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ब्रिटिश
म्युजियम
लेखक,
श्रीयुत विश्वमोहन, बी० ए० (आनर्स लन्दन)
[ मुख्य द्वार (ब्रिटिश म्युजियम)]
न्दन एक बहुत ही बृहत् स्थान है। था। वह केवल दर्शकों के मनोरंजन के लिए मूर्ति की यहाँ देखने योग्य वस्तुओं का प्राकृति धारण कर लेता था। मैंने उसकी बड़ी प्रशंसा
अभाव नहीं। यदि आपको चित्र- की। यह प्रदर्शनी वास्तव में मनुष्यों की कारीगरी का | कला से प्रेम है तो 'टेट गैलरी' बहुत ही अनुपम उदाहरण है। भारतवासियों में केवल KES और 'नेश्नल गैलरी' देखें । यदि एक महात्मा गांधी की मृति इसमें रक्खी गई है। इन
- वैज्ञानिक चमत्कार देखना हो तो दर्शन-योग्य संस्थानों और शालाओं का सिरताज 'ब्रिटिश 'इम्पिरियल म्युज़ियम में भ्रमण करें। यदि मोम से बनी म्युजियम' है। इसी की कहानी पाठकों के सामने यहाँ रख वस्तुओं का अद्भुत संग्रह देखना हो तो मैडम टुसो की रहा हूँ। प्रदर्शनी देखें । यह संसार में एक अनोखी चीज़ है, जिसका ब्रिटिश म्युज़ियम' के नाम से अाज सभी पढ़े-लिखे जोड़ा बर्लिन, पेरिस या न्यूयार्क आदि स्थानों में भी व्यक्ति परिचित हैं। इसे पुस्तकों का खज़ाना नहीं, ज्ञान का नहीं मिलता। इसमें संसार के महान् व्यक्तियों के जीवना- ख़ज़ाना कहना चाहिए। यह कहना कुछ कठिन है कि यह कार चित्र रक्षित हैं । ये इतने सुन्दर बने हैं कि मोम की संसार का सबसे बड़ा संग्रहालय है, पर यह कहना अत्युक्ति. मूर्तियाँ हैं वा सजीव व्यक्ति हैं, यह कहना कठिन हो जाता पूर्ण नहीं है कि संसार में इसका जोड़ा नहीं-सा है।। है। जब मैं उसे पहले-पहल देखने गया तब मैं प्रवेशद्वार ब्रिटिश म्युज़ियम के उत्थान की कहानी बहुत ही पर सीढ़ियों से ऊपर जाने लगा। उसी के पास एक मूर्ति मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। संसार की कोई भी वस्तु ड़ी थी। उसकी प्राकृति और भावभंगी से यही प्रतीत पैदा होते ही उच्चता के शिखर पर नहीं पहुँच जाती, बरन
वह दशकों से टिकट दिखलाने का प्राग्रह उसकी उत्पत्ति और विकास में कठिनाइयाँ होती हैं। यदि कर रही हो । मैं तो सचमुच पाकेट में हाथ डालकर टिकट उस वस्तु में जीवनशक्ति मौजूद है तो वह सौन्दर्य और निकालने लगा, पर शीघ्र ही पता चला कि वह कोई सजीव दृढ़ता प्राप्त कर जाती है। संरक्षक नहीं, बरन मोम की मूर्ति है। मैं अपने एक अँग- इस म्युजियम का जन्म सन् १७५३ में हुआ था। परन्तु रेज़ बालिका मित्र के साथ ऊपर पहुँचा। वहाँ मैंने एक इसका मूल खोजने के लिए हमें सत्रहवीं शताब्दी में जाना दूसरी मर्ति खड़ी देखी। मैं उसकी बनावट के चारों ओर होगा। विलियम कोरटेन्स पुरानी च घूमकर जाँच करने लगा। फिर जब मैं उसकी कला की बहुत प्रेमी थे। इन्होंने अपने पास से बहुत-से पुराने पुराने निपुणता की प्रशंसा अपने मित्र से कर रहा था, वह मूर्ति चित्रों, संखों, सिक्कों, अनेकानेक बहुमूल्य रत्नों का संग्रह कर मुस्कुरा दी। मैं तो अवाक रह गया। वह वास्तव में मोम रखा था। इस संग्रहालय के लिए डॉक्टर स्लोन को की मूर्ति नहीं थी, वह उस संस्था का एक सजीव संरक्षक उन्होंने अपना उक्त समचा संग्रह सन् १७०२ में दे दिया।
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