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________________ संख्या ३ ] डाक्टर स्लीन राजपरिवार के चिकित्सक थे और बहुत दिनों तक रायल सोसाइटी के प्रेसीडेन्ट भी रहे थे । ये भी मिस्र, ग्रीस, रोम, ब्रिटेन की पुरानी वस्तुओं का संग्रह कर रहे थे । दोनों संग्रहों के मिल जाने से इस संग्रहालय का ब्रिटिश म्यूजियम मूल्य बहुत बढ़ गया । कुछ ही दिनों के बाद याक्सफ़ोर्ड के अल रावर्ट हाली और सर रावर्ट काटन के ग्रमूल्य पुस्तकालय भी इस संग्रहालय में मिला दिये गये । इंग्लैंड के सम्राट् द्वितीय जार्ज भी पुस्तकों के अतिशय प्रेमी थे । उन्होंने बहुत-सी पुस्तकों का संग्रह कर रक्खा था। राजपरिवार की जो पुस्तकें पीढ़ी दर पीढ़ी से एकत्र होती आ रही थीं वे सबकी सब उन्होंने उदारतापूर्वक इस राष्ट्रीय संग्रहालय को समर्पित कर दीं। [ किंग्स लाइब्रेरी ( ब्रिटिश म्युजियम ) ] ब्रिटिश म्युज़ियम का स्थान पहले मान्टेगू हाउस, ब्लूम्सवेरी में था। पर इस बड़े संग्रह के लिए उसमें काफी स्थान न होने के कारण एक नये स्थान की श्रावश्यकता हुई। तब यह नई इमारत बनी जो अब 'ब्रिटिश म्युजियम' के नाम से विख्यात है। इसका सामने का विशाल भाग जो चवालीस स्तम्भों पर स्थित है, इसकी महत्ता का परिचायक है । इसकी बनावट ग्रीक शैली की है और इसके ललाट पर 'सभ्यता की प्रगति' का चित्र खुदा हुआ है। इसके देखने पर एक बार मस्तक झुक जाता है । यदि यथार्थ में कोई मन्दिर है जहाँ पूजा की जा सकती है तो वह यही है । पर पाठक यह न समझें कि यह ग्रमर मन्दिर एक रोज़ में बना था अथवा सवों की सदिच्छा से बना था । ऐसे स्थान सिवा खर्च के ग्रामदनी के द्वार नहीं होते । पुरानी चीज़ों के खरीदने और उन्हें सुन्दर रूप से रखने में बहुत व्यय करना पड़ता है। प्रारम्भ में इसके लिए ब्रिटिश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat म्युजियम को एक लाख पौंड की आवश्यकता पड़ी। पार्लियामेंट यह रकम देने को तैयार न थी । सोचा गया, यह रकम जुया द्वारा उपार्जित की जाय। कुछ बदनामी तो हो गई, पर काम चल गया । पहले इस संस्था से सहानुभूति रखनेवाले बहुत कम लोग थे । वे समझते थे कि पुस्तकालयों वा संग्रहालयों में द्रव्य खर्च करना व्यर्थ में पैसा गँवाना है । सन् १८३३ में पार्लियामेंट के एक सदस्य ने 'हाउस आफ कामन्स' में भाषण करते हुए कहा था - " पूछना चाहता हूँ, ब्रिटिश म्युज़ियम से किसको क्या नफ़ा है? शायद इससे कुछ ना है तो उन्हीं को जो वहाँ गये, और किसी को भी नहीं । वे लोग जो वहाँ जाकर इससे ग्रानन्द उठाते हैं वे लोग ही इसका खर्च सँभालें । महाजन और किसान लोग इसका खर्च क्यों दें जब यह केवल ग्रमीरों और कुछ जिज्ञामुयों के मन बहलाव का स्थान है ? मैं नहीं जानता, ब्रिटिश म्यूजियम कहाँ है । मैं यह भी नहीं जानता, उसमें क्या है । न मुझे इन बातों के जानने की कुछ इच्छा ही है । ब्रिटिश म्यूजियम के खर्च का सवाल तो सरकार के लिए सबसे व्यर्थ की बात है और जब मुझे इस निन्दा की बात की ओर ध्यान दिलाना पड़ा तब इससे बढ़कर और शर्म की बात क्या हो सकती है ?" www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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