्यादि हैं। हमें अपनी दुर्बलता पर ग्लानि तो ज़रूर होती है, पर सभी देशों के पुस्तकों का संग्रह है, किन्तु इसका सबसे बड़ा निराशा नहीं होती। पुस्तकालय 'किंग्स लाइब्रेरी' के नाम से विख्यात है । इसे इसमें बड़े बड़े पुरुषों जैसे-रिचर्ड, ड्यूक अाफ़ तृतीय जार्ज ने एकत्र किया था। इसका स्थान पहले ग्लास्टर, ड्यूक अाफ़ बकिंगहम, एन बोलीन, कैनमर, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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